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तो क्या अतिक्रमण की जद में आया BJP का प्रस्तावित मुख्यालय, हरीश रावत ने की CBI जांच की मांग

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Published : Aug 18, 2022, 8:39 AM IST

Updated : Aug 18, 2022, 7:39 PM IST

Uttarakhand BJP land
बीजेपी पर भूमि कब्जाने का आरोप

देहरादून के रायपुर रिंग रोड पर उत्तराखंड बीजेपी का भव्य मुख्यालय प्रस्तावित है. लेकिन मामला कानूनी दांव पेंच में फंस गया है. जहां एक ओर बीजेपी पर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का आरोप लगा है तो दूसरी ओर विपक्ष हमलावर हो गया है. ऐसे में इस जमीन को लेकर सियासत भी गर्मा गई है. जानिए किस वजह से फंसा मामला और क्यों लग रहा है बीजेपी पर भूमि कब्जाने का आरोप.

देहरादूनः उत्तराखंड में बीजेपी का नया प्रस्तावित प्रदेश मुख्यालय कानूनी दांव पेंच में फंसता नजर आ रहा है. बीजेपी ने 17 अक्टूबर 2020 को रायपुर रिंग रोड स्थित करीब 16 बीघा की जमीन पर मुख्यालय की नींव रखी थी. लेकिन भूमि विवाद के चलते बीजेपी का भव्य मुख्यालय बनाने का सपना टूटता दिख रहा है.

ये है पूरा मामला: दरअसल, देहरादून के अधिवक्ता विकेश नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित दायर की है. याचिका में दावा किया गया है कि रायपुर रिंग रोड पर बीजेपी प्रदेश मुख्यालय के रूप में प्रस्तावित भूमि तकनीकी रूप से सरकार की भूमि में विलय हो चुकी है. यहां अगर उत्तराखंड बीजेपी अपना मुख्यालय बनाती है तो यह खुलेआम सरकारी जमीन पर बीजेपी का अतिक्रमण (BJP encroachment on government land) होगा.

बीजेपी पर भूमि कब्जाने का आरोप.

ईटीवी भारत से बातचीत में अधिवक्ता विकेश नेगी (Dehradun Advocate Vikesh Negi) ने बताया कि बीजेपी का मुख्यालय जिस जमीन पर दर्शाया गया है, वो असल में चाय बागान की जमीन (Dehradun Tea Garden Land) में विलय है और तकनीकी रूप से यह अब सरकारी भूमि है. ऐसे में इस जमीन में मुख्यालय बनाया जाता है तो यह जमीन अतिक्रमण की श्रेणी में आता है.

1960 में सीलिंग एक्ट से बचने के लिए चाय बागान में निहित हुई थी जमीनः अधिवक्ता विकेश नेगी ने कुछ पुराने एक्ट, शासनादेशों और कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए बताया कि साल 1960 में सीलिंग एक्ट आने के बाद साढ़े 12 एकड़ से ज्यादा भूमि रखने पर रोक लग गई थी और साढ़े 12 एकड़ से ज्यादा भूमि धारकों की भूमि को सीलिंग के जद में लिया जाने लगा. इसी दौरान उन लोगों ने जिनके पास 12.5 एकड़ से ज्यादा भूमि थी तो सीलिंग से बचने के लिए अपनी जमीनों को चाय बागान में परिवर्तित करके जमीनों को बचाने की कोशिश की.

वहीं, 10 अक्टूबर 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए यह स्पष्ट किया कि इस तिथि यानी 10 अक्टूबर 1975 के बाद चाय बागान की किसी भी जमीन को अगर बेचा जाता है या उसका लैंड यूज चेंज किया जाता है तो वो सेल डीड शून्य हो जाएगा. इसी अध्यादेश के हवाले से सुप्रीम कोर्ट ने भी साल 1996 में एक आदेश जारी किया.

जिसमें कहा गया कि चाय बागान की जमीन का अगर लैंड यूज बदला जाता है और फिर इसे बेचा जाता है तो यह सरकारी जमीन में निहित हो जाएगी. इसी के चलते रानी पद्मावती की देहरादून के रायपुर, चक रायपुर, नत्थनपुर और लाडपुर में मौजूद तकरीबन 350 बीघा जमीन को सीलिंग एक्ट से बचाने के लिए चाय बागान में तब्दील किया गया.
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बीजेपी के प्रस्तावित मुख्यालय वाली जमीन चाय बागान का हिस्सा, अतिक्रमण का आरोपः देहरादून के रायपुर रिंग रोड पर प्रस्तावित बीजेपी प्रदेश मुख्यालय की 16 बीघा जमीन भी रानी पद्मावती की चाय बागान में परिवर्तित हुए 350 बीघे का एक हिस्सा है. जिसे उत्तराखंड बीजेपी ने साल 2011 में रानी पद्मावती के भाई कुंवर चंद्र बहादुर से खरीदा.

याचिकाकर्ता ने ये कहा: अधिवक्ता विकेश नेगी का दावा है कि नियमों के अनुसार चाय बागान की जमीन को बेचे जाने पर सेल डीड स्वत: ही शून्य होकर यह जमीन सरकारी जमीन का हिस्सा बन जाने का प्रावधान है. इस हिसाब से यह अगर बीजेपी इसे अपनी जमीन बताती है तो यह बीजेपी का सरकारी जमीन पर अतिक्रमण (Uttarakhand BJP Headquarters land) होगा.

रानी पद्मावती के चाय बागान की जमीन का हिस्साः अधिवक्ता विकेश नेगी ने बताया कि रायपुर रिंग रोड स्थित बीजेपी की प्रस्तावित प्रदेश मुख्यालय वाली जमीन भी रानी पद्मावती की चाय बागान वाली जमीन (Rani Padmavati Tea Garden) का एक हिस्सा है. पूर्व में देहरादून जिला प्रशासन ने इस जमीन के खसरा नंबर 73 को स्पष्ट रूप से चाय बागान का हिस्सा बताया था, जो कि बाद में बदल कर खसरा नंबर 43 हो गया.

बीजेपी का जमीन पर अवैध कब्जा!: अधिवक्ता का कहना है कि रानी पद्मावती की यह जमीन उत्तराखंड बीजेपी ने साल 2011 में खरीदी थी और नियमों के अनुसार चाय बागान की जमीन खरीदने या फिर उसका लैंड यूज परिवर्तित करने पर वो सरकारी जमीन में निहित हो जाएगी और इस तरह से यह सरकारी जमीन है और बीजेपी का इस पर अवैध कब्जा है.

250 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन खरीदने पर नहीं ली गई शासन की अनुमतिः इतना ही नहीं बीजेपी की ओर से 20 दिसंबर 2011 को यह 16 बीघा जमीन रानी पद्मावती से खरीदी गई. लेकिन याचिकाकर्ता विकेश नेगी बताते हैं कि भूमि संबधी तत्कालीन अधिनियम (UP Zamindari Abolition and Land Reforms Act 1950) का क्लॉज 154(3) कहता है कि ग्रामीण क्षेत्र में 200 गज से ज्यादा जमीन खरीदी जाती है तो उसके लिए शासन से अनुमति लेनी होगी.

याचिकाकर्ता बताते हैं कि यह जमीन तकरीबन 16 बीघा है. उस समय खरीदी भूमि ग्रामीण क्षेत्र में आती थी. ऐसे में नियम कहते हैं कि अगर किसी भी व्यक्ति की ओर से ग्रामीण क्षेत्र में 250 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन खरीदी जाती है तो उसको उत्तराखंड शासन से अनुमति लेनी होगी. जबकि, आरटीआई यानी सूचना के अधिकार (Right to Information) में यह खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड बीजेपी ने इस जमीन को खरीदने से पहले शासन से अनुमति नहीं ली है.

देहरादून जिला प्रशासन ने शुरू की ध्वस्तीकरण की कार्रवाईः मामले पर देहरादून जिला प्रशासन का कहना है कि याचिकाकर्ता अधिवक्ता विकेश नेगी की ओर से हाईकोर्ट में चाय बागान की जमीन को लेकर याचिका डाली गई है. जिस पर हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन को चाय बगान की जमीन को खाली करवाने के निर्देश दिए हैं, जिसको लेकर कार्रवाई की जा रही है.
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हालांकि, जब हमने अपर जिलाधिकारी एडीएम शिव कुमार बरनवाल से इस मामले में खासकर उत्तराखंड बीजेपी की ओर से साल 2011 में खरीदी गई 16 बीघा जमीन के संबंध में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि अभी इस मामले पर जांच चल रही है. जैसे ही जांच में कुछ स्पष्ट हो पाएगा, उसके बाद इस संबंध में वह स्पष्ट रूप से बता पाएंगे.

क्या है बीजेपी की सफाईः उत्तराखंड बीजेपी की ओर से रायपुर रिंग रोड स्थित 16 बीघा जमीन रानी पद्मावती से खरीदे जाने के मामले में विटनेस की भूमिका में रहे बीजेपी नेता अनिल गोयल (BJP leader Anil Goyal) जोकि बीजेपी के प्रस्तावित प्रदेश मुख्यालय के निर्माण की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं, उनका कहना है कि बीजेपी ने साल 2011 में रायपुर रिंग रोड पर रानी पद्मावती से खरीदी.

यह जमीन पूरी तरह से नियमों के अधीन है और सभी विधिक प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही इस जमीन को खरीदा गया है. उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि इस 16 बीघे की जमीन पर बीजेपी का एक भव्य प्रदेश कार्यालय बनना है, जो कि उत्तराखंड की पारंपरिक शैली और यहां की संस्कृति को दर्शाएगा. जल्द ही इस पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा.

वहीं, इस मामले पर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट (BJP State President Mahendra Bhatt) का कहना है कि बीजेपी ने सभी नियमों का पालन करते हुए यह जमीन उस समय के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर खरीदी. इसका नियमों के तहत रजिस्ट्री और दाखिल खारिज अभी करवाया गया है. महेंद्र भट्ट का यह भी कहना है कि अब अगर किसी को इस बात पर शंका है और वो न्यायालय गया है तो न्यायालय में इस बात का जवाब दे दिया जाएगा.

हरीश रावत ने की CBI जांच की मांगः उत्तराखंड बीजेपी के प्रस्तावित प्रदेश कार्यालय के इस मामले पर कांग्रेस भी लगातार मुखर नजर आ रही है. कांग्रेस लगातार इस मामले को प्रमुखता से उठा रही है. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत का कहना है कि उनकी सरकार में जिस तरह से चाय बागान की जमीन को स्मार्ट सिटी के लिए इस्तेमाल किए जाने का प्रस्ताव रखा गया था और बीजेपी के कई नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया था, अब सामने आ रहा है कि चाय बागान की जमीनों को लेकर बीजेपी के लोगों की पहले से ही नजरें गड़ी हुई थी.

हरीश रावत का कहना है कि आज यह खुलासा हो गया है कि बीजेपी ने एक तरफ जहां चाय बागान की जमीन का खुर्द बुर्द कर अपना मुख्यालय तो बनाया ही है, लेकिन इसके अलावा कई अन्य लोगों की ओर से भी इस जमीन की खरीद फरोख्त करके अवैध निर्माण किए गए हैं. हरीश रावत का कहना है कि इस मामले में अगर सीबीआई जांच (Harish Rawat demanded a CBI inquiry of BJP Land) की जाए तो वास्तविकता सामने आएगी और बीजेपी का वास्तविक चेहरा सार्वजनिक होगा.
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हरीश रावत को अरविंद पांडे ने दी नसीहत: बीजेपी प्रस्तावित मुख्यालय विवाद को लेकर पूर्व मंत्री अरविंद पांडे ने हरीश रावत पर पलटवार किया है. अरविंद पांडे ने कहा हरीश रावत जो भी जांच करवाना चाहते हैं, वह जांच करवाएं. वह पूरी तरह से स्वतंत्र हैं. भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी है और इससे बहुत से लोग जुड़े हुए हैं. भाजपा जो भी काम करती है, सोच समझकर काम करती हैं. ऐसे में हरीश रावत पूरी तरह से स्वतंत्र हैं. वह न्यायालय जाना चाहते हैं तो न्यायालय जा सकते हैं.

अरविंद पांडे ने हरीश रावत को नसीहत देते हुए कहा भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से बेदाग पार्टी है. भाजपा पर पूरा देश विश्वास करता है. हरीश रावत इस समय विपक्ष में बैठे हुए हैं और उनको बयान देने के अलावा कोई और काम नहीं है. हरीश रावत को आरोप लगाने के बजाय हाईकोर्ट जाना चाहिए. जहां दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

वहीं, यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले में प्रदेश के बड़े नौकरशाहों और मंत्रियों विधायकों के नाम आने पर अरविंद पांडे ने कहा जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ जांच एजेंसी काम कर रही है. मामले में सरकार ईमानदारी से काम कर रही हैं. उत्तराखंड की छवि पर दाग नहीं लगने दिया जाएगा. घोटाला में कोई कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों ना हो, उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated :Aug 18, 2022, 7:39 PM IST
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