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स्वास्थ्य सेवाओं में फिसड्डी उत्तराखंड, कैग रिपोर्ट से हुआ खुलासा

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Published : Mar 7, 2021, 12:40 PM IST

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सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत

पहाड़ों में स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या स्थिति है ये किसी से छिपी नहीं है. वहीं जब गैरसैंण सत्र के दौरान सदन के पटल पर कैग की रिपोर्ट रखी गई तब कई खामियां सामने निकलकर आई. जानते हैं क्या हैं वे खामियां...

देहरादून: उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर राज्य सरकार हमेशा से सवालों के घेरे में रही है, गैरसैंण सत्र के दौरान सदन के पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट ने इस बात को साबित भी किया है. रिपोर्ट में साफ है कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर ना तो मानव संसाधन ही जुटाया गया है और ना ही तकनीकी रूप से राज्य को इसके लिए सक्षम किया गया है.
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उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं पहाड़ी जिलों में सबसे ज्यादा खराब हालत में दिखाई देती है, सरकारी चिकित्सालयों में चिकित्सकों और नर्सों समेत पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी दिखने को मिलती है. दवाइयों की भी कमी मरीजों के सामने दिक्कत पेश करती हैं. उधर विशेषज्ञों की कमी और मरीजों की सुविधाओं के लिहाज से व्यवस्थाएं खराब ही दिखाई देती हैं. गैरसैंण में सदन के पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट में ऐसे कई मामले ब्लू वार दिए गए हैं, जिससे साबित होता है कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर ऐसी कई खामियां हैं, जिनको सरकारी स्तर पर दूर किया जाना बाकी है.

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प्रदेश के राजकीय चिकित्सालय में किस तरह की खामियों को कैग ने पाया हैं एक नजर देखिए

1.कैट की रिपोर्ट में साल 2014 से 2019 के बीच जिला चिकित्सालय में संयुक्त चिकित्सालय और महिला अस्पतालों को लेकर अध्ययन किया गया जिसके बाद इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है.

2.राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य के मामले में उत्तराखंड कुल 21 राज्यों में से 17वें नंबर पर मौजूद है, जो राज्य में स्वास्थ्य के खराब हालातों को जाहिर करता है.

3.ऑडिट के दौरान पाया गया कि स्वास्थ्य सेवाओं में नीतिगत कई फैसले समय से नहीं लिए गए हैं और मानकों को सही तरह से लागू नहीं किया गया है.

4.राज्य में अस्पतालों के भवनों को बेहतर व्यवस्थित करने की कमी दिखाई दी है, साथ ही डॉक्टर्स, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी है.

5.राज्य में मुफ्त दवाओं को दिए जाने की व्यवस्था को सही से लागू नहीं किया गया है और इसके कारण राज्य में कई दवाइयों की भारी कमी को भी माना गया है, यहां तक कि पाया गया है कि अस्पतालों में लोगों को बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं और मुफ्त दवा दिए जाने की योजना का फायदा लोगों को नहीं मिल रहा है. करीब 59% रोगियों को अपने खर्च पर दवा खरीदनी पड़ रही है इस बात का भी ऑडिट में खुलासा हुआ है.

6. राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी, डायग्नोस्टिक सेवाएं ओपीडी रेडियोलॉजी आपातकालीन सेवाएं समेत प्रसूति सेवाएं और मनोज चिकित्सा स्त्री रोग इन सभी विषयों पर ऑडिट किया गया और इन सभी जगहों में कमियां देखी गई.

7.प्रदेश के चिकित्सालयों में उपकरणों की भी भारी कमी नजर आई सामान्य उपकरण भी चिकित्सालय में नहीं होने जैसी चीजें भी दिखाई दी. राज्य में विभिन्न उपकरणों में सभी चिकित्सालयों के लिहाज से 50% से लेकर 80% तक की कमी भी देखी गई.

8.कुछ पदों पर पर्वतीय जनपदों में बेहद कमी देखी गई जबकि इन्हीं विषयों से जुड़े चिकित्सकों की मैदानी जिलों में स्वीकृत पदों से ज्यादा मौजूदगी भी आंकी गई जिस पर काफी चिंता जताई गई

9.ऑडिट में पाया गया कि जरूरत के हिसाब से चिकित्सकों और दूसरे स्टाफ की तैनाती नहीं की गई है ज्यादा मरीजों की उपस्थिति के समय भी स्टाफ की ड्यूटी उसी लिहाज से नहीं लगाई जाती. अधिकारी और प्रिंसेस की स्थाई नियुक्ति को लेकर भी ऑडिट में सवाल खड़े किए गए.

10. प्रसूति विभाग के लिहाज से भी भारी कमियां देखी गई जिसमें साफ सफाई और मरीजों को बेहतर सुविधाओं की कमी को पाया गया दवाइयों की कमी के साथ ही इलाज के दौरान लापरवाही और अनदेखी का भी खुलासा हुआ है.

इस पूरे ऑडिट रिपोर्ट में कैग ने इन व्यवस्थाओं को सुधारे जाने को लेकर अपनी सिफारिशें भी दी हैं, जिसके आधार पर इन सभी व्यवस्थाओं को बेहतर करने के सुझाव मौजूद हैं.

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