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जागर ईश्वर के करीब होने का कराता है एहसास, जानिए क्या कहते हैं पद्मश्री प्रीतम भरतवाण

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Published : Jul 29, 2019, 5:20 PM IST

Updated : Jul 31, 2019, 1:54 PM IST

जागर का मतलब होता है जगाना. उत्तराखंड और डोटी के लोग देवताओं को जगाने के लिए जागर लगाते हैं. आधुनिकता के इस दौर में जागर को देश के साथ ही विश्व स्तर पर अलग पहचान दिलाने में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

पद्मश्री प्रीतम भरतवाण

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में पारंपरिक जागर का अपना अलग महत्व है. मौका चाहे खुशी का हो या फिर गम का. प्रदेश के दुरस्थ पहाड़ी जनपदों में हर मौके पर जागर गाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. जागर को और बेहतर तरीके से समझने के लिए ईटीवी भारत ने जागर सम्राट पद्मश्री डॉ प्रीतम भरतवाण से खास बातचीत की.

पद्मश्री प्रीतम भरतवाण से खास बातचीत

प्रीतम भरतवाण ने पवित्र सावन माह का जिक्र करते हुए बताया कि जागर का मूल महादेव शिव हैं. देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में शिव बसे हुए हैं. यही कारण है कि पहाड़ों में दुआ-सलाम भी 'शिवमान्य' कहकर की जाती है.

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बता दें, जागर गाते समय ढोल, सागर, हुड़का और थाली का इस्तेमाल किया जाता है, जो सीधे तौर पर मनुष्य के अंतर्मन को जगाता है और उसे ईश्वर के करीब होने का एहसास कराता है. इसके अलावा मान्यता यह भी है कि जागर अनिष्टकारी शक्तियों को भी दूर करता है. जागर मनुष्य को ईश्वर से जोड़ता है. इसलिए उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में आज भी गम हो या खुशी हर मौके पर जागर गाने की परंपरा है.

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आधुनिकता के इस दौर में जागर को देश के साथ ही विश्व स्तर पर अलग पहचान दिलाने में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का बहुत बड़ा योगदान रहा है. विदेशों के कई जाने माने विश्वविद्यालयों में जागर पर शोध किए जा रहे हैं.

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देहरादून- देवभूमि उत्तराखंड में पारंपरिक जागर का अपना अलग ही महत्व है । मौका चाहे खुशी का हो या फिर गम का प्रदेश के दुरुस्त पहाड़ी जनपदों में हर मौके पर जागर गाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है ।





Body:जागर को और बेहतर तरह से समझने के लिए ईटीवी भारत ने जागर सम्राट पद्मश्री डॉ प्रीतम भरतवाण से खास बातचीत की। इस दौरान पवित्र सावन माह का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जागर का मूल महादेव शिव हैं और देव भूमि उत्तराखड़ के हर कंकड़ में शिव बसे हुए हैं । यही कारण है कि यहां के पहाड़ों में दुआ - सलाम ' शिवमान्य' कह कर की जाती है ।

बता दें कि जागर गाते समय ढोल सागर, हुड़का, थाली का इस्तमाल किया जाता है । जो सीधे तौर पर मनुष्य के अंतरमन को जगाता है और उसे ईश्वर के करीब होने का एहसास कराता है । इसके अलावा मान्यता यह भी है कि जागर अनिष्टकारी शक्तियों को भी दूर करता है और मनुष्य को सीधे ईश्वर से जोड़ता है । इसलिए प्रदेश के पहाड़ी जनपदों में आज भी गम हो या खुशी हर मौके पर जागर गाने की परंपरा है ।




Conclusion:गौरतलब है कि आज आधुनिकता के इस दौर में जागर को देश के साथ ही विश्व स्तर पर अलग पहचान दिलाने में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का बहुत बड़ा जोगदान रहा है । विदेशों के कई जाने माने विश्वविद्यालयों में आज जागर पर शोध किए जा रहे हैं ।
Last Updated : Jul 31, 2019, 1:54 PM IST
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