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कुमाऊं की कुलदेवी हैं मां नंदा-सुनंदा, 11 सितंबर से महोत्सव का आगाज

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Published : Aug 31, 2021, 3:45 PM IST

Updated : Aug 31, 2021, 4:31 PM IST

कुमाऊं में कुल देवी के रूप में पूजी जाने वाली मां नंदा-सुनंदा महोत्सव का आगाज 11 सितंबर से होगा. इसके तहत 12 सितंबर को ज्योलीकोट से कदली वृक्ष नैनीताल लाया जाएगा. जबकि, 13 सितंबर को मूर्ति निर्माण और 17 सितंबर को मूर्ति का विसर्जन किया जाएगा. महोत्सव का आयोजन कोविड नियमों के तहत होगा.

maa nanda sunanda
मां नंदा-सुनंदा

नैनीतालः उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. यही वजह है कि उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. ऐसे में देवी देवी-देवताओं के आह्वान के लिए यहां समय-समय विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. ऐसा ही एक पारंपरिक आयोजन मां नंदा देवी महोत्सव भी है. जो आगामी 11 सितंबर से शुरू होने जा रहा है. इस बार महोत्सव का आयोजन कोविड नियमों के तहत किया जाएगा. फिलहाल, आम श्रद्धालुओं के लिए सरकार की अनुमति का इंतजार है.

नैनीताल में हर साल आयोजित होने वाले मां नंदा देवी महोत्सव को लेकर आयोजन समिति रामसेवक सभा की ओर से सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. आगामी 11 सितंबर से मां नंदा देवी महोत्सव का आगाज होगा. जिसे लेकर राम सेवक सभा की ओर से कमेटियों का गठन कर लिया गया है. जिसमें कदली वृक्ष संयोजक विमल रौतेला, भीम सिंह कार्की, मंडप निर्माण का कार्य हिमांशु जोशी, घनश्याम शाह, गिरीश जोशी, किशन नेगी को दी गई है.

मां नंदा-सुनंदा महोत्सव की तैयारी.

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रामसेवक सभा के सचिव मुकेश जोशी ने बताया कि मूर्ति निर्माण के लिए 11 सितंबर को एक दल कदली वृक्ष लेने ज्योलिकोट जाएगा. जबकि, 12 सितंबर को कदली वृक्ष (केले के पेड़) को नैनीताल लाया जाएगा. जिसका महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा और रीति-रिवाज के साथ स्वागत करेंगी. 13 सितंबर को कदली वृक्ष से मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण किया जाएगा. इसके बाद 14 सितंबर को मां की मूर्तियों का निर्माण कर ब्रह्म मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा कर भक्तों के दर्शन के लिए रख दिया जाएगा. वहीं, आगामी 17 सितंबर को मूर्ति विसर्जन के साथ महोत्सव का समापन होगा.

कुमाऊं के लोग मां नंदा-सुनंदा देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमाओं को नगर भ्रमण कराने के बाद नैनी झील में विसर्जित करने की परंपरा है. मान्यता है कि मां अष्टमी के दिन स्वर्ग से धरती पर अपने मायके में विराजती हैं और 3 दिन अपने मायके में रहने के बाद पुनः वापस अपने ससुराल लौट जाती हैं. जिस वजह से मां के डोले को झील में विसर्जित करने की परंपरा है, लेकिन नगर भ्रमण समेत भव्यता पर अभी सरकार की अनुमति का इंतजार है.

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वहीं, सचिव मुकेश जोशी ने बताया कि कोविड-19 नियमों के तहत महोत्सव का आयोजन किया जाएगा. हालांकि, भक्त मंदिर में आ सकेंगे या नहीं ये राज्य सरकार की ओर से जारी आदेश के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा. वहीं, भक्तों को मां के दर्शन करवाने और प्रसाद वितरण करवाने के लिए राम सेवक सभा की ओर से सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं.

Last Updated : Aug 31, 2021, 4:31 PM IST
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