उत्तराखंड में जल्द लागू होगा सख्त भू-कानून, कमेटी ने 80 पेज की रिपोर्ट सौंपी, की 23 संस्तुतियां

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Published : Sep 5, 2022, 12:43 PM IST

Updated : Sep 5, 2022, 4:56 PM IST

land law in uttarakhand

उत्तराखंड में भू-कानून को लेकर बनाई गई कमेटी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. सीएम ने रिपोर्ट मिलने के बाद कहा कि भू-कानून से संबंधित सभी पक्षों की राय लेते हुए प्रदेश के विकास व प्रदेशवासियों के कल्याण हेतु निर्णय लेंगे.

देहरादून: उत्तराखंड में भू-कानून (Uttarakhand Land Law) को लेकर बनाई गई कमेटी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. सीएम ने रिपोर्ट मिलने के बाद कहा कि भू-कानून से संबंधित सभी पक्षों की राय लेते हुए हम प्रदेश के विकास व प्रदेशवासियों के कल्याण हेतु निर्णय लेंगे. समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय-विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अपनी 23 संस्तुतियां सरकार को दी हैं.

80 पेज की रिपोर्ट तैयार: समिति ने राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार-विमर्श कर लगभग 80 पेज की अपनी रिपोर्ट तैयार की है. इसके अलावा समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक दी गई भूमि क्रय की स्वीकृतियों का विवरण मांग कर उनका परीक्षण भी किया है. समिति ने अपनी संस्तुतियों में ऐसे बिंदुओं को सम्मिलित किया है, जिससे राज्य में विकास के लिए निवेश बढ़े और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो. इसके साथ ही भूमि का अनावश्यक दुरूपयोग रोकने की भी अनुशंसा की है.

जानकारी देते कमेटी सदस्य अजेंद्र अजय.

समिति ने वर्तमान में प्रदेश में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) यथा संशोधित और यथा प्रवृत्त में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह कतिपय प्रावधानों की संस्तुति की है.

समिति की प्रमुख संस्तुतियां: वर्तमान में जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है. कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि/औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसॉर्ट/ निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है, इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहें और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है. समिति ने संस्तुति की है कि ऐसी अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर से ना दी जाएं और शासन से ही अनुमति का प्रावधान हो.

वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी द्वारा प्रदान की जा रही है. हिमाचल प्रदेश की तरह ही ये अनुमति शासन स्तर से न्यूनतम भूमि की आवश्यकता के आधार पर प्राप्त की जाएं. वर्तमान में राज्य सरकार पर्वतीय एवं मैदानी में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान एवं विभिन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक संस्था/फर्म/ कम्पनी/ व्यक्ति को उसके आवेदन पर दे सकती है.

उपरोक्त प्रचलित व्यवस्था को समाप्त करते हुए हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता (Essentiality Certificate) के आधार पर दिया जाना उचित होगा. केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल/ रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट आदि को ही Essentiality Certificate के आधार भूमि क्रय करने की अनुमति शासन स्तर से दी जाए. अन्य प्रयोजनों हेतु लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था लाने की समिति संस्तुति करती है.

वर्तमान में गैर कृषि प्रयोजन हेतु खरीदी गई भूमि को 10 दिन में SDM धारा-143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करेगा. लेकिन, क्रय अनुमति आदेश में 2 वर्ष में भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन में करने की शर्त रहती है. यदि निर्धारित अवधि में उपयोग ना करने पर या किसी अन्य उपयोग में लाने/विक्रय करने पर राज्य सरकार में भूमि निहित की जाएगी, यह भी शर्त में उल्लखित रहता है. यदि 10 दिन में गैर कृषि प्रयोजन हेतु क्रय की गई कृषि भूमि को "गैर कृषि" घोषित कर दिया जाता है, तो फिर यह धारा-167 के अंतर्गत राज्य सरकार में (उल्लंघन की स्थिति में) निहित नहीं की जा सकती है.

कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन हेतु खरीद सकता है. समिति की संस्तुति है कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम से अलग अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेख से लिंक कर दिया जाए. राज्य सरकार 'भूमिहीन' को अधिनियम में परिभाषित करे. समिति का सुझाव है कि पर्वतीय क्षेत्र में न्यूनतम 5 नाली एवं मैदानी क्षेत्र में 0.5 एकड़ न्यूनतम भूमि मानक भूमिहीन' की परिभाषा हेतु औचित्यपूर्ण होगा.

भूमि जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई, उसका उललंघन रोकने के लिए एक जिला/मण्डल/शासन स्तर पर एक टास्क फ़ोर्स बनाई जाए. ताकि ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किया जा सके. सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं. कतिपय प्रकरणों में कुछ व्यक्तियों द्वारा एक साथ भूमि क्रय कर ली जाती है तथा भूमि के बीच में किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पड़ती है तो उसका रास्ता रोक दिया जाता है, इसके लिए Right of Way की व्यवस्था होनी चाहिए.

विभिन्न प्रयोजनों हेतु जो भूमि खरीदी जायेगी, उसमें समूह 'ग' व समूह 'घ' श्रेणी में स्थानीय लोगों को 70% रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो, उच्चतर पदों पर योग्यतानुसार वरीयता दी जाए. विभिन्न अधिसूचित प्रयोजनों हेतु प्रदान की गयीं अनुमतियों के सापेक्ष आवेदक इकाइयों/ संस्थाओं द्वारा कितने स्थानीय लोगों को रोजगार दिए गए, इसकी सूचना अनिवार्य रूप से शासन को उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो.

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वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि निर्धारित है और राज्य सरकार को अपने विवेक के अनुसार इसे बढ़ाने का अधिकार दिया गया है. इसमें संशोधन कर विशेष परिस्थितयों में यह अवधि तीन वर्ष (2 + 1 = 3) से अधिक नहीं होनी चाहिए. पारदर्शिता हेतु क्रय-विक्रय, भूमि हस्तांतरण एवं स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया Online हो. समस्त प्रक्रिया एक वेबसाइट के माध्यम से पब्लिक डोमेन में हो. प्राथमिकता के आधार पर सिडकुल/औद्योगिक आस्थानों में खाली पड़े औद्योगिक प्लांट/बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आवंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए.

प्रदेश में वर्ष बन्दोबस्त हुआ है, जनहित में भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए. भूमि क्रय की अनुमतियों का जनपद एवं शासन स्तर पर नियमित अंकन एवं इन अभिलेखों का रख-रखाव होना चाहिए. धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय/निर्माण किया जाता है तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए. राज्य में भूमि व्यवस्था को लेकर जब भी कोई नया अधिनियम/नीति/भूमि सुधार कार्यक्रम चलायें जायें तो राज्य हितबद्ध पक्षकारों/राज्य की जनता से सुझाव अवश्य प्राप्त कर लिए जाएं. नदी-नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों, सार्वजनिक भूमि आदि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे/निर्माण/धार्मिक स्थल बनाने वालों के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान हो. संबंधित विभागों के अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई का प्रावधान हो, ऐसे अवैध कब्जों के विरुद्ध प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाए.

क्या है भू कानून समिति: भू कानून समिति में अध्यक्ष समेत कुल पांच सदस्य हैं. इसमें समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं. सदस्य के तौर पर दो रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डीएस गर्ब्याल और अरुण कुमार ढौंडियाल शामिल हैं. डेमोग्राफिक चेंज होने की शिकायत करने वाले अजेंद्र अजय भी इसके सदस्य हैं. उधर, सदस्य सचिव के रूप में राजस्व सचिव आनंद वर्धन फिलहाल इस समिति में हैं.

हिमाचल के भू कानून की दिखेगी छवि: उम्मीद की जा रही है कि समिति की तरफ से जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी, उसमें हिमाचल के भू कानून की भी कुछ झलक दिख सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तराखंड में नए कानून को हिमाचल की तर्ज पर बनाए जाने की मांग उठती रही है. समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हिमाचल से ही ताल्लुक रखते हैं.

यही नहीं, इस समिति की तरफ से हिमाचल के भू कानून का अध्ययन किया गया है. समिति की तरफ से इस कानून के लिए मांगे गए सुझावों में करीब 200 सुझाव मिले थे. इनमें अधिकतर में उत्तराखंड की तरह ही भौगोलिक परिस्थितियां होने के कारण हिमाचल के भू कानून को प्रदेश में लागू करने के सुझाव मिले थे.

हिमाचल का भू कानून: हिमाचल में भू कानून काफी सख्त है. यहां जमीनों की खरीद-फरोख्त के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं. खासतौर पर कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त के नियम काफी मुश्किल हैं. इसमें कृषि भूमि को किसान के द्वारा ही खरीदा जा सकता है. इसमें भी वह किसान जो हिमाचल में लंबे समय से रह रहा हो.उत्तराखंड में 90 फीसदी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है. खास बात यह है कि राज्य स्थापना के समय करीब 7.8 चार लाख हेक्टेयर कृषि भूमि थी. अब महज 6.48 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि ही बची है. इस तरह देखा जाए तो अबतक करीब 1.22 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि कम हो चुकी है, जो काफी चिंता की बात है. इसीलिए कृषि भूमि में खरीद-फरोख्त को लेकर विशेष नियम की जरूरत है.

राज्य गठन से है सख्त भू कानून की मांग: वैसे भू कानून उत्तराखंड के लिए कोई नया मुद्दा नहीं है. राज्य स्थापना के बाद से ही भू कानून की मांग उठने लगी थी. उस दौरान उत्तर प्रदेश का ही भू अधिनियम प्रदेश में लागू रहा. राज्य बनने के बाद काफी तेजी से जमीनों की खरीद-फरोख्त शुरू हो गई. इसी को देखते हुए एनडी तिवारी सरकार में भू कानून को लेकर कुछ संशोधन किए गए. उत्तराखंड दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा हुआ है. यहां 71 फीसदी वनों के साथ 13.92 फीसदी मैदानी भूभाग है, तो 86% पर्वतीय क्षेत्र है.

एनडी तिवारी तिवारी सरकार ने साल 2003 में उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम 1950 की धारा 154 में संशोधन किया. इसमें बाहरी प्रदेश के लोगों को आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की अनुमति का नियम तय किया था. यही नहीं, कृषि भूमि पर खरीद को सशर्त रोक लगाई गई थी.

उधर, 12.5 एकड़ तक की कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था. उद्योगों की दृष्टि से सरकार से अनुमति लेने के बाद भूमि खरीदने की व्यवस्था की गई थी. यही नहीं, जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है उस परियोजना को 2 साल में पूरा करने की भी शर्त रखी गई थी. हालांकि इसमें बाद में कुछ शिथिलता की गई.

इसके बाद भी भू कानून का मुद्दा शांत नहीं हुआ और प्रदेश में बाहरी प्रदेश के लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में जमीन खरीदने का मामला सियासत में भी देखने को मिला. लिहाजा, खंडूरी सरकार ने नियम में कुछ और सख्ती करते हुए 500 वर्ग मीटर की अनुमति को और कम करते हुए 250 वर्ग मीटर कर दिया. हालांकि त्रिवेंद्र सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए साल 2018 में खंडूरी सरकार के इस नियम को खत्म कर दिया. जिसके बाद प्रदेश में बाहर से आने वाले लोगों को जमीन खरीदने को लेकर पूरी आजादी मिल गई.

धामी सरकार से उम्मीदें: अब एक बार फिर प्रदेश की धामी सरकार पर भू कानून को लेकर जबरदस्त दबाव है. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कुछ सख्त नियम बना सकती है. वैसे प्रदेश में आवासीय रूप से बाहर से आने वाले लोगों के लिए पूरी तरह से पाबंदी लगेगी. इस बात की आशंका कम ही है. लिहाजा, जो लोग प्रदेश से बाहर रहते हैं, उन्हें उत्तराखंड की शांत वादियों में जमीनें खरीदने का मौका तो मिलेगा, लेकिन अगर समिति सख्त नियम बनाने की सिफारिश करती है और सरकार उस पर अमल करें तो कुछ दिक्कतें जरूर हो सकती हैं.

Last Updated :Sep 5, 2022, 4:56 PM IST
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