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'परीक्षा मुख्यमंत्री की भी है, उनकी सीट पर भी हैं धब्बे...मैं भले दोषी हो जाऊं, पर कांग्रेस दोषी नहीं'

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Published : Sep 3, 2022, 8:49 PM IST

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उत्तराखंड विधानसभा भर्ती मामले में अब सवाल पुरानी नियुक्तियों को लेकर भी उठने लगी है. जिसकी वजह से पूर्व सीएम हरीश रावत के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. जिसको लेकर हरदा ने आज सोशल मीडिया में अपनी सफाई दी है. उन्होंने कहा कि मामले में लोग कांग्रेस की निष्पक्षता को भी जांचेंगे और मैं चाहता हूं कि हरीश रावत भले ही दोषी सिद्ध हो जाए, लेकिन कांग्रेस दोषी नहीं है.

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले (uttarakhand assembly back door recruitment scam) को लेकर जहां सरकार घिरती नजर आ रही है. वहीं, अब तक विधानसभा में हुई सभी भर्तियों को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. जिसकी आंच में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Former Chief Minister Harish Rawat) का नाम भी आने की बात कही जा रही है. इसी मुद्दे को लेकर हरदा ने सोशल मीडिया पर अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन किया है और सफाई दी है. उन्होंने का मामले में लोग कांग्रेस की निष्पक्षता को भी जांचेंगे और मैं चाहता हूं कि हरीश रावत भले ही दोषी सिद्ध हो जाए, लेकिन कांग्रेस दोषी नहीं है.

हरीश रावत ने कहा कि सोशल मीडिया में एक सूची प्रचारित की जा रही है. जिसमें विधानसभा में तदर्थ नियुक्तियों को लेकर संख्या 7, 34, 55, 58 और 72 के संदर्भ में मुझे कहना है कि इन तथाकथित नियुक्तियों से मेरा कोई संबंध नहीं है. मेरा कोई ड्राइवर बिष्ट नहीं रहा और हमारे पुरोहित नैनवाल और पांडे हैं. पंत लोगों को अपना पुरोहित संबोधित करने का सौभाग्य नहीं मिला.

उन्होंने लिखा कि संख्या 82 को मैं अवश्य जानता हूं. यह किसी सरकारी विभाग में थे और धारचूला से थे. धारचूला के लोगों के पत्र और काम, नोट करने की जिम्मेदारी इनको दी गई थी. स्थानीय राजनीति में हस्तक्षेप की शिकायत मिलने पर इन्हें मुख्यमंत्री आवास में नहीं आने को मेरे द्वारा कह दिया गया था.

वहीं, उन्होंने आगे लिखा कि कुछ समाचार पत्रों ने लिखा है कि मैं कुंजवाल का बचाव कर रहा हूं. मैं किसी का बचाव नहीं कर रहा हूं. मैंने बहुत ही स्पष्ट तौर पर कहा है कि जिस नियुक्ति में नैतिक बल नहीं है, वह गलत है और उसके विषय में स्पीकर और मुख्यमंत्री को एक पॉलिसी तय करनी चाहिए. मैंने उसमें सुझाव यह भी दिया है कि यदि नेता प्रतिपक्ष को भी सम्मिलित करना चाहें तो कर लें.

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विधानसभा के विवेक के ऊपर और मैं समझता हूं शब्द नैतिक बल, नियुक्तियों में यह बहुत प्रभावी है. जो नियुक्तियां माननीय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अंदर आ चुकी हैं. उस पर मैं इससे बड़ी और कोई टिप्पणी नहीं कर सकता था. मैं इतना शक्तिशाली नहीं हूं कि माननीय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के निर्णय पर, वह भी मुख्य न्यायाधीशों के निर्णय पर टिप्पणी करूं.

हरदा लिखते हैं कि चुनौतियां इम्तिहान लेती हैं. विधानसभा की माननीय स्पीकर जिनके सामने एक उज्जवल भविष्य और ठोस धरातल है. विधानसभा में हुई भर्तियों को लेकर उनकी परीक्षा है, इस प्रकरण को विधि सम्मत और नैतिकता सम्मत तरीके से सुलझाने की. परीक्षा माननीय मुख्यमंत्री की भी है, उनकी सीट में धब्बे हैं.

मगर यह चुनौती जो अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में नियुक्तियों को लेकर है, इस प्रकरण में उनकी पार्टी दलदल में फंसी हुई है. अब शिक्षा विभाग में चहेतों का एक नया प्रकरण आ गया है. खोजी पत्रकार इसके बाद कुछ और भी निकालेंगे. इम्तिहान करण माहरा का भी है, प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ऐसे मौके कम आते हैं. अब कितनी कुशलता से वो मामले को तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुंचाते हैं, सुव्यवस्थित दबाव दिखाई देना चाहिए. ताकि लोग कहें वाह कांग्रेस. अभी वो कुछ सफल होते दिखाई दे रहे हैं, शुभकामनाएं.

स्क्रूटनी मेरी भी होनी है. क्योंकि मैं जब अन्यों पर टिप्पणी करता हूं तो टिप्पणियां मुझ पर भी होंगी. कहा जा रहा है कि मेरे कार्यकाल में कुछ भर्तियों, प्रमोशन, चयन आदि में गड़बड़ियां हुई हैं. सरकार से मैं आग्रह करता हूं कि सारी नियुक्तियों की वह स्क्रूटनी करें और कांग्रेस के लोगों से मैं कहना चाहता हूं कि मेरे कार्यकाल में हुई भर्तियों के लिए कांग्रेस को बंधन मुक्त करता हूं, वो भी यदि कहीं गड़बड़ी पाते हैं तो निर्भीक तरीके से उस मामले को उठाएं और उसकी सरकार से जांच की मांग करें.

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लोग कांग्रेस की निष्पक्षता को भी जांचेंगे और मैं चाहता हूं कि हरीश रावत भले ही दोषी सिद्ध हो जाए, लेकिन कांग्रेस दोषी नहीं है. यही निष्कर्ष जाना भी चाहिए. मेरा कार्यकाल, राजनीतिक आपदा बाधित कार्यकाल रहा है. मेरे कार्यकाल में 32 हजार से ज्यादा छोटी-बड़ी नियुक्तियां हुई. मैंने ऐसे लोगों की भी नियुक्तियां दी, जो केंद्र के प्रोजेक्ट में नियुक्त थे. लेकिन जब प्रोजेक्ट खत्म हो गया तो उनकी नियुक्तियां समाप्त हो गई थी. मैंने उनकी समस्या का भी समाधान निकाला.

मैंने जो दैनिक वेतन भोगी थे, उनको तदर्थ किया. जो तदर्थ थे, उनको स्थायी करने का भी काम किया. मैंने प्रमोशन भी थोक में किए. मैंने कर्मचारियों की मांगों पर भी उदारतापूर्वक निर्णय लिए और जो नियुक्तियां भाजपा के कार्यकाल में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने की हैं, उन सभी के अधियाचन की प्रोसेस मेरे कार्यकाल में प्रारंभ हो गई थी. इसलिए 50,000 से ज्यादा ऐसी नियुक्तियों के लिए मैं कहीं न कहीं उत्तरदायी हूं.

कांग्रेस ने मुझसे यह नहीं कहा था कि आप आंख बंद कर फुल स्पीड में गाड़ी दौड़ाओ. यह मेरा विवेक था कि मैंने फुल स्पीड में गाड़ी दौड़ाई और उदारतापूर्वक नियुक्तियां कीं. मेरे कार्यकाल के वित्त व अन्य सचिव गण इस घबराहट में रहते थे कि आज पता नहीं किस समय, मुख्यमंत्री का टेलीफोन आ जाए और कहें कि यहां देखो कितनी पोस्ट रिक्त हैं. जो निकल सकती हैं, उसके विषय में विचार करो और मुझे बताओ.

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यदि मैंने आंख खोलकर कर ड्राइविंग नहीं की है तो फिर कुछ गलतियां हुई होंगी, तो उसके लिए कांग्रेस क्यों नुकसान भुक्ते. इसलिए मैंने कांग्रेस को कह दिया है कि आपका इससे कोई वास्ता नहीं है. हरीश रावत का वास्ता है और मैं इसको राजनीतिक विद्वेष का मामला नहीं मानूंगा. मुख्यमंत्री उन्मुक्त भाव से बल्कि अपनी पार्टी के ताली बजाने वाले भाव से भी मेरे कार्यकाल की नियुक्तियों, प्रमोशन आदि का जिस भी प्रकरण का चाहें, वो जांच करें, डटकर जांच करें मैं किसी भी जांच के लिए अपने को प्रस्तुत करता हूं.

अगले 2 माह तक विधानसभा व अधीनस्थ सेवा चयन आयोग आदि में नियुक्तियों को लेकर मैं सोशल मीडिया में कुछ नहीं कहूंगा. क्योंकि मैंने कल कहा था कि "और भी गम हैं जिंदगी में मोहब्बत के सिवा". राज्य की परीक्षा है महिला आरक्षण जो रद्द हुआ है. राज्य की सरकार और विधानसभा की परीक्षा है कि राज्य आंदोलनकारियों का क्षैतिज आरक्षण का हमारी सरकार द्वारा पारित बिल वापस हुआ है और संविधान कहता है कि यदि वह विधेयक यथावत रूप में पारित करके राज्यपाल को भेजा जाता है तो, राज्यपाल को उसमें हस्ताक्षर करने पड़ेंगे. अर्थात वह कानून बन जाएगा और राज्य आंदोलनकारियों को जो पेंशन देने का निर्णय था, वह क्रियान्वित हो जाएगा. मैं इन दो परीक्षाओं के लिए मुख्यमंत्री, सरकार और सारी विधानसभा सफल हो सके इसकी कामना करता हूं.

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