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स्पेस टेक्नोलॉजी से उत्तराखंड में रेशम उत्पादन को मिलेगा बढ़ावा, IIRS ने तैयार किया सैटेलाइट मैप

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Published : Jul 11, 2022, 9:23 PM IST

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उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) की ओर से सोमवार को रेशम उत्पादन विकास में रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के अनुप्रयोग विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई. जिसमें विशेषज्ञों ने रेशम उत्पादन को लेकर विस्तार से जानकारी दी.

देहरादून: राजधानी देहरादून में सोमवार को रेशम उत्पादन विकास में रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के अनुप्रयोग विषय पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. यूसैक द्वारा आयोजित इस वर्कशॉप में मुख्य अतिथि के रूप में नेशनल रिमोट सेसिंग सेंटर हैदराबाद के निदेशक प्रकाश चौहान मौजूद रहे और उन्होंने इस कार्यशाला का उद्घाटन किया.

इस दौरान उन्होंने कहा कि हिमालय के सर्वागीण विकास एवं पर्यावरणीय संतुलन के लिए अंतरिक्ष आधारित सूचना तकनीक का महत्वपूर्ण योगदान है. आज अंतरिक्ष तकनीक मानव के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी वर्तमान में आम जनमानस की पहली प्राथमिकता बन गयी है.
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उन्होंने कहा कि हमारा देश अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के उन चुनिंदा देशों में स्थान पा चुका है, जो अपने स्पेस कार्यक्रमों के अतिरिक्त अन्य बड़े राष्ट्रों के भी स्पेस कार्यक्रमों में सहायता करता है. हम आज अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं.

कार्यशाला में जानकारी दी गई कि यूसैक ने एनई सैक शिलॉन्ग द्वारा वित पोषित सेरीकल्चर डेवलपमेंट परियोजना में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से रेशम उत्पादन हेतु उत्तराखंड के सम्पूर्ण ब्लॉक में सम्भावित क्षेत्रों को मानचित्रों के रूप में उपलब्ध कराया है, जिससे रेशम विभाग को उन अधिक उत्पादन वाले क्षेत्रों को चिन्हित करने में आसानी होगी.

वहीं, इस मौके पर युसैक के निदेशक डॉ एमपीएस बिष्ट ने कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं उसके अनुप्रयोग राज्य के भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहां के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं संवर्द्वन के लिये अत्यन्त लाभकारी सिद्व हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि यूसैक द्वारा उत्तर-पूर्वी अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र, शिलांग के वित्तीय सहयोग से सम्पादित इस परियोजना के तहत किये गए कार्यों को राज्य के रेशम विभाग एवं अन्य रेखीय विभागों के अधिकारियों एवं लाभार्थियों के साथ साझा करने हेतु इस एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है.
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उन्होंने कहा कि पर्वतीय राज्य होने के कारण उत्तराखण्ड में टसर सिल्क उत्पादन की बेहतर संभावना है. यहां बांज प्राकृतिक रूप से अत्यधिक मात्रा में पैदा होता है, जिससे टसर सिल्क का उत्पादन किया जाता है. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से रेशम उत्पादन हेतु उपयुक्त भूमि का चयन सम्भावित क्षेत्रों की उपलब्धता एवं पहचान कर उपयुक्त प्रजाति के पौधरोपण एवं उत्पादन में वृद्वि कर किसानों की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है.

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