केदारनाथ से पहले भैरवनाथ को दी जाती है पहली पूजा, शीतकाल में केदारपुरी की करते हैं रक्षा

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Published : May 2, 2022, 8:04 PM IST

Lord Bhairavnath
भैरवनाथ केदारनाथ ()

केदारनाथ से पहले भगवान भैरवनाथ को पहली पूजा दी जाती है. केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद भैरवनाथ ही केदारपुरी की रक्षा करते हैं. जबकि, बाबा केदार के कैलाश प्रस्थान से पूर्व संध्या पर ऊखीमठ में बाबा भैरवनाथ की पूजा संपन्न होती है. ऐसा माना जाता है कि वो पूर्व संध्या पर ही कैलाश पर प्रस्थान करते हैं.

रुद्रप्रयागः केदारनाथ यात्रा का विधिवत आगाज हो गया है. केदारनाथ की पूजा से पहले केदारपुरी के क्षेत्र रक्षक के रूप में पूजे जाने वाले भैरवनाथ की पूजा का विधान है. मान्यता है कि केदारनाथ धाम में जब कपाट बंद होते हैं तो 6 माह तक भैरवनाथ ही केदार मंदिर समेत संपूर्ण केदारपुरी की रक्षा करते हैं. इसलिए जब शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली रवाना होती है तो पहले दिन भैरवनाथ की पूजा की जाती है, फिर यात्रा का श्रीगणेश होता है.

भगवान भैरवनाथ को बाबा केदार के क्षेत्ररक्षक एवं अग्रवीर के रूप में पूजा जाता है. केदार बाबा की पूजा से पहले भैरवनाथ की पूजा का विधान है. केदारनाथ मंदिर से डेढ़ किमी की दूरी पर भगवान भैरवनाथ का मंदिर स्थित है. भले ही केदारनाथ के कपाट हर साल खोल दिए जाते हैं, लेकिन केदारनाथ की आरती तब तक नहीं होती है, जब तक भैरवनाथ के कपाट नहीं खोल दिए जाते हों.

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भैरवनाथ मंदिर के कपाट खुलने के बाद ही होती है केदारनाथ की पूजाः केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद शनिवार या फिर मंगलवार को भैरवनाथ के कपाट खोल दिए जाते हैं. भैरवनाथ मंदिर के कपाट खुलने के बाद भगवान केदारनाथ की आरती शुरू होती है. साथ ही भगवान को भोग भी लगाया जाता है. इसी प्रकार केदारनाथ धाम के कपाट बंद करने से पहले भगवान भैरवनाथ के कपाट बंद किए जाते हैं. भैरवनाथ के कपाट खोलने या बंद करने के लिए तिथि तय नहीं की जाती है.

कपाट खुलने के बाद शनिवार या मंगलवार और कपाट बंद होने की तिथि से पहले पड़ने वाले शनिवार या मंगलवार को भैरवनाथ के कपाट खोले और बंद किए जाते हैं. केदारनाथ के कपाट शीतकाल के लिए जब बंद होते हैं तो भगवान भैरवनाथ की भी शीतकालीन गद्दीस्थल में नित्य पूजा होती है. केदारनाथ की डोली के शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ से धाम रवाना होने के पहले दिन भैरवनाथ की विशेष पूजा-अर्चना होती है.

मान्यता है कि शीतकालीन गद्दीस्थल में होने वाली पूजा के बाद भैरवनाथ केदारपुरी के लिए रवाना हो जाते हैं. केदारपुरी की रक्षा और बाबा केदार के अग्रवीर होने के नाते बाबा केदार से पहले की पूजा भैरवनाथ को दी जाती है. केदारनाथ धाम जाने वाले लाखों भक्त भैरवनाथ के दर्शन करके भी पुण्य अर्जित करते हैं. केदारनाथ धाम से डेढ़ किमी दूरी पर भैरवनाथ का मंदिर स्थित है. यहां एक शिला पर भैरव मूर्तियां हैं. केदारनाथ के पुजारी ही यहां की पूजाएं संपंन्न करते हैं.

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ओंकारेश्वर मंदिर में भी मिलता है केदारनाथ जैसा पुण्यः बाबा केदार ग्रीष्मकाल के 6 महीने केदारनाथ तो शीतकाल के 6 महीने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में विराजमान रहते हैं. कहते हैं कि जो भक्त केदारनाथ नहीं जा सकता है, वह शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर आकर केदारनाथ जैसा पुण्य अर्जित कर सकता है. जिस प्रकार भक्तों की आस्था केदारनाथ से जुड़ी हुई है. उसी प्रकार बाबा केदार की डोली से भी जुड़ी हुई है. भगवान केदारनाथ की डोली पांच मुख वाली होती है. चांदी की इस डोली के भीतर बाबा केदार की चांदी की भोग मूर्ति विराजमान होती है. जिसकी पूजा केदारनाथ और ओंकारेश्वर मंदिर में होती है. केदारनाथ में यह भोगमूर्ति पुजारी निवास में रहती है.

कहते हैं कि 60 से 70 साल पहले कपाट खुलने के अवसर पर शीतकालीन गद्दीस्थल से केदारनाथ धाम के लिए सिर्फ बाबा केदार की भोगमूर्ति, केदारनाथ रावल और केदारनाथ के प्रधान पुजारी जाते थे. धीरे-धीरे स्थिति बदली और पैदल यात्रा को उत्सव यात्रा का स्वरूप दिया गया. उत्सव यात्रा में बाबा केदार की चांदी की पांच मुख वाली डोली को तैयार किया गया, फिर कपाट बंद होने के बाद बाबा केदार की भोग मूर्ति को इसी पांचमुखी वाली डोली में शीतकालीन गद्दीस्थल लाया जाता है और फिर कपाट खोलने के समय बाबा केदार की भोगमूर्ति को इसी डोली में केदारनाथ ले जाया जाता है.

ये भी कहा जाता है कि कपाट खुलने के बाद 6 महीने तक नर केदारनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं. जबकि, कपाट बंद होने के बाद भगवान शिव के गण एवं अन्य देवता बाबा केदार की पूजा करते हैं. कपाट बंद होने के बाद केदारनाथ में बाबा केदार को भोग नहीं लगाया जा सकता है. इसी कारण डोली यात्रा में भोग मूर्ति को शीतकालीन गद्दीस्थल लाया जाता है. बाबा केदार की डोली यात्रा को उत्सव यात्रा भी कहा जाता है. इस उत्सव यात्रा में हजारों भक्त भाग लेते हैं.
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