हरीश रावत के 'हाथ' से खिसक रहे नेता, क्या सभी को समझते हैं 'येड़ा' ?

author img

By

Published : May 24, 2022, 8:03 PM IST

Former CM Harish Rawat

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार हरीश रावत का नाम कौन नहीं जानता लेकिन ऐसा लग रहा है कि 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद अब हरीश रावत अपनों दूर होते जा रहे हैं...आखिर क्या हैं वो कारण विस्तार जानिए

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस की राजनीति में अगर किसी का नाम सबसे पहले लिया जाता है, तो है हरीश रावत का. हरीश रावत उत्तराखंड ही नहीं बल्कि कांग्रेस में देश में बड़े नेताओं में से एक हैं लेकिन बीते दिनों उनके ही बेटे आनंद रावत ने यह कहकर अपने पिता पर सवाल खड़े कर दिए थे कि उनके पिता उन्हें हमेशा येड़ा ही समझते हैं. मतलब पिता उनकी बातों को उनके चिंतन और विचारों से परेशान रहते हैं. यह कोई पहला मौका नहीं है कि जब हरीश रावत के ऊपर उनके अपनों ने सवाल खड़े किए हैं. उत्तराखंड की 22 सालों की राजनीति में अगर देखा जाए तो ऐसे नामों की फेहरिस्त बेहद लंबी है, जो चले तो हरीश रावत के साथ थे. लेकिन मझधार में ही उनका साथ छोड़ गए.

जब अपने गुरू के खिलाफ खिलाफ हो गए हरीश रावत: हरीश रावत को राजनीति में अगर कोई लाया है तो वह नारायण दत्त तिवारी थे. उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके दिवंगत नारायण दत्त तिवारी, हरीश रावत के ससुर के बेहद खास हुआ करते थे. उस वक्त हरीश रावत के ससुर गोविंद सिंह मेहरा उत्तर प्रदेश सरकार में वन मंत्री हुआ करते थे. उस वक्त नारायण दत्त तिवारी ने हरीश रावत को राजनीति में आगे लाने के लिए गोविंद सिंह मेहरा से बात की थी.

हरीश रावत को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय के विचार.

चुनाव लड़ने से लेकर राजनीति में आगे बढ़ाने तक नारायण दत्त तिवारी ने उनका (हरीश रावत) साथ दिया. लेकिन जब उत्तराखंड में एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चाएं तेज हुईं, उस वक्त हरीश रावत प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाले हुए थे. कहा जाता है कि अपने गुरु नारायण दत्त तिवारी के ही खिलाफ उस वक्त हरीश रावत ने विरोध और विद्रोह दोनों ही धारण कर लिये थे. हरीश रावत उस वक्त एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बनता हुआ नहीं देखना चाहते थे.

हरीश रावत लगातार पार्टी के बड़े नेताओं से इस बात को लेकर दबाव बना रहे थे कि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते मुख्यमंत्री उन्हें बनाया जाए. इतना ही नहीं जैसे-तैसे एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया गया. उसके बाद हरीश रावत ने एनडी तिवारी को लगातार लेटर बम के माध्यम से खूब परेशान किया. आखिरकार नारायण दत्त तिवारी को उनके खिलाफ ना केवल बोलना पड़ा. बल्कि सार्वजनिक मंच पर भी अपना दर्द जनता के सामने रखना पड़ा. उसके बाद हरीश रावत और नारायण दत्त तिवारी के बीच एक लकीर खिंच गई.

किशोर भी कसक के साथ हरीश रावत से हुए दूर: नारायण दत्त तिवारी के बाद कई ऐसे बड़े नेता हुए जो हरीश रावत के साथ तो चले लेकिन समय के साथ-साथ उनकी टीम से अलग होते चले गए. उन्हीं में से एक नाम है उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे और मौजूदा समय में टिहरी विधानसभा सीट से विधायक किशोर उपाध्याय का. किशोर उपाध्याय उस वक्त प्रदेश अध्यक्ष थे, जब हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. दोनों के बीच अच्छी खासी दोस्ती थी. या यह कहें कि राजनीतिक तौर पर दोनों बेहद करीब थे. लेकिन धीरे-धीरे यह दोस्ती इतनी बड़ी दरार आ गई कि पार्टी में रहकर ही किशोर उपाध्याय ने हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया.

इसका नजीता यह हुआ कि जब 2017 में टिकट बंटवारा हुआ. उस वक्त किशोर उपाध्याय लगातार टिहरी से टिकट मांगते रहे, लेकिन किशोर उपाध्याय को देहरादून की सहसपुर सीट से चुनाव लड़ा दिया. चुनाव हारने के बाद दोनों ही नेताओं के बीच और विवाद बढ़ गया. दोनों ही नेता ने मीडिया के सामने एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते रहे. एक दौर ऐसा आया कि जब किशोर उपाध्याय पार्टी छोड़ने से पहले हरीश रावत से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हो गए.
पढ़ें- उत्तराखंड में जिनको लगानी थी कांग्रेस की नैया पार, उन्हीं के गले पड़ी 'हार'

मतलब जो नेता हरीश रावत के साथ उस वक्त कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा था, वही नेता हरीश रावत के खिलाफ हो गया. उसके बाद किशोर उपाध्याय किसी भी मुद्दे पर हरीश रावत के खिलाफ आवाज उठाते रहे और पार्टी नेताओं से लगातार संपर्क करते रहे. किशोर उपाध्याय ने जब बीजेपी का दामन थामा तो खुलकर कहा कि हरीश रावत ने कभी उन्हें आगे बढ़ने ही नहीं दिया. यही कारण रहा कि आज वह बीजेपी में आकर विधायक बन गए हैं. इसके बाद किशोर उपाध्याय ने खुलकर हरीश रावत पर प्रहार किया कि किशोर उपाध्याय जी यह भूल गए उनके पुराने साथी और बड़े नेता रहे हैं.

प्रीतम सिंह अंदर ही अंदर हरीश रावत के खिलाफ: उत्तराखंड की राजनीति में प्रीतम सिंह कांग्रेस में जाना माना नाम है. प्रीतम सिंह ना केवल उत्तराखंड में मंत्री रह चुके हैं. बल्कि प्रदेश अध्यक्ष से लेकर लगातार विधायक बनते आ रहे हैं, जिस वक्त हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो प्रीतम सिंह को राज्य में गृह मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी मिली. लेकिन प्रीतम सिंह को भी यह लगने लगा कि जब तक हरीश रावत राजनीति में रहेंगे, तब तक वह किसी को पनपने नहीं देंगे. बेहद शांत स्वभाव के प्रीतम सिंह ने धीरे-धीरे हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया.
पढ़ें- 'कुछ लोग कांग्रेस में चला रहे अपना एजेंडा', प्रीतम सिंह ने इशारों में हरीश रावत को लपेटा

प्रीतम सिंह ने प्रदेश में 2017 के बाद चुनाव प्रभारी बनाए गए देवेंद्र यादव के साथ नजदीकियां बढ़ाकर हरीश रावत के खिलाफ बैक डोर से आलाकमान को कई तरह के संदेश देने का काम किया और चुनाव में जैसे ही पार्टी ने हरीश रावत को चुनाव संचालन समिति का अध्यक्ष बनाया, वैसे ही प्रीतम सिंह ने भी अपनी बाहें चढ़ा लीं. यही कारण है कि साल 2022 में जब पार्टी 19 सीटों पर सिमट गईं. तब प्रीतम सिंह ने पार्टी आलाकमान से इस बारे में खुलकर बातचीत की. चर्चाएं तो यहां तक होने लगी थीं कि प्रीतम सिंह पार्टी छोड़ रहे हैं. हालांकि, बाद में प्रीतम सिंह ने इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया. लेकिन मौजूदा समय में हरीश रावत और प्रीतम सिंह के रिश्ते कैसे हैं? यह किसी से छुपा नहीं है.

सबसे भरोसेमंद रणजीत रावत भी हुए बेगाने: हरीश रावत जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब लोग राज्य में दो मुख्यमंत्रियों को मानते थे, एक तो आधिकारिक रूप से हरीश रावत और दूसरे थे रणजीत रावत. रणजीत रावत को मुख्यमंत्री ने अपना औद्योगिक सलाहकार बना रखा था. सरकार में कौन सा काम कैसे होना है? किस अधिकारी को कहां पर तैनात करना है? कौन कब किससे मिलेगा? मुख्यमंत्री कौन से कार्यक्रम में जाएंगे? दिल्ली से कौन सा नेता कब आएगा..जैसे इन सारे कार्यक्रमों की भूमिका रणजीत रावत बनाया करते थे.
पढ़ें- हरीश रावत पर दिए बयान पर झुकने को तैयार नहीं रणजीत रावत, इशारों-इशारों में फिर साधा निशाना

रणजीत रावत का इतना दबदबा था कि अधिकारियों की लाइन उनके ही दफ्तर में लगी रहती थी. लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री पद से हरीश रावत हटे वैसे ही दोनों के बीच लंबी लाइन खिंच गई. रणजीत रावत अचानक हरीश रावत के खिलाफ हो गए. दोनों नेताओं के बीच यह तकरार अभी भी सार्वजनिक मंचों पर देखी जा सकती है. दोनों ही नेता एक दूसरे का चेहरा देखना पसंद तक नहीं करते. पिछले विधानसभा चुनाव में रणजीत रावत ने प्रीतम सिंह गुट से हाथ मिलाकर हरीश रावत के खिलाफ खूब माहौल बनाया. अब यह तो दोनों नेताओं को ही पता है कि आखिर किस बात को लेकर उनके रिश्ते में खटास आई है.

पिछले विस चुनाओं में सीट को लेकर तकरार: साल 2022 के विधानसभा चुनावों के जब टिकट बंटवारा हो रहा था. तब हरीश रावत ने जानबूझकर उस सीट से ही टिकट मांगा, जिस पर रणजीत रावत 5 सालों से मेहनत कर रहे थे और हरीश रावत का टिकट पक्का भी हो गया. रणजीत रावत रामनगर सीट पर 5 सालों से मेहनत कर रहे थे. हरीश रावत ने रामनगर सीट से टिकट फाइनल होने के बाद यह जताया कि उत्तराखंड में हरीश रावत के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता. लेकिन रणजीत रावत का विरोध और जनता का आक्रोश ही था कि हरीश रावत को रामनगर से छोड़कर लालकुआं जाना पड़ा. ऐसे में कांग्रेस रामनगर और लालकुआं सीट दोनों ही सीट हार गई. उसके बाद रणजीत रावत ने फिर से यह आरोप लगाया कि उनको हरीश रावत ने हराया है, जबकि हरीश रावत अपनी नाकामियों से हारे हैं और पार्टी ने उन पर भरोसा करके सबसे बड़ी गलती की है.

उत्तराखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्‍यक्ष रणजीत रावत हार के बाद पूर्व सीएम हरीश रावत पर गंभीर आरोप लगा चुके हैं. रणजीत रावत ने हरीश रावत पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया. इस पर हरीश रावत ने भी साफ कर दिया है कि यदि आरोप सिद्ध होते हैं तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया जाए. ऐसे में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे कांग्रेसी नेताओं पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की तैयारी की जा रही है. हार के बाद रणजीत रावत ने हरीश रावत पर आरोप लगाते हुए कहा था कि हरीश रावत बड़ी मासूमियत से झूठ बोलते हैं. किसी भी नए राजनीतिक कार्यकर्ता को अफीम चटाते हैं, फिर सम्मोहन में ले लेते हैं. रणजीत रावत ने आगे कहा कि मेरा नशा खुद 35 साल बाद टूटा.

जोत सिंह बिष्ट और राजेंद्र चौधरी भी लिस्ट में: मौजूदा समय में उत्तराखंड के दो बड़े नेता जोत सिंह बिष्ट और हरिद्वार से जिला पंचायत अध्यक्ष रहे राजेंद्र चौधरी, हरीश रावत के सबसे पसंदीदा अपनों में से एक थे. जोत सिंह बिष्ट हों या राजेंद्र चौधरी दोनों ही नेता हरीश रावत के कहने पर कदम से कदम मिलाकर चलते लेकिन समय के साथ जैसा पूर्व के नेताओं ने हरीश रावत के साथ किया या हरीश रावत ने पूर्व के नेताओं के साथ किया, वैसा ही इन दोनों नेताओं ने भी किया. बीते दिनों हरीश रावत लाख मना करते रहे. लेकिन जोत सिंह बिष्ट आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए, जबकि बीते दिनों विधानसभा चुनावों में उन्हें कांग्रेस ने धनौल्टी से पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया था. वहीं, राजेंद्र चौधरी बसपा में शामिल हो गए. मतलब साफ है कि हरीश रावत के साथ जिसने भी लंबी पारी खेली, वह इस बात को समझ गया के इस पेड़ के नीचे वह पनप नहीं सकते. कुछ नेताओं ने अपनी बात को खुलकर कहा तो कुछ दबी जुबां सब कुछ कह गए.
पढ़ें- उत्तराखंड AAP ने प्रदेश कार्यकारिणी का किया विस्तार, जोत सिंह बिष्ट को बनाया प्रदेश संगठन समन्वयक

जनता भी छोड़ रही है साथ: हरीश रावत का जनता ने भी साथ नहीं दिया. साल 2017 में वो हरिद्वार ग्रामीण और कुमाऊं की किच्छा सीट से चुनाव लड़े मुख्यमंत्री रहते हुए दोनों ही सीटों को हरीश रावत बड़े अंतर से चुनाव हार गए. दोनों चुनाव हारने के बाद भी ऐसा नहीं हुआ कि हरीश रावत राजनीति में सक्रिय ना रहे हो. उन्होंने साल 2022 की तैयारी में अपना पूरा जोर लगाया. हरीश रावत को लगता था कि बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने और पार्टी को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी ली लेकिन यहां पर भी कांग्रेस पार्टी 19 सीटों पर सिमट कर रह गई. हालांकि, इन 19 सीटों में 1 सीट हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत जरूर जीत गईं. इस जीत के बाद लोग यह कहने लगे कि उत्तराखंड में हरीश रावत की विरासत कोई और नहीं बल्कि उनकी बेटी अनूपमा रावत संभालने जा रही हैं.

चुनावों के परिणाम और उत्तराखंड में बिगड़ती कांग्रेस की स्थिति के बाद जिस तरह से उनके बेटे आनंद रावत ने उन पर कटाक्ष करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट किया और अपने पिता से यह कहते हुए सवाल किए कि उनके पिता ने उन्हें हमेशा येड़ा ही समझा है. उसके बाद हरीश रावत ने भी बेटे के सवालों के जवाब देते हुए यह कह दिया था कि उनकी राजनीतिक मजबूरियां हैं और कुछ नहीं. बहरहाल, हरीश रावत से दूर जाते नेताओं की लिस्ट लगातार लंबी हो रही है. ऐसे में हरीश रावत के लिए भी यह सोचने वाली बात है कि आखिरकार उनमें ऐसी कौन सी कमी है, जो नेता उनके साथ रहकर भी उनके खिलाफ हो जाते हैं?

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.