यहां शिव का जलाभिषेक कर गायब हो जाती है जलधारा, रहस्यों को समेटे है महासू मंदिर

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Published : May 8, 2019, 7:33 AM IST

Updated : May 8, 2019, 7:53 AM IST

देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर स्थित महासू देवता मंदिर की. प्रसिद्ध महासू देवता का यह मंदिर चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है. लोगों की आस्था उन्हें इस पवित्र धाम में खींच लाती है. मंदिर की दिव्यता के बारे में सुनकर ही देश के अन्य प्रांतों से भारी संख्या में श्रद्धालु यहां शीष नवाने आते हैं. मंदिर की बेजोड़ वास्तु और स्थापत्यकला लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है.

विकासनगर: भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं, तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने दुखों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते हैं. ऐसा ही एक शिव धाम देवभूमि के जौनसार बावर क्षेत्र में स्थित है, जहां स्वयं प्रकृति गंगाधर का श्रृंगार करती है.

मंदिर का राष्ट्रपति भवन से कनेक्शन

हम बात कर रहे हैं देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर स्थित महासू देवता मंदिर की. प्रसिद्ध महासू देवता का यह मंदिर चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है. लोगों की आस्था उन्हें इस पवित्र धाम में खींच लाती है. मंदिर की दिव्यता के बारे में सुनकर ही देश के अन्य प्रांतों से भारी संख्या में श्रद्धालु यहां शीष नवाने आते हैं. मंदिर की बेजोड़ वास्तु और स्थापत्यकला लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है. इस मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रकृति के साथ ही मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को देखने का मौका मिलता है. इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण में भी शामिल किया गया है. महासू देवता जौनसार बावर के साथ ही हिमाचल प्रदेश के ईष्ट देव भी हैं. इसके साथ ही महासू देवता मंदिर का राष्ट्रपति भवन से भी सीधा कनेक्शन है. मंदिर में हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट किया जाता है.

महासू देवता मंदिर समेटे है कई रहस्य.

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भगवान शिव के रूप में चार भाई

महासू असल में एक देवता नहीं बल्कि 4 देवताओं का सामूहिक नाम है. स्थानीय भाषा में महासू शब्द का अर्थ भगवान शिव से है. चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है, जो सभी बाबा भोलेनाथ के ही रूप हैं. इनमें बासिक महासू बड़े हैं, जबकि बौठा महासू, पबासिक महासू, चालदा महासू दूसरे तीसरे और चौथे नंबर पर हैं. मान्यता है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था. वहीं, इनकी पालकी को लोग पूजा-अर्चना के लिए नियमित अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह प्रवास पर ले जाते हैं. बौठा महासू के हनोल मंदिर में छात्रा गांव के लोग पुजारी हैं. चारों देवताओं के जौनसार बावर में चार छोटे-छोटे पुरानी मंदिर भी स्थित है.

महासू मंदिर हनोल के 4 दरवाजे

महासू मंदिर में प्रवेश के 4 दरवाजे हैं. प्रवेशद्वार की छत पर नव ग्रह सूर्य, चंद्रमा, गुरू, बुध, शुक्र, शनि, मंगल, केतु व राहु की कलाकृति बनी है. पहले और दूसरे द्वार पर विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं. वहीं, दूसरे द्वार पर ढोल नगाड़े के साथ पूजा-अर्चना होती है. तीसरे द्वार पर स्थानीय लोग, श्रद्धालु और सैलानी माथा टेकते हैं. अंतिम द्वार से गर्भ गृह में सिर्फ पुजारी को ही जाने की अनुमति है और वह भी पूजा के समय ही जा सकते हैं. किवदंतियां हैं कि पांडवों ने घाटा पहाड़ के पत्थरों को ढोकर विश्वकर्मा जी से हनोल मंदिर का निर्माण कराया था.

मंदिर में जलती है अखंड ज्योति

बताया जाता है कि गर्भगृह में एक दिव्य ज्योत सदैव जलती रहती है और मंदिर के अंदर ही जल की धारा निकलती है, जिसका जल बाहर नहीं दिखता. जल को ही यहां प्रसाद के रूप में दिया जाता है. किवदंती है कि त्यूणी-मोरी रोड पर बना महासू देवता का मंदिर जिस गांव में बना है उस गांव का नाम हुना भट्ट ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है. पहले इस स्थान को चकरपुर के रूप में जानी जाता था. बताया जाता है कि पांडव लाक्षागृह से निकलकर यहां आए थे. इसलिए हनोल का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है. महासू देवता मंदिर को पांचवें धाम के रूप में दर्जा देने की मांग चल रही है.

क्या कहते हैं जानकार

इतिहास के जानकार श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि जौनसार बावर प्राचीन देश रहा है. जौनसार बावर में पांडवों का सम्मान भी रहा है और यह मान्यता प्रबल हो जाती है कि काष्ट कला के मंदिर के अनेक आयाम जुड़े हैं, जिनके भक्त स्थानीय ही नहीं देश के अन्य प्रांतों के लोग भी हैं. साथ ही लोगों द्वारा मंदिर में पूजा सामग्री भेजी जाती रही है.

वहीं सामाजिक कार्यकर्ता भारत चौहान महासू देवता को न्याय प्रिय देवता मानते हैं. उन्होंने बताया कि संपूर्ण विश्व में जो भी शक्तिशाली होता है उससे न्याय की उम्मीद होती है. इसी प्रकार से जौनसार बावर के आराध्य महासू देवता पर हिमाचल, जौनपुर, टिहरी गढ़वाल के लोग अटूट श्रद्धा रखते हैं और न्याय की गुहार लगाते हैं.

हनोल महासू मंदिर के पुजारी राय दत्त जोशी का कहना है कि दिल्ली से गूगल धूप डाक द्वारा प्रतिवर्ष भेजा जाता है, लेकिन यह पता नहीं है कि कौन इसे भेजता है. हर वर्ष यह गूगल धूप हनोल मंदिर को प्राप्त होता है. उन्होंने बताया कि जो भी लोग कोर्ट कचहरी से थक हार जाते हैं वह हनोल मंदिर में अपनी सच्ची आस्था से न्याय दिलाने के साथ ही कष्टों के निवारण के लिए फरियाद कर सकते हैं. लोगों का मानना है कि सच्चे मन से उपासना करने से हर मुराद यहां पूरी होती है.

Intro:उत्तराखंड के जौनसार बावर में त्रिवेणी मोरी मार्ग पर हनोल गांव स्थित महासू देवता मंदिर में आस्था और श्रद्धा का अनूठा संगम देखने को मिलता है नौवीं शताब्दी में बनाया गया महासू देवता मंदिर काफी प्राचीन है महासू देवता को न्याय का देवता भी माना जाता है


Body:मिश्रित शैली की स्थापत्य कला देखने को मिलती है इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण में भी शामिल किया गया है
लोक मान्यता है कि पांडवों ने शिवालिक पर्वत संख्याओं से पत्रों की धुलाई कर देव शिल्पी विश्वकर्मा की मदद से हनोल मंदिर का निर्माण कराया था बिना गारे की चिनाई वाले इस मंदिर के 32 कोने बुनियाद से लेकर ज्ञ तक एक के ऊपर रखे कटे पत्रों पर टिके हैं मंदिर के गर्भ गृह में सबसे ऊपर भीम छेत्री यानी भीमसेन का घाटा पहाड़ से लाया गया एक विशालकाय पत्थर स्थापित किया गया है भेजो ना काशी मंदिर की भव्यता में चार चांद लगाती है
भगवान के शिव के रूप में चारों भाई
महासू असल में एक देवता नहीं बल्कि 4 देवताओं का सामूहिक नाम है स्थानीय भाषा में महासू शब्द महाशिव का अपभ्रंश है चारों भाइयों के नाम बासिक महासू बूठिया महासू और चालदा महासू है जो कि भगवान शिव के ही रूप माने गए हैं इनमें बासिक महासूसबसे बड़े हैं जबकि बौठा महासू पबासिक महासू चालदा महासू दूसरे तीसरे और चौथे नंबर के हैं
बौठा महासू का मन्दिर हनोल में मासिक माशूका महेंद्र में और पब आशिक माशूका मंदिर बंगाल क्षेत्र के ठडियार में है जबकि चालदा महासू हमेशा जौनसार बावर बंगाण फतेहपर्वत व हिमाचल क्षेत्र के प्रवास पर रहते हैं
इनकी पालकी को चित्र लोग पूजा अर्चना के लिए नियमित अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह प्रवास पर ले जाते हैं देवता के प्रवास पर रहने से कई खातों में दशकों बाद चल्दा महासू के दर्शन नसीब हो पाते हैं कुछ इलाकों में तो देवता के दर्शनों की चाह में पीलिया गुजर जाती है उत्तराखंड के उत्तरकाशी संपूर्ण जौनसार बावर हवाई परगना के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर सोलन शिमला शहर और जुब्बल तक महासू देवता को इष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मंदिर को न्यायालय के रूप में मान्यता मिली हुई है
बोठा महासू के हनोल मंदिर में 99 छात्रा गांव के लोग पुजारी हैं जबकि महेंद्र स्थित बासिक मासूम मंदिर में नई न्यूज़ बाकी वह महेंद्र गांव के लोग पूजा करते हैं दोनों मंदिरों में प्रत्येक गांव का पुजारी क्रम से 11 महा तक पूजा करते हैं थर्ड ईयर स्थित आशिक माशूक के मंदिर में केवल डब्लू गांव के पुजारी पूजा करते हैं जबकि भ्रमण है प्रिय चल्दा महासू की पूजा के लिए नैनीताल यात्रा व महेंद्र गांव के पुजारी कर्मानुसार देव डोली के साथ साथ चलते हैं
महासू के 4 वीर बी हैं इनमें कपड़ा वीर गुरारू वीर केलु वीर शेर कुड़िया वीर शामिल है चारों के जौनसार बावर में चार छोटे-छोटे पुरानी मंदिर स्थित है

हनोल में महासू देवता का मंदिर अन्य मंदिरों से भिन्न और विशिष्ट है
मुख्य मंदिर का गर्भ ग्रह का चित्र नागर शैली का बना हुआ है मंदिर में मंडप और मुख्य मंडल का निर्माण बाद में किया गया इस मंदिर का निर्माण शैली इसे उत्तराखंड के अन्य मंदिरों से भिन्न एवं विशिष्ट बनाती है यह लकड़ी और धातु से निर्मित अलंकृत छत्रियों से युक्त है
महासू मंदिर हनोल के 4 दरवाजे
महासू मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर ज्ञ तक 4 दरवाजे हैं प्रवेशद्वार की छत पर नव ग्रह सूर्य चंद्रमा गुरु बुध शुक्र शनि मंगल केतु राहु की कलाकृति बनी है पहले और दूसरे द्वार पर माला स्वरूप विभिन्न देवी-देवताओं की कलाकृतियां पिरोई गई है दूसरे द्वार पर मंदिर के बाजगी ढोल नगाड़े के साथ पूजा पाठ में सहयोग करते हैं तीसरे द्वार पर स्थानीय लोग श्रद्धालुओं सैलानी माथा टेकते हैं अंतिम द्वार से गर्भ गृह में सिर्फ पुजारी को ही जाने की छूट है और वह भी पूजा के समय.
मंदिर के गर्भ गृह में सरदारों का जाना निषेध है वहां सिर्फ मंदिर का पुजारी प्रवेश कर सकता है गर्भ ग्रह में हमेशा एक जोत जलती रहती है


Conclusion:इतिहास के जानकार श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि जौनसार बावर प्राचीन देश है जौनसार बावर में पांडवों का सम्मान भी रहा है और यह मान्यता प्रबल हो जाती है कि कास्ट कला के मंदिर के अनेक आयाम जुड़े हैं माना जाता है कि यह भी सुनो का स्थापित मंदिर था बाद में महासू महाराज को प्रवेश दिलाया गया देवता से बढ़कर भगवान का रूप बताया गया है कि महासू देवता का एक चीन नदी के रास्ते दिल्ली पहुंच गया था बाद में जब वह चीन रखा गया तो उनको देवता ने चमत्कार दिखा और उनको माल भी बताया कि वह देव चीन वापस आना चाहिए दान स्वरूप परिणाम स्वरुप में वह दिल्ली से धूप के रूप में भेजते हैं पीढ़ियों से पार्सल द्वारा हनोल दो भेजा जाता है लेकिन आज तक यह नहीं पता कि कौन है भेजता है कहते हैं कि महासू देवता का चमत्कार दिल्ली तक है
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता भारत चौहान महासू देवता को न्याय प्रिय देवता मानते हैं बताया कि संपूर्ण विश्व में जो भी शक्तिशाली होता है उससे न्याय की उम्मीद होती है इसी प्रकार से जौनसार बावर के आराध्य महासू देवता से हिमाचल जौनपुर टिहरी गढ़वाल के लोग इनके प्रति आवाज श्रद्धा रखते हैं और न्याय की गुहार लगाते हैं
हनोल महासू मंदिर के पुजारी श्री राय दत्त जोशी जी का कहना है कि दिल्ली से गूगल धूप के रूप में डाक द्वारा प्रतिवर्ष भेजा जाता है लेकिन यह पता नहीं है कि कौन इसे भेजता है हर वर्ष यह गूगल दो हनोल मंदिर को प्राप्त होता है और न्याय के देवता के रूप में है न्याय प्रिय देवता के लाते हैं जो भी लोग कोर्ट कचहरी से थक हार जाते हैं वह हनोल मंदिर में अपनी सच्ची आस्था को लेकर ₹1 का सिक्का रखकर पुकार कर सकता कि हे भगवान महासू देवता मेरी समस्याओं का न्याय कर ऐसी अर्जी लगा कर महासू देवता उस संबंधित व्यक्ति का न्याय करते हैं भले ही इसमें थोड़ा समय लग जाता है
Last Updated :May 8, 2019, 7:53 AM IST
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