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पुरोला: ग्लोबल वॉर्मिंग से कम हुआ लाल चावल का उत्पादन, कैंसर और मधुमेह के रोगियों के लिए है रामबाण

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Published : Oct 19, 2019, 6:37 PM IST

Updated : Oct 19, 2019, 8:41 PM IST

मध्य हिमालय के विशेष क्षेत्रों में उगाई जाने वाली ये फसल यहां की परम्परागत फसल है. जिससे किसानों की आमदनी जुड़ी है. लगातार बढ़ते ग्लोबल वर्मिंग की समस्या ने रवांई घाटी के लोगों के माथे पर भी बल ला दिये हैं. दरअसल, बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या के कारण लगातार लाल चावल की जोत भूमि घट रही है.

पुरोला: ग्लोबल वॉर्मिंग से कम हुआ लाल चावल का उत्पादन

पुरोला: रवाईं घाटी में उगने वाला लाल चावल कोई आम चावल नहीं होता. ये चावल मधुमेह और कैंसर रोगियों के लिए रामबाण है. इस चावल को स्थानीय भाषा में चरधान कहा जाता है. चरधान चावल का सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के साथ ही ब्लड प्रेशर भी दुरुस्त होता है. इस चावल के उपयोग को देखते हुए हिमाचल, दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भी इसकी अच्छी खासी डिमांड है, लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण लगातार इस फसल की जोत भूमि घट रही है. जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ रहा है.

रवांई घाटी में लाल कटोरे के नाम से प्रसिद्ध रामा सिराई व कमल सिराई पट्टी में व्यापक मात्रा में लाल चावल का उत्पादन किया जाता है. यहां उगाये जाने वाले लाल चावल में पौष्टिकता के साथ ही औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं. जिससे ये चावल स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होते हैं. ये चावल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, कैंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह,आदि के रोगियों के लिये फादेमंद हैं. वनस्पति विज्ञान के जानकारों का मानना है कि चरधान (स्थानीय लाल धान) में एंटी कैंसर रोधी मात्रा प्रयाप्त मात्रा में पाई जाती है.

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मध्य हिमालय के विशेष क्षेत्रों में उगाई जाने वाली ये फसल यहां की परम्परागत फसल है. जिससे किसानों की आमदनी जुड़ी है. लगातार बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग की समस्या ने रवांई घाटी के माथे पर भी बल ला दिये हैं. दरअसल, बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या के कारण लगातार लाल चावल की जोत भूमि घट रही है. जिसके कारण इसके उत्पादन में दिनों दिन कमी आ रही है. कम होते उत्पादन के कारण किसानों की आजीविका भी घटी है. जिसके कारण वे फसल के लिए लगाई गई लागत को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं.

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पुरोला क्षेत्र के 1057 हेक्टेयर भूमि पर उगाये जाने वाले लाल चावलों की पड़ोसी राज्य हिमाचल में खूब मांग है. रेड राइस (चरधान) के नाम से बिकने वाले लाल चावल की बाजार में कीमत 80 से 100 रुपये प्रति किलो है. मौसम में हो रहे बदलाव से किसान अब खेतों में अन्य फसलों को बो रहे हैं. जिससे पहाड़ का रामबाण कहे जाने वाले 'चरधान' (लाल धान)पर संकट के बादल मंडराते देखे जा सकते हैं.

Intro:स्थान-पुरोला
एंकर-मधुमेह ही नहीं कैंसर रोगीयों के लिए भी फादेमंद है रवाईं का लाल चावल जिसे स्थानिय बोली में चरधान कहा जाता है चरधान चावल का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक छमता बढ़ने के साथ ही ब्लड प्रेशर भी दुरस्त रहता है इस चावल की डिमांड पड़ोसी राज्य हिमांचल,दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भी खासी है
लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते इसकी जोत भूमि के साथ ही उत्पादन लगातार घट रहा है।


Body:वीओ-रवाईं घाटी में लाल कटोरे के नाम से प्रसिद्ध रामा सिराई, व कमल सिराई पट्टी में लाल चावल का उत्पादन ब्यापक मात्रा में किया जाता है । इस लाल चावल में पोष्टिकता के साथ ही, औषधिय गुणो की प्रचुर मात्रा पाई जाती है यह चावल रोग प्रतिरोधक छमता बढ़ाने, कैंसर,उच्च रक्तचाप,मधुमेह,आदि के रोगियों के लिये फादेमंद साबित होता है वनस्पति विज्ञान के जानकारों का मानना है कि चरधान (स्थानीय लाल धान)में एंटी कैंसर रोधी मात्रा प्रयाप्त मात्रा में पाई जाती है ।यह मध्य हिमालय के विशेष छेत्रों में उगाई जाती है जो कि स्थानिय स्तर पर परम्परागत फसल हैं ।लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते इसके उत्पादन में लागातार गिरवाट आ रही है साथ ही फ़सल की जोत भूमि भी लगातार सिकुड़ती जा रही है।
बाईट-1भरत सिंह(किसान)
2 चैन सिंह(किसान)
3 डॉ विशम्बर जोशी (विभाग अध्ययछ वनस्पति विज्ञान)



Conclusion:वीओ2-पुरोला छेत्र के 1057 हेक्टेयर भूमि पर उगाये जाने वाले लाल चावलो की पड़ोसी राज्य हिमांचल में खूब मांग है । रेड राइस (चरधान) के नाम से बिकने वाले लाल चावल की बाजार में कीमत 80 से 100 रुपये प्रति किलो है। लेकिन मौसम में हो रहे बदलाव से किसान अब खेतों में अन्य फसलों को बो रहे हैं।जिससे पहाड़ के रामबाण कहे जाने वाले 'चरधान' (लाल धान)पर बादल मंडराते देखे जा सकते हैं सरकार को इस रामबाण को बचाने के लिऐ कूछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
Last Updated : Oct 19, 2019, 8:41 PM IST
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