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उत्तरकाशी आपदा: सब कुछ गंवा चुके ग्रामीणों को सता रही रोजी-रोटी की चिंता

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Published : Aug 20, 2019, 8:22 AM IST

Updated : Aug 20, 2019, 10:13 AM IST

उत्तरकाशी के मोरी में बारिश का कहर.

'जल प्रलय' ने न सिर्फ गांव तबाह किए, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका भी छीन ली है. ग्रामीणों के कई हेक्टेयर सेब के बगीचे भी आपदा की भेंट चढ़ गए हैं. हालांकि, अभी सेब के बागीचों के नुकसान के सरकारी आंकड़े सामने नहीं आये हैं.

उत्तरकाशी: कहते हैं कुदरत के आगे किसी का जोर नहीं चलता, कुछ ऐसा ही उत्तरकाशी जिले के मोरी के आराकोट बंगाण क्षेत्र में घटित हुआ. कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया कि देखते ही देखते पूरा गांव ताश के पत्तों की तरह बिखर गया. इस जलप्रलय ने न सिर्फ गांव तबाह किए, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका भी छीन ली है. ग्रामीणों के कई हेक्टेयर सेब के बगीचे भी जलप्रलय की भेंट चढ़ गए हैं. हालांकि, अभी सेब के बगीचों के नुकसान के सरकारी आंकड़े सामने नहीं आये हैं. लेकिन अंदाजा लगाया जा रहा है कि आपदा में 100 करोड़ के आसपास का नुकसान हुआ है. जिसमें आधे क्षेत्र की मुख्य आजीविका को नुकसान हुआ है.

इस 'जल प्रलय' ने न सिर्फ गांव तबाह किए, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका भी छीन ली है. ग्रामीणों के कई हेक्टेयर सेब के बागीचे भी आपदा की भेंट चढ़ गए हैं. हालांकि, अभी सेब के बगीचों के नुकसान के सरकारी आंकड़े सामने नहीं आये हैं. लेकिन अनुमानित 100 करोड़ के नुकसान में आधे क्षेत्र की मुख्य आजीविका को नुकसान हुआ है. अब ग्रामीणों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है.

आपदा में सब कुछ गंवा चुके ग्रामीणों को सता रही रोजी-रोटी की चिंता.

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गौर हो कि मोरी ब्लॉक के सीमांत आराकोट बंगाण क्षेत्र की बात करें, तो इसकी पूरी घाटी में मोल्डा, टिकोची, किराणु, गोकुल, दुचानु, डगोली, खकवाड़ी, बलावट आदि गांव हैं. रविवार को आई आपदा के बाद ग्रामीण अब बेबस नजर आ रहे हैं. अब इन गांव में भविष्य की रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है. इस क्षेत्र में सेब की पैदावार अच्छी मात्रा में होती है. डगोली गांव की निवर्तमान प्रधान शशि नौटियाल का कहना है कि घाटी में कई काश्तकारों के करीब 500 सेब के पेड़ों के बगीचे हैं. जो कि तबाह हो चुके हैं. पल भर में बुजुर्गों की कमाई मेहनत पानी और मलबे में तब्दील हो गई.

क्षेत्र के जयपाल जैन, अष्टमोहन सिंह चौहान,विक्रम सिंह का कहना है कि आराकोट बंगाण क्षेत्र में गोल्डन,डायलेसिस और रेडचिफ प्रजाति के सेबों का उत्पादन होता है. इन दिनों आराकोट क्षेत्र के लोग पेडों से सेब तोड़ने का काम कर रहे थे. जिससे कि इनको जल्द ही मंडियों तक पहुंचाया जा सकें. लेकिन किसे पता था कि इस तरह जलप्रलय आएगी और ग्रामीणों के सपनों को बहा कर ले जाएगी. ग्रामीणों का कहना है कि अब उनके सामने रोजी- रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है.

Intro:उत्तरकाशी के आराकोट बंगाण क्षेत्र में रविवार की जलप्रलय ने जहाँ घर गांव बर्बाद कर दिए। तो वहीं अब बंगाण क्षेत्र में आजीविका की कमर टूट गई है। क्योंकि क्षेत्र में सेब मुख्य आजीविका का साधन है। उत्तरकाशी। मोरी के आराकोट बंगाण क्षेत्र में रविवार को पब्बर नदी और विभिन्न गांव के नालों ने बादल फटने के बाद इस कदर अपना कहर बरपाया, कि देखते-देखते घर- गांव इस तरह बिखर गए,जैसे ताश के पत्ते बिखर गए हों। इस जलप्रलय ने न सिर्फ गांव तबाह किए, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका भी छीन ली है। ग्रामीणों के कई हेक्टेयर सेब के बागीचे भी जलप्रलय की भेंट चढ़ गए हैं। हालांकि अभी सेब के बागीचों के नुकसान के सरकारी आंकड़े सामने नहीं आये हैं। लेकिन अनुमानित 100 करोड़ के नुकसान में आधा प्रतिशत क्षेत्र की मुख्य आजीविका का नुकसान हुआ है। अब ग्रामीणों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। Body:वीओ-1, मोरी ब्लॉक के सीमांत आराकोट बंगाण क्षेत्र की बात करें, तो इसकी पूरी घाटी में मोल्डा,टिकोची,किराणु, गोकुल,दुचानु,डगोली,खकवाड़ी, बलावट आदि गांव हैं। जो रविवार को आई जलप्रलय के बाद अब बेबस नजर आ रहे हैं। घर गांव तो तबाह हुआ। अब इन गांव में भविष्य की रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया था। इस क्षेत्र में सेब की पैदावार अच्छी मात्रा में होती है। डगोली गांव की निवर्तमान प्रधान शशि नौटियाल का कहना है कि घाटी में कई काश्तकारों के करीब 500 सेब के पेड़ों के बागीचे हैं । जो कि तबाह हो चुके हैं। पल भर में पुरखों की कमाई मेहनत पानी पानी और मलबे में तब्दील हो गई। Conclusion:वीओ-2, क्षेत्र के जयपाल जैन, अष्टमोहन सिंह चौहान,विक्रम सिंह का कहना है कि आराकोट बंगाण क्षेत्र में गोल्डन,डायलेसिस और रेडचिफ प्रजाति के सेबों का उत्पादन होता है। इन दिनों आराकोट क्षेत्र के लोग पेडों से सेब तोड़ने का काम कर रहे थे। जिससे कि इनको जल्द ही मंडियों तक पहुंचाया जा सके। लेकिन किसे पता था कि इस तरह जलप्रलय आएगी और ग्रामीणों के सपनों को बहा कर ले जाएगी। ग्रामीणों का कहना है कि अब उनके सामने रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है या यह कहें कि सेब बागवान ग्रामीण सालों पीछे चले गए हैं।
Last Updated :Aug 20, 2019, 10:13 AM IST
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