'हिमालयन वियाग्रा' के दोहन में दूसरे नंबर पर भारत, मगर उपयोग के मामले में पीछे

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Published : Jan 25, 2021, 11:01 AM IST

Updated : Jan 25, 2021, 11:41 AM IST

pithoragarh

यारसागम्बू हिमालयी क्षेत्रों में तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले पहाड़ों पर पाई जाती है. जिसका दोहन हर साल बड़े पैमाने पर होता है. हिमालय वियाग्रा ने नाम से प्रसिद्ध इस जड़ी बूटी का साइंटिफिक नाम कोर्डिसेप्स साइनेसिस (Caterpillar fungus) है.

पिथौरागढ़: हिमालयन वियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध कीड़ा जड़ी कई गंभीर बीमारियों के काम आता है. जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में लाखों में हैं. हिमालयन कीड़ाजड़ी यारसागम्बू दोहन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में इसका उपयोग नहीं के बराबर ही होता है. चीन में 95 फीसदी यारसागम्बू का उपयोग होता है, जबकि भारत में 2 फीसदी, नेपाल में डेढ फीसदी और भूटान में आधा फीसदी ही होता है. जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान ने स्टडी में ये पाया गया कि इसका इस्तेमाल चाइना में 61 फीसदी, ताइवान में 17, हांगकांग में 5 और भारत में मात्रा 2 फीसदी हो रहा है.

'हिमालयन वियाग्रा' के दोहन के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर भारत.

यारसागम्बू हिमालयी क्षेत्रों में तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले पहाड़ों पर पाई जाती है. जिसका दोहन हर साल बड़े पैमाने पर होता है. हिमालय वियाग्रा ने नाम से प्रसिद्ध इस जड़ी बूटी का साइंटिफिक नाम कोर्डिसेप्स साइनेसिस (Caterpillar fungus) है. करीब 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर होने वाला यारसागम्बू कई मायनों में कारगर है. ये जड़ी बूटी शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में भी मददगार है. जीबी पंत पर्यावरण संस्थान की स्टडी के मुताबिक बायोकेमिकल के तौर पर इसका सबसे अधिक उपयोग चाइना कर रहा है, जबकि ताइवान में इसका बिलकुल भी उपयोग नहीं हो रहा है, वो दूसरे नंबर पर है. मोलेक्यूलर बायलॉजी के क्षेत्र में भी चीन पहले पायदान पर है, दूसरे में जापान और तीसरे में भारत है.

इकोलॉजी में भी पहले नंबर पर चाइना दूसरे में ताइवान और तीसरा नंबर भारत का आता है. नंबर ऑफ स्टडीज की बात करें तो, चाइना ने इसको लेकर 480 अध्ययन कर लिए हैं, जबकि ताइवान ने 76, जापान ने 50 और भारत ने सिर्फ 43 अध्ययन किए हैं. जीबी पंत संस्थान की स्टडी से साफ है कि भारत को अभी भी इस दिशा में काफी काम करने की जरूरत है. ताकि देशवासियों को इस बेशकीमती कीड़ा जड़ी का पूरा फायदा मिल सकें.

उच्च हिमालई क्षेत्रों पाई जाती है कीड़ा जड़ी

भारत और नेपाल के उच्च हिमालई क्षेत्रों में इसका बड़े स्तर पर कारोबार किया जाता है. दुनिया का सबसे बड़ा फंगस कीड़ा (जड़ी) कई गंभीर बीमारियों के काम आता है. कैंसर सहित कई रोग में कारगर साबित हो चुकी कीड़ा जड़ी करीब 3600 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ही मिलती है. कीड़ा जड़ी भारत के अलावा नेपाल, चीन और भूटान के हिमालय और तिब्बत के पठार इलाकों में भी पाई जाती है.

प्रदेश में इन जिलों मिलती है कीड़ा जड़ी

कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाती है. मई से जुलाई माह के बीच पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के दौरान बर्फ से निकलने वाले इस फंगस का स्थानीय लोग बड़े स्तर पर कारोबार करते हैं. इसकी से उनकी आजीविका चलाती है.

तिब्बत के ग्रंथों में भी कीड़ा-जड़ी से जुड़ी जानकारियां

कीड़ा-जड़ी की जानकारी 15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिली थी. इसमें कीड़ा-जड़ी को सभी बीमारियों के इलाज लिए उपयोगी बताया गया था. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का क्रेज चीन में बढ़ने लगा. चीन में इसका प्रयोग थकान दूर करने और सेक्स पावर बढ़ाने वाली दवा के रूप में किया जाता रहा है. 1990 में चीन के एथलीटों ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दिया था. जिसके बाद उनके कोच ने दावा किया था कि कीड़ा जड़ी खाने की वजह से ही एथलीटों की परफॉर्मेंस बढ़ गई थी. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल मेडिसिन के रूप में किया जा रहा है.

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हिमालयन वियाग्रा है रोजगार का जरिया

उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के ऊंचे इलाकों में हर साल भारी संख्या में इसका दोहन होता है. इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत 20 लाख रूपये किलो है. यही वजह है कि उच्च हिमालयी इलाकों में रहने वालों के लिए कीड़ा जड़ी रोजगार का सबसे बड़ा जरिया साबित हुआ है. हालांकि इसके बेतरतीब दोहन और ऊंचे इलाकों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप ने पर्यावरण को भी खासा प्रभावित किया है.

Last Updated :Jan 25, 2021, 11:41 AM IST
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