उत्तराखंड के इन इलाकों पर है चीन की नजर, सरकार का 'सूचना तंत्र' कर रहा पलायन

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Published : Jun 29, 2020, 10:42 PM IST

गांव कर रहे अलर्ट

भारत-चीन विवाद गहराता ही जा रहा है, ऐसे में उत्तराखंड से सटे चीन बॉर्डर पर भारत की रक्षा कर रहे गावों के लोग सरकार की मदद कर रहे हैं. आईए देखते है एक रिपोर्ट..

देहरादून: लद्दाख के गलवान घाटी में खूनी झड़प चीन के गलत मंसूबों का सबूत है. हालांकि जमीन के भूखे चीन की नजर सिर्फ लद्दाख पर ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान में दाखिल होने के लिए उत्तराखंड की जमीन पर भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि सूबे के तीन जिले चीन सीमा से सटे हैं. चिंता की बात यह है कि इन इलाकों में भारतीय सेना का सूचना तंत्र लोगों के पलायन करने की वजह से धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया है. लेकिन, भारत सरकार और हमारे वीर जवानों की तैनाती ने चीन के मंसूबों पर पानी फेर दिया है. देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

उत्तराखंड का चीन से सटा इलाका सामरिक दृष्टि से बेहद खास है. बावजूद पिछले कई सालों से इन क्षेत्रों में सूचना तंत्र को भारी नुकसान हुआ है. बॉर्डर पर देश की आंख-कान कहे जाने वाली आबादी पलायन कर रही है. वो बात अलग है कि चीन की हरकतों को केंद्र ने पहले ही भांपकर करीब 8 महीने पहले ही सीमावर्ती क्षेत्र की रिपोर्ट तैयार कर ली थी. उत्तराखंड के तीन जिलों के चार ब्लॉक चीन बॉर्डर से जुड़े हुए हैं. इसमें उत्तरकाशी का भटवाड़ी, चमोली का जोशीमठ और पिथौरागढ़ का मुनस्यारी और धारचूला है.

सरकार का 'सूचना तंत्र' कर रहा पलायन.

बता दें कि, मोदी सरकार ने चीन की पैतरेबाजी को समझते हुए साल 2019 के सितंबर को चीन के बॉर्डर क्षेत्रों की पूरी रिपोर्ट राज्यों से मंगवा ली थी. उत्तराखंड की तरफ से पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को बॉर्डर के हालातों की जानकारी दी थी. इससे पहले चीन सीमा से सटे हुए राज्य हिमाचल, लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से भी रिपोर्ट मांगी गई थी. यही नहीं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद की एक टीम ने उत्तराखंड पहुंचकर यहां का भी दौरा किया था.

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की इस एक्सरसाइज का मकसद बॉर्डर क्षेत्रों में भारतीय सेना के सूचना तंत्र को बढ़ाना और भारत की आंख और कान कहे जाने वाले सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों के पलायन को रोकना था. उत्तरकाशी जिले के सीमावर्ती क्षेत्र के रहने वाले जगमोहन सिंह रावत बताते हैं कि इन इलाकों में पलायन को रोकने के लिए मूलभूत सुविधाओं का बेहतर होना बेहद जरूरी है. ताकि, चीन को इन इलाकों में घुसपैठ से रोका जा सके.

उत्तराखंड के चीन से लगे 4 विकासखंड भटवाड़ी, जोशीमठ, मुनस्यारी और धारचूला है. जहां से बड़ी संख्या में ग्रामीणों का पलायन हुआ है. उत्तराखंड पलायन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि इन सीमावर्ती जिलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी की वजह से बॉर्डर क्षेत्र से लोगों को शहरों की तरफ रुख करने के लिए मजबूर कर दिया. जिसका परिणाम यह हुआ कि सीमा से सटे कई गांव खाली हो गए.

जिस कारण चीनी सेना की घुसपैठ की जानकारी भारतीय सेना या प्रशासन को मिलना बेहद मुश्किल हो गया है. इससे इतर देखा जाए तो बॉर्डर क्षेत्र के गांव अगर आबाद होते तो चीनी सेना की घुसपैठ और बॉर्डर पार करने की कोशिश की सूचना आसानी से सेना को स्थानीय लोगों से मिल जाएगी. लेकिन, गांवों से लोगों के पलायन की वजह से चीनी सेना के घुसपैठ का खतरा उतरोतर बढ़ता ही गया.

पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सीमावर्ती जिला उत्तरकाशी में 41.77 प्रतिशत लोगों ने रोजगार के चलते पलायन किया, चिकित्सा सुविधा के कारण 6.04 प्रतिशत लोग पलायन कर गए. शिक्षा व्यवस्था न होने से 17.44 प्रतिशत लोग यहां से चले गए. जबकि, 3% लोगों ने आधारभूत संरचना, सड़क और दूसरी सुविधाएं के अभाव के कारण पलायन कर लिया.

चमोली जिले में 49.3% लोगों ने रोजगार न मिलने के कारण गांव छोड़ दिया, खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण 10.83 प्रतिशत, खराब शिक्षा के कारण 19.73 प्रतिशत, जबकि आधारभूत संरचना जिसमें सड़क सुविधा शामिल है के कारण 5 प्रतिशत लोग पलायन कर गए.

अगर हम पिथौरागढ़ की बात करें तो 42.81% लोग रोजगार के कारण गांव छोड़ कर चले गए. स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण 10.13% लोग जबकि खराब शिक्षा व्यवस्था के कारण और 19. 52% लोगों ने पिथौरागढ़ में अपने गांव को छोड़कर पलायन किया है. इसी तरह 5% लोगों ने सड़क और दूसरी आधारभूत सुविधाएं न मिलने के कारण अपने गांव छोड़ दिए.

हालांकि, इस मामले पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि एकाएक पलायन नहीं होता है और रिवर्स पलायन करवाने की कोशिशें सरकार कर रही है. खास तौर पर उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों को पलायन को लेकर सजग रहने की जरूरत है.

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