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शीतकाल के लिए बंद हुए बाबा केदार के कपाट, इस बार 2.40 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किये दर्शन

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Published : Nov 6, 2021, 8:57 AM IST

Updated : Nov 6, 2021, 10:39 AM IST

बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल भगवान केदारनाथ के कपाट भैयादूज पर्व पर वैदिक मंत्रोच्चार एवं पौराणिक विधि विधान से शीतकाल के लिए बंद किए गए हैं.

Baba Kedarnath doors closed
बाबा केदारनाथ के कपाट बंद

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड चार धामों में प्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ मंदिर के कपाट आज के भैया दूज पर्व पर वृश्चिक राशि अनुराधा नक्षत्र में समाधि पूजा-प्रक्रिया के पश्चात विधि-विधान से शीतकाल के लिए बंद किये गए.

बता दें कि बह्ममुहूर्त से कपाटबंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी. ऐसे में सुबह 6 बजे पुजारी बागेश लिंग ने केदारनाथ धाम के दिगपाल भगवान भैरवनाथ का आह्वान कर धर्माचार्यों की उपस्थिति में स्यंभू शिव लिंग को विभूति तथा शुष्क फूलों से ढककर समाधि रूप में विराजमान किया. वहीं, ठीक सुबह 8 बजे मुख्य द्वार के कपाट शीतकाल हेतु बंद कर दिये गये. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु कपाट बंद होने के साक्षी रहे.

शीतकाल के लिए बंद हुए बाबा केदार के कपाट

वहीं, बर्फ की सफेद चादर ओढ़े केदारनाथ धाम से पंच मुखी डोली ने सेना के बैंड बाजों की भक्तमय धुनों के बीच मंदिर की परिक्रमा कर विभिन्न पड़ावों से होते हुए शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ हेतु प्रस्थान किया. आज पंचमुखी डोली का रात्रिप्रवास अपने पहले पड़ाव रामपुर में होगा.

जिसके बाद कल 7 नवंबर डोली विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी प्रवास हेतु पहुंचेगी. वहीं, 8 नवंबर को भगवान केदारनाथ की पंचमुखी डोली के पंच केदार गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ विराजमान हो जायेगी. जहां शीतकाल में श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन और पूजा अर्चना कर सकेंगे.

गौरतलब है कि उत्तराखंड चारधामों में श्री गंगोत्री धाम के कपाट कल 4 नवंबर शीतकाल हेतु बंद हुए जबकि श्री यमुनोत्री धाम के कपाट आज दोपहर में बंद होंगे. वहीं, 20 नवंबर शनिवार भगवान बदरीविशाल के कपाट शीतकाल हेतु बंद होंगे. जिसके बाद 22 नवंबर भगवान मद्महेश्वर जी के कपाट बंद होंगे. वहीं, 25 नवंबर को उखीमठ में मद्महेश्वर मेला का आयोजन किया जाएगा. इस बार साढ़े चार लाख से अधिक तीर्थ यात्री चारधाम यात्रा के लिए पहुंचे थे. जिनमें से दो लाख चालीस हजार से अधिक लोगों ने भगवान केदारनाथ के दर्शन किये.

रावल को स्थानीय भाषा में कहा जाता है बोलांदा केदार

11 हजार 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के केदारनाथ में पृष्ठ भाग की पूजा होती है. मान्यता है कि ग्रीष्मकाल में नर पूजा व शीतकाल में देवतागण केदारनाथ भगवान की पूजा करते हैं. हर वर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर बाबा के कपाट खुलने का दिन तय होता है और फिर ग्रीष्मकाल में बाबा अपने धाम केदारपुरी में भक्तों को दर्शन देते हैं. पौराणिक परंपराओं के अनुसार लिंग समुदाय के लोग ही बाबा केदारनाथ के रावल व पुजारी हुआ करते हैं. ग्रीष्मकाल में जब केदारबाबा केदापुरी में रहते हैं तो उनके माथे पर स्वर्ण मुकुट लगा रहता है, जो कि श्रृंगार दर्शन के दौरान देखा जाता है, मगर जब बाबा की उत्सव डोली पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचती है तो वहीं स्वर्ण मुकुट केदारनाथ के रावल के माथे पर लग जाता है. इसलिए केदारनाथ के रावल को स्थानीय भाषा में बोलांदा केदार के नाम से भी जाना जाता है.

वहीं, जिस तरह से एक बेटी को अपने घर से विदा करते हुए हर परिवार दुखी होता है. ऐसा माहौल बाबा केदार के कपाट बंद होने के दौरान भी स्थानीय लोगों एवं तीर्थपुरोहितों व श्रद्वालुओं में भी साफ देखने को मिलता है. इसके पीछे आस्था व अटूट श्रद्धा तो है. मगर बड़ी बात यह है कि बाबा केदार के केदारपुरी में रहने के दौरान हजारों लोगों को यहां रोजगार मिलता है और उनके घरों के चूल्हे जलते हैं. यही कारण है कि बाबा की विदाई अश्रुपूर्ण होती है. पूर्व परंपरा के अनुसार भैया दूज के दिन भगवान के कपाट छह माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं.

पढ़ें: आज बंद होंगे बाबा केदार के कपाट, भव्य सजाया गया मंदिर

वहीं, केदारनाथ धाम के कपाट बंद होते समय उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड के सदस्य श्रीनिवास पोस्ती, वरिष्ठ पत्रकार एवं देवस्थानम बोर्ड सदस्य आशुतोष डिमरी, आयुक्त गढ़वाल एवं देवस्थानम बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रविनाथ रमन, जिलाधिकारी मनुज गोयल, देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह, पुलिस अधीक्षक आयुष अग्रवाल उप जिलाधिकारी जितेंद्र वर्मा सहित आदि गणमान्य लोग मौजूद थे.

Last Updated : Nov 6, 2021, 10:39 AM IST
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