देहरादून: उत्तराखंड में मॉनसून के रफ्तार पकड़ते ही आपदा प्रबंधन विभाग ने भी अपनी कमर कस ली है. हाल ही में आपदा प्रबंधन विभाग ने अपने सभी अलार्म सिस्टम को लेकर के एक्सरसाइज की है तो वहीं आपदा मित्र भी तैयार किए गए हैं.
मॉनसून की आपदा से निपटने की तैयारी: उत्तराखंड में इस बार मॉनसून सीजन शुरू होने से पहले से ही मौसम का कहर देखने को मिल रहा था. अब तो मॉनसून भी आ गया है. उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं को लेकर केवल राज्य सरकार ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार भी बेहद गंभीर है. यही वजह है कि खुद एनडीएमए के अधिकारियों ने यात्रा सीजन से पहले देहरादून में एक बड़ी बैठक की थी.
इस बैठक में केवल राज्य सरकार की एजेंसियों की ही नहीं, बल्कि केंद्र की एजेंसियों की भी जिम्मेदारी तय की गई थी. वहीं अब मॉनसून सीजन के रफ्तार पकड़ते ही आपदा प्रबंधन विभाग ने अपनी तैयारियां और तेज कर ली हैं. इस बार आपदा प्रबंधन विभाग का विशेष फोकस इमरजेंसी अलार्म सिस्टम पर है. ताकि समय रहते सभी को सूचित किया जाए और कम से कम नुकसान हो ऐसा प्रयास किया जाए.
फ्लड फॉरकास्टिंग प्लान के लिए दिया गया 1 सप्ताह का समय: आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि राज्य में फ्लड फोरकास्टिंग यानी बाढ़ जैसी स्थितियों की पूर्व जानकारी के लिए जिम्मेदार सिंचाई विभाग और सीडब्ल्यूसी के अधिकारियों को एक मजबूत फ्लड फोरकास्टिंग सिस्टम आपदा प्रबंधन विभाग के साथ विकसित करने के सख्त निर्देश दिए गए हैं. उन्होंने बताया कि अब तक राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में तकरीबन 32 ऑटोमेटिक वॉटर लेवल रिकॉर्डिंग (AWLR) सेंसर लगाए गए हैं. बाकी जगह अभी मैनुअल हैं या फिर कई जगह पर सेंसर खराब पड़े हुए हैं. इन्हें भी पूरी तरह से ऑटोमेटिक करने के निर्देश दिए गए हैं.
उत्तराखंड में ये है फ्लड फोरकास्टिंग स्टेशन की स्थिति: आपको बता दें कि इस वक्त फ्लड फोरकास्टिंग के प्रदेश में केवल 4 स्टेशन हैं. वह भी केवल गढ़वाल रीजन में मौजूद हैं. 1 स्टेशन जो कि कुमाऊं रीजन में है उसकी रिपोर्टिंग भी लखनऊ की जाती है. इस पर आपदा प्रबंधन सचिव ने नाराजगी व्यक्त करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि इसकी रिपोर्टिंग उत्तराखंड आपदा प्रबंधन को की जाए. आने वाले 1 सप्ताह में पूरे प्रदेश के लिए फ्लड फोरकास्टिंग मॉडल तैयार किया जाए.
प्रदेश में मौजूद सभी डैम और बैराज पर भी AWLR लगाए जाने हैं. वहीं इन डैम और बैराज के डाउनस्ट्रीम में बसावट वाली जगहों पर 360 डिग्री सायरन सिस्टम लगाए जाने हैं, ताकि डैम या बैराज से पानी छोड़े जाने पर लोगों को पहले जानकारी मिल जाए. यह पूरी प्रक्रिया आगामी 10 से 15 दिनों में पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं. साथ में इन्हें आपदा प्रबंधन कंट्रोल रूम से भी लिंक करने के निर्देश दिए गए हैं.
मोबाइल टावर पर लगेंगे सायरन सिस्टम: राज्य में अर्ली वार्निंग सायरन सिस्टम को लेकर भी आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा तेजी से कार्य किया जा रहा है. आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में मौजूद मोबाइल टावरों को अर्ली वार्निंग सायरन सिस्टम के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. इसके लिए मोबाइल कंपनियां मना नहीं कर सकती हैं. आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने बताया कि सभी टेलीकॉम कंपनियों को पहले ही इसके लिए सूचित किया जा चुका है. आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कोई भी टेलीकॉम कंपनी अपने टावर का इस्तेमाल आपदा प्रबंधन के लिए करने से मना नहीं कर सकती है.
आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा सभी टेलीकॉम कंपनियों से उनके मोबाइल टावरों की लोकेशन मांगी गई है. इसके अलावा एनआईसी द्वारा तैयार किए जा रहे एक इंटीग्रेटेड सिस्टम पर भी आपदा प्रबंधन विभाग काम कर रहा है, जिसमें सभी सेंसर, अलार्म सिस्टम और डाटा को इंटीग्रेट किया जाएगा. इसे आपदा प्रबंधन विभाग के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) से जोड़ा जाएगा, ताकि आपदा प्रबंधन की 90 फ़ीसदी कार्रवाई ऑटोमेटेड फीड पर निर्भर हो और सपोर्ट सिस्टम तेजी से काम करें.
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1700 आपदा मित्र किए गए हैं तैयार: उत्तराखंड में इस मॉनसून सीजन के लिए आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा पिछले वर्षों की तरह आपदा मित्र तैयार किए गए हैं. आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि विभाग द्वारा इस बार 1700 आपदा मित्रों को ट्रेनिंग दी गई है. इनमें से करीब 900 को नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) ने ट्रेनिंग दी है. उन्होंने बताया कि इन सभी आपदा मित्रों को प्रदेश में आपदा की विषम परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाएगा. इन्हें रेस्क्यू किट भी दी गई हैं. इन सभी आपदा मित्रों को आपदा में रेस्क्यू और आपदा की परिस्थितियों से लड़ने के लिए तैयार किया गया है.