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रामनगर से रणजीत रावत की दावेदारी हुई ध्वस्त, हरीश रावत को मिला टिकट, बढ़ेगा जय-बीरू का घमासान !

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Published : Jan 24, 2022, 7:18 PM IST

Updated : Jan 25, 2022, 6:30 AM IST

Ramnagar assembly seat
हरीश रावत की मुश्किलें

सियासत में न कोई दोस्त होता और न ही कोई दुश्मन. सिसायत में सिर्फ और सिर्फ अपना फायदा देखा जाता है. समय के हिसाब से नेता अपने को बदलते रहते हैं. कभी एक-दूसरे के लिए जान देने वाले रणजीत सिंह रावत और हरीश रावत की राहें पिछले कुछ सालों से जुदा-जुदा हैं. इसका असर एक बार उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में देखने को मिल रहा है. रणजीत रावत रामनगर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन हरीश रावत ने बाजी मार ली है. हरीश रावत रामनगर से चुनाव लड़ेंगे.

देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का एक ऑडियो वायरल (harish Rawat audio viral) हो रहा है, जिसमें हरीश रावत रामनगर (arish Rawat want to contest) के एक नेता-कार्यकर्ता से बात कर रहे हैं और अपने लिए रामनगर सीट पर फीडबैक मांग रहे हैं. जिसका जवाब सीधे तौर पर उन्हें नहीं में मिला है. कार्यकर्ता ने साफ कह दिया कि भाई वो लोग रणजीत रावत के साथ हैं और उन्हीं को टिकट देने की मांग भी कर रहे हैं. बताया जा रहा है रणजीत रावत (Ranjit Singh Rawat) पिछले 5 साल से इस सीट पर तैयारी कर रहे थे. लिहाजा वह इस बार भी रामनगर सीट से ही मैदान में उतरना चाहते हैं. लेकिन हरीश रावत ने इस सीट से अपना टिकट करवा लिया.

इस ऑडियो के सामने आने के बाद उत्तराखंड के सियासी गलियारों में राज्य के पूर्व सीएम हरीश रावत और कभी उनके बेस्ट फ्रेंड रहे सहयोगी रणजीत सिंह रावत के बीच की तल्खी को लेकर पुरानी कहानियां हवाओं में तैरने लगीं.

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कैसे टूटी जय-बीरू की ये जोड़ी: ये जानना सभी के लिए दिलचस्प होगा कि कभी हरीश-रणजीत की जोड़ी उत्तराखंड में जय-बीरू की जोड़ी कहलाती थी. इनकी दोस्ती के चर्चे होते थे, लेकिन फिर कुछ ऐसी खटास आई कि आज एक सीट पर दोनों के बीच इस तरह सिर फुटव्वल हो रही है.

दरअसल, 2014 में जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे, तब हारे हुए विधायक होने के बाद भी रणजीत रावत की तूती बोलती थी. वो सरकार के सबसे ताकतवर हस्ती थे. सरकार की तमाम व्यवस्थाएं देखा करते थे. यहां तक कि वो सरकार में अघोषित डिप्टी सीएम माने जाते थे. रणजीत की बातों की इतनी अहमियत थी कि हरीश रावत के शपथ ग्रहण के दिन ही रणजीत ने एक चर्चित आईपीएस अफसर को हटाने की बात कही थी और चंद घंटे बाद ही वो आईपीएस हटा दिए गए थे.

कैसे शुरू हुई दरार: दोनों नेताओं के रिश्तों में दरार वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुरू हुई और पिछले साल जुलाई में यूथ कांग्रेस के चुनाव के बाद यह दरार और बढ़ गई. चर्चाएं ये हैं कि चुनाव से संबंधित किसी बात को लेकर दोनों के बीच बहस के बाद स्थितियां तल्ख हो गईं. खबरें हैं कि राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने दोनों के बीच दरारें पैदा कर दीं.

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अब हालात ये हैं कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत तक नहीं है. पिछले साल तो रणजीत रावत ने हरीश रावत को घर बैठने की सलाह तक दे डाली थी. रणजीत रावत का कहना था कि, उम्र बढ़ने के साथ हरीश रावत का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है, इसलिए उन्हें अब घर पर रहकर आराम करने की जरूरत है.

यही नहीं, पिछले साल सल्ट उपचुनाव में रणजीत रावत ने पार्टी से टिकट की मांग की थी, लेकिन टिकट गंगा पंचोली को दिया गया, जिसके बाद रणजीत रावत ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि 35 साल पहले जब वो हरीश रावत के साथ जुड़े थे तो तूफान से भी लड़ जाते थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि हरीश रावत डर गए हैं. उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगने के दौरान टोना-टोटका करने लगे थे. यही नहीं, तांत्रिकों के चक्कर में पड़कर बंदर-सुअर कटवाते थे और श्मशान घाट में जाकर शराब से नहाते थे. रणजीत ने बताया था कि हरीश रावत को बदलना मुश्किल था. इसलिए उन्होंने उनका साथ छोड़ा था.

यूं ही नहीं रामनगर पर निशाना: ये इत्तेफ़ाक नहीं है कि हरीश रावत रामनगर से ही लड़ना चाहते थे. दरअसल, पूरे प्रदेश में रामनगर सीट का अपना इतिहास और महत्व है. रामनगर उत्तराखंड की सबसे हॉट सीटों में से एक मानी जाती है. 22 साल के इतिहास में ये माना जाता है कि जिस पार्टी का विधायक रामनगर सीट से जीता सरकार उसी पार्टी की बनती है. इतना ही नहीं, उत्तराखंड की पहली निर्वाचित कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री दिवंगत नारायण दत्त तिवारी ने उपचुनाव में रामनगर सीट से ही चुनाव जीता था, जो​ कि 5 साल तक एकमात्र मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा करने का रिकॉर्ड बनाने में कामयाब रहे.

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2002 में कांग्रेस के योगम्बर सिंह रावत विधायक बने तो कांग्रेस की सरकार बनी. 2007 में भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट चुनाव जीते और सरकार भाजपा की बनी. 2012 में रामनगर से कांग्रेस के टिकट पर अमृता रावत चुनाव जीतीं और सरकार कांग्रेस की बनी. 2017 में एक बार फिर से दीवान सिंह बिष्ट चुनाव जीते और सरकार भाजपा की बन गई. इस वजह से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे.

क्या है गेम प्लॉन: कांग्रेस का चेहरा माने जाने वाले हरीश रावत को पार्टी सेफ सीट मानी जाने वाली रामनगर सीट से टिकट देना चाहती थी. जबकि कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत सीट छोड़ना नहीं चाहते थे. हरीश रावत रणजीत सिंह को सल्ट सीट पर भेजना चाहते हैं, जहां पिछले साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. ये गेम प्लॉन रणजीत अच्छे से समझ रहे थे और सीधे रामनगर सीट पर दावा ठोककर बैठ गये थे. उनका कहना था कि उन्होंने इस सीट पर 15 सालों से काम किया है और जनता व कार्यकर्ता भी उन्हीं के साथ हैं.

रणजीत का साफ कहना था कि अगर उनको ये सीट नहीं दी गई तो वो निर्दलीय मैदान में उतर जाएंगे. ऐसा इसलिए भी क्योंकि रणजीत को पता है कि रामनगर सीट से उनकी जीत की गारंटी है. 2017 में चुनाव हारने के बाद से ही रणजीत सिंह रामनगर में काफी सक्रिय थे. लेकिन हरीश रावत ने सामने फिलहाल रणजीत रावत राजनीति के कच्चे खिलाड़ी साबित हुए हैं. हरीश रावत ने रामनगर सीट से अपना टिकट कराकर ये साबित कर दिया है.

Last Updated :Jan 25, 2022, 6:30 AM IST
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