पिथौरागढ़: चीवनिंग फेलोशिप को ब्रिटिश सरकार स्पॉन्सर करती है. दो महीने की यह फेलोशिप लंदन में यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिन्स्टर में होगी और कुछ क्लास ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी होंगे. इस फेलोशिप के लिए भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका सहित साउथ एशिया के बाकी देशों से कुल 17 पत्रकारों था चयन हुआ है.
पिथौरागढ़ से की पूनम ने पढ़ाई: पूनम ने अपनी पढ़ाई पिथौरागढ़ से ही की है. जीजीआईसी पिथौरागढ़ से बारहवीं के बाद पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज में उन्होंने बीएससी में एडमिशन लिया. कॉलेज में वह छात्र राजनीति में भी काफी सक्रिय रहीं और छात्र संगठन की उपाध्यक्ष भी रहीं. पिथौरागढ़ कॉलेज से ही उन्होंने ऑर्गेनिक केमेस्ट्री में एमएससी की.
महिला अधिकारों पर मुखर हैं पूनम: छात्र राजनीतिक के दौरान पूनम पांडे छात्रों के हितों की लड़ाई और महिला अधिकारों के मुद्दों को लेकर वह लगातार मुखर रहीं. कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद पूनम ने दिल्ली के प्रतिष्ठित आईआईएमसी से टीवी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा किया. इसके बाद पत्रकारिता की शुरूआत न्यूज चैनल से की. “सीएनबीसी आवाज” और “आज तक” जैसे नामी चैनलों में काम करने के बाद पूनम ने प्रिंट मीडिया का रुख किया और 2008 में नवभारत टाइम्स जॉइन किया. एनबीटी जॉइन करने के बाद वे भारत सरकार के पर्यटन विभाग के सहयोग से साउथ अफ्रिका भी गईं थीं.
डिफेंस मामलों की एक्सपर्ट हैं पूनम: पूनम पांडे महिला और बाल अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर लगातार लिखती हैं. वर्तमान में डिफेंस कवर करती हैं. पूनम को पत्रकारिता में योगदान के लिए दिल्ली सरकार का “हिंदी अकादमी पुरस्कार” भी मिल चुका है. महिलाओं से जुड़े मुद्दों को आवाज देने में उनके योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित लाडली मीडिया अवॉर्ड से भी नवाजा गया है.
पूनम के पति भी हैं पत्रकार: पूनम के पति भी उत्तराखंड में इलेक्ट्रानिक मीडिया में सीनियर जर्नलिस्ट हैं. पूनम के पति राज्य आंदोलनकारी भी रहे हैं. पहाड़ के मुद्दों पर उनकी अच्छी पकड़ है. जर्नलिस्ट लाइफ पार्टनर्स की एक 7 साल की बेटी भी है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से निकलकर पूनम ने जिस तरह खुद को राष्ट्रीय मीडिया में स्थापित किया है, वो पहाड़ की लड़कियों के लिए एक प्रेरणा भी है. साथ ही पूनम की सफलताओं ने ये भी साबित किया है कि अगर कुछ कर गुजरने की तमन्ना मन में हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है.
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पूनम पांडे उत्तराखंड से जुड़े मुद्दों पर भी लगातार लिखती हैं. चाहे वह उत्तराखंड की राजनीति से जुड़ा मुद्दा हो या फिर पहाड़ों के युवाओं के रोजगार से जुड़े मुद्दे हों.