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शिवजी का चमत्कारी शिवलिंग, जो चंद्रमा की सोलह कलाओं के साथ बदलता है स्वरूप

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Published : Mar 28, 2022, 5:03 AM IST

Updated : Apr 5, 2022, 1:24 PM IST

धर्मनगरी हरिद्वार के कनखल स्थित प्राचीन सिद्धपीठ श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर यहां के पौराणिक मंदिरों में से प्रमुख है. तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग चंद्रमा की सोलह कलाओं के साथ अपना रूप हर दिन बदलता है. जानिए तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता...

Tilbhandeshwar Mahadev
हरिद्वार चमत्कारी महादेव मंदिर

हरिद्वार: वैसे तो धर्म नगरी हरिद्वार में कई विश्वविख्यात देवी देवताओं के मंदिर स्थित हैं लेकिन दक्ष नगरी कनखल में भगवान भोलेनाथ का एक ऐसा चमत्कारी शिवलिंग स्थापित है, जो चंद्रमा की सोलह कलाओं के साथ अपना रूप हर दिन बदलता है. बताया जाता है कि यह शिवलिंग कई सौ साल पुराना है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी किया गया है. आम शिवलिंग की तरह यह शिवलिंग केवल धरती के ऊपर नहीं, बल्कि धरती के कई फीट नीचे तक विराजमान हैं. इस शिवलिंग को इसके ईशान कोण में स्थापित होना इस शिवलिंग को और अलग बनाता है.

हरिद्वार के कनखल स्थित प्राचीन सिद्धपीठ श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर यहां के पौराणिक मंदिरों में से प्रमुख है. शिवपुराण में भी इस मंदिर का वर्णन है. मंदिर में लक्ष्मी-नारायण, मां दुर्गा और बजरंग बली की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं. मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित किया गया है. इसकी गोलाई करीब पांच फीट और ऊंचाई दो फीट के आसपास है.

तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता: दक्ष नगरी कनखल को आदिकाल से ही भगवान शंकर की ससुराल, माता सती का मायका, राजा दक्ष की नगरी व ब्रह्मांड की राजधानी के रूप में जानी जाती है. इस पौराणिक नगरी का महत्व यहां भगवान शंकर के एक अद्भुत शिवलिंग के कारण भी बढ़ जाता है. हरिद्वार के कनखल स्थित प्राचीन सिद्धपीठ श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर यहां के पौराणिक मंदिरों में से प्रमुख है.

शिवजी का चमत्कारी शिवलिंग.

सिद्धपीठ श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है. इस मंदिर के गर्भगृह में यह अलौकिक शिवलिंग स्थापित है. बताया जाता है की यह शिवलिंग किसी के द्वारा स्थापित नहीं किया गया, बल्कि यह स्वयंभू शिवलिंग है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है की इस शिवलिंग का स्वरूप रोजाना तिल तिल बदलता है, जिस कारण इसे तिलभांडेश्वर महादेव भी कहा जाता है. यहां पर गंगाजल के साथ तिल चढ़ाए मात्र से भगवान शंकर प्रसन्न हो जाते हैं.
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माता सती से मान्यता: शास्त्रों में बताया गया है की जब माता सती ने भोले नाथ को प्राप्त करने के लिए तप किया था, तो उन्होंने राजभवन के ईशान कोण में आकर इसी स्थान पर तप कर भोलेनाथ को वर के रूप में पाया था.

गंगा तक है शिवलिंग की गहराई: भगवान शंकर का यह तिलभांडेश्वर मंदिर वैसे तो गंगा तट से करीब 10 से 12 फुट की ऊंचाई पर स्थित हैं. लेकिन कई दशक पहले जब मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जा रहा था, तो इस शिवलिंग की गहराई को मापने का प्रयास किया गया था. उस समय यह शिवलिंग सतह से करीब 15 फुट नीचे तक मौजूद था, जो गंगा के तल से भी 3 फुट नीचे है. इतनी नीचे तक खुदाई के बाद महंत ने इससे आगे शिवलिंग की खुदाई नहीं कराई और दोबारा शिवलिंग को मिट्टी से ढक दिया गया.

सोमवार को जुटती है भीड़: सोमवार भगवान शंकर का दिन है. यही कारण है की इस तिलभांडेश्वर महादेव पर सोमवार को ही जल चढ़ाने का विशेष महत्व हैय इसके साथ श्रावण व फाल्गुन मास के कावड़ के दौरान भारी संख्या में श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करने आते हैं.

कैसे पहुंचें: कनखल में स्थित तिलभांडेश्वर मंदिर की हरिद्वार रेलवे और बस स्टेशन से दूरी तकरीबन 5 से 6 किलोमीटर है. हरिद्वार के लिए सीधी बस और रेल सेवा है. नजदीक का हवाई अड्डा जौलीग्रांट 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बस और रेलवे स्टेशन से रिक्शा, ऑटो और टैक्सी के जरिए यहां पहुंचा जा सकता है. अपने वाहन से आने वाले कनखल के मुख्य बाजार में इस स्थित इस मंदिर के दर्शन कर सकते हैं.

Last Updated : Apr 5, 2022, 1:24 PM IST
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