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जौनसार बावर में घराट को जिंदा रखे हुए हैं शशकु, पारंपरिक 'विरासत' से मुंह मोड़ रहे लोग

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Published : Oct 28, 2022, 11:55 AM IST

Updated : Oct 28, 2022, 12:48 PM IST

सदियों से पहाड़ी इलाकों में चलने वाले घराट लोगों को पौष्टिक आटा देकर जीवन प्रदान करते थे. लेकिन अब घराट संरक्षण के अभाव में आखिरी सांसें गिन रहे हैं. जौनसार बावर में भी कहीं कहीं गिने चुने घराट नजर आ रहे हैं. जहां कुछ लोग पुश्तैनी घराट को चलाने का काम कर रहे हैं, जिससे आज भी उनकी आजीविका चल रही है.

Gharat in Uttarakhand
घराट का वजूद

विकासनगरः कल्पना कीजिए जब अतीत में बिजली नहीं थी तो अनाज की पिसाई कैसे होती होगी? चक्की और कल कारखाने आधुनिकता की देन हैं, लेकिन इसके इतर उत्तराखंड के हर गांव में ऐसी सुविधा विकसित थी, जिसे देखकर हर कोई दंग रह जाएगा. यहां के घराट आज के बिजली की चक्की की तरह कार्य करते थे, लेकिन ये बिजली से न चलकर पानी से चलते हैं. जी हां, इन्हें घराट कहा जाता है. जिन्हें अब आधुनिकता की चकाचौंध लील रही है.

कभी पहाड़ की पहचान थे घराट: दरअसल, आज से करीब एक दशक पहले तक पहाड़ी इलाकों में आटा पीसने के लिए घराट का उपयोग किया जाता था. साथ ही ये घराट कई लोगों की आजीविका का भी मुख्य स्रोत भी माने जाते थे. लेकिन आज आधुनिकता और टेक्नोलॉजी के दौर में पारंपरिक घराट अपनी पहचान के साथ-साथ अपना अस्तित्व भी खोते जा रहे हैं. घराट तकनीक का बेहतर नमूना माने जाते हैं. ये पानी की ऊर्जा से चलते हैं, लेकिन आज उनकी जगह बिजली और डीजल से चलने वाली चक्कियों ने ले ली है.

जौनसार बावर में घराट को जिंदा रखे हुए हैं शशकु.

उत्तराखंड में घराट (Gharat in Uttarakhand) ग्रामीण क्षेत्रों में एक जीवन रेखा होती थी. लोग अपने खेतों में पारंपरिक अनाजों का उत्पादन कर उसे पानी से चलने वाले घराटों में पीसकर आटा तैयार करते थे. इन घराटों में पिसा हुआ आटा कई महीनों तक तरोताजा रहता था. साथ ही आटे की पौष्टिकता भी बनी रहती थी. यही लोगों के स्वस्थ रहने और सेहत का राज भी होता था. इन घराटों में लोग मंडुवा (कोदा), गेहूं, मक्का, चैंसू जैसे स्थानीय अनाज पीसते थे.
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मांगलिक कार्यों के लिए आज भी घराट में पिसाते हैं अनाज: लोगों का मानना है कि घराट में तैयार होने वाला आटा कई नजरिए से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. इसलिए आज भी पर्वतीय अंचलों में लोग मांगलिक कार्यों के लिए घराट के आटे का ही उपयोग करते हैं. लेकिन आधुनिकता की मार घराटों पर भी साफ देखी जा सकती है. जिसकी तस्दीक पर्वतीय अंचलों में घराटों की कम होती संख्या कर रही है.

जौनसार बावर में घराट चला रहे हैं शशकु: इन सबके इतर जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में आज भी गाड़ गदेरों में घराट यानी पनचक्की नजर आ जाती हैं. जहां कुछ लोग पुश्तैनी जीविकोपार्जन का सहारा घराट चला रहे हैं. जिनमें एक शख्स शशकु भी हैं. घराट संचालक शशकु का कहना है कि वो पीढ़ी दर पीढ़ी घराट चला रहे हैं. पहले उनके दादा फिर पिता भी घराट संचालित करते थे. अब वो भी घराट चलाकर ही अपना भरण पोषण कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि घराट में एक दिन में मात्र पचास किलो तक ही अनाज की पिसाई की जा सकती है. एक दिन और रात में मात्र एक क्विंटल अनाज पीसा जा सकता है. पिसाई के एवज में उन्हें पांच किलो आटा मिल जाता है. जिससे परिवार का भरण पोषण होता है. अब लोग इस पुश्तैनी काम से मुंह मोड़ रहे हैं.

वहीं, गेहूं पिसवाने पहुंचे ग्रामीण सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि घराट में पिसे अनाज के आटे का स्वाद काफी अच्छा होता है. जबकि बिजली से चालित चक्की के आटे में वो बात नहीं होती है. उनका कहना है कि घराट आटे पीसने का पारंपरिक तरीका है. जिससे आटे की पौष्टिकता बनी रहती है. ये आटा पाचन समेत अन्य दृष्टि से भी लाभदायक होता है.
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कैसे चलता है घराटः घराट एक पुरानी तकनीक से बनाया जाता है. गाड़ गदेरे से छोटी नहर का निर्माण कर पानी घराट तक लाया जाता है. जिसे ऊंचाई से तेजी से गिराया जाता है. जिससे घराट यानी लकड़ी के बने चक्के घूमने लगते हैं. जो फिर गोल चपटे पत्थर को घुमाते हैं.

इसमें एक गोल पत्थर नीचे तो दूसरा ऊपर होता है. चक्की के घूमते ही ऊपर का पत्थर भी घूमने लगता है. इस पत्थर के बीच में छेद किया जाता है. जहां अनाज का दाना गिरता और कुछ ही देर में पिस कर पत्थरों के नीचे से बाहर आ जाता है. फिर इस आटे को इकट्ठा कर थैली या कनस्टर आदि में भरा जाता है.

Last Updated : Oct 28, 2022, 12:48 PM IST
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