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Republic day: 1962 युद्ध में राइफल मैन ने दिखाया था पराक्रम, जसवंत रावत का गांव आज भी विकास से कोसों दूर

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Published : Jan 26, 2023, 8:13 PM IST

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भारत चीन युद्ध में राइफल मैन जसवंत रावत ने अपनी अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था. उन्होंने 72 घंटे तक अकेले 300 चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया और शहीद हो गए. वहीं, आजादी के 75 साल पूरे होने के बावजूद उनके पैतृक गांव बाड़ियु आज भी विकास से कोसों दूर है. जिसको लेकर गांवों के लोग सरकार और अपने क्षेत्रीय विधायक से नाराज हैं.

जसवंत रावत का गांव आज भी विकास से कोसों दूर

श्रीनगर: साल 1962 में भारत-चीन की युद्ध में राइफल मैन जसवंत सिंह रावत ने अपनी वीरता और पराक्रम का परिचय दिया था. उस समय जब चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश में कब्जा करने के मंसूबे से पहुंचे थे, तब जसवंत रावत ने उनके नापाक इरादे पूरे नहीं होने दिया, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज आजादी के 75 साल पूरे होने के बावजूद उनका पैतृक गांव बाड़ियु सुविधाओं से महरूम है.

राइफल मैन जसवंत सिंह रावत का पैतृक गांव पौड़ी गढ़वाल के बाड़ियु है. 1962 में जब चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश में कब्जा करने के उद्देश्य से पहुंची थी, लेकिन राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने उनकी योजना सफल नहीं होने दी. जबकि चीनी सैनिकों के हमले में सभी भारतीय सैनिक मारे जा चुके थे. फिर भी राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही 72 घंटों तक 300 चीनी सैनिकों से डटकर मुकाबला करते हुए देश के लिए शहीद हो गए.

आज भी उनके गांव में उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता है. उनकी वीरता का सम्मान किया जाता है. पहाड़ का हर युवा जसवंत सिंह रावत बनने के सपने लेकर सेना में जाने की तैयारी कर रहा है. वहीं दूसरी ओर उनके गांव बाड़ियु के ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव तक आने के लिए पक्की सड़क का निर्माण तक नहीं करवाया गया है. कुछ ही स्थानों पर सड़क पक्की है. ग्रामीणों को पेयजल समस्या से भी दो-चार होना पड़ता है. गर्मियों में यहां पर पानी की काफी किल्लत होती है.
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गांव की अनदेखी से नाराज लोगों ने क्षेत्रीय विधायक दिलीप सिंह रावत और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज पर भी आरोप लगाया. ग्रामीणों ने कहा राइफल मैन जसवंत सिंह रावत के लिए कोई भी कार्य नहीं किया गया है. मात्र खानापूर्ति के लिए एक छोटा सा शिलापट्ट लगाया गया है. जिस पर मूर्ति तक नहीं बनवाई गई है. ग्रामीणों ने कहा मूलभूत सुविधा के अभाव में आज गांव पलायन की मार झेलने को तैयार है. कुछ परिवार ही गांव में रह गए हैं. यदि जल्द ही गांव को संवारने का प्रयास नहीं किया गया तो बचे हुए लोग भी पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे.

पूर्व सैनिक रमेश बोडाई कहते है इस इलाके का जिस तरह से विकास होना चाहिए था, वह आज तक नहीं हुआ. आज भी इस क्षेत्र के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. राइफल मैन जसवंत सिंह के रिश्तेदार सतेंद्र ने बताया कि आज लोग ये नहीं जानते हैं कि राइफल मेन जसवंत सिंह का गांव बाड़ियु में है. सिर्फ देहरादून जैसे बड़े शहरों तक ही इनकी याद में कार्यक्रम किए जाते हैं, लेकिन गांव में कोई भी नहीं आता है.

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