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मसूरी में बग्वाल पर्व की धूम, रासो-तांदी नृत्यों पर जमकर थिरके लोग

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Published : Dec 2, 2021, 8:37 PM IST

Updated : Dec 2, 2021, 9:51 PM IST

पहाड़ों की रानी मसूरी में बूढ़ी दिवाली यानी बग्वाल (Bagwal Festival celebrated in Mussoorie) की धूम रही. इस दौरान ग्रामीणों ने पारंपरिक परिधान के साथ रासो-तांदी का नृत्य किया. जो देखते ही बन रहा था. बता दें कि जौनपुर, रवांई और जौनसार बावर क्षेत्र में एक महीने के बाद दीपावली (deepawali festival celebrate after one month) मनाई जाती है. जिसे बूढ़ी दिवाली या बग्वाल (Budhi Diwali) कहते हैं.

Bagwal Festival celebrated in Mussoorie
मसूरी में बग्वाल पर्व की धूम

मसूरीः अगलाड़ यमुना घाटी विकास मंच की ओर से मसूरी में बूढ़ी दिवाली (बग्वाल) धूमधाम से मनाया गया. मसूरी-कैंपटी रोड पर पुरानी टोल चौकी के पास मंच की ओर से भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें यमुना और अगलाड़ घाटी के सैकड़ों लोगों ने भाग लिया. इस दौरान ग्रामीणो ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाग देवता की पूजा अर्चना कर बग्वाल त्योहार (Bagwal Festival celebrated in Mussoorie) मनाया. कार्यक्रम में लोग रासो-तांदी और सराई नृत्यों पर जमकर थिरके.

बता दें कि दीपावली से ठीक एक महीने के बाद जौनपुर, रवांई और जौनसार बावर क्षेत्र में मनाए जाने वाली पहाडों की मुख्य बूढ़ी दिवाली (Budhi Diwali festival) का अगाज हो गया है. मसूरी में भी इस मौके पर बग्वाल (भांड) का आयोजन किया गया. जिसे देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन के रूप में दर्शाया गया. इसमें बाबई घास से बनी विशाल रस्सी का प्रयोग किया जाता है. इसकी खासियत यह है कि रस्सी बनाने के लिए बाबई घास को इसी दिन काटकर बनाया जाता है.

मसूरी में बग्वाल पर्व की धूम.

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उड़द की दाल, चिउड़ा और अखरोट का प्रसाद बेहद खासः मान्यता के अनुसार, रस्सी बनाने के बाद स्नान करवाकर विधिवत पूजा अर्चना की जाती है. होलियात का आयोजन भी किया गया. जिसमें भीमल की लकड़ियों से बने होल्ले खेले गए. साथ ही भिरूड़ी भी बांटी गई. इस मौके पर पूरे जौनपुर-जौनसार व रवांई में उड़द की दाल से बनाए जाने वाले पकोड़े, साठी से बनी चिउड़ा और भिरूड़ी बराज के अखरोट प्रसाद स्वरूप वितरित किए गए. ग्रामीणों ने बताया कि बग्वाल भांड जौनपुर क्षेत्र का मशहूर त्योहार है. जिसे ग्रामीण और आसपास के क्षेत्र के लोग बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं.

एक महीने बाद मिली थी श्रीराम के अयोध्या लौटने की सूचनाः वहीं, इस दिन गांव में विशेष व्यंजन तैयार किए जाते है और एक-दूसरे को परोसे जाते हैं. उन्होने बताया कि भगवान रामचंद्र जी के बनवास से अयोध्या लौटने की सूचना उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में करीब एक महीने के बाद मिली थी. जिसे सुन ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गई. जिसके स्वरूप ग्रामीण इस दिवस को बग्वाल (deepawali festival celebrate after one month) के रूप में मनाते हैं. लोग अपनी पारंपरिक परिधान में नाचते गाते नजर आए. मंच के कोषाध्यक्ष सूरत सिंह खरकाई ने सभी क्षेत्रवासियों को बग्वाल पर्व की बधाई. उन्होंने कहा कि पर्वतीय इलाकों के पहाड़ सरीखे जीवन में जब तीज-त्योहारों के क्षण आते हैं तो खेत-खलिहान भी थिरक उठतें है.

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खेल खलिहान में खेला जाता है भैलोः बग्वाल यानी दिपावली भी इसी का हिस्सा है. गांव में रात्रि में सभी लोग किसी खेत खलिहान पर जमा होने के साथ ही भैलो (Bhailo) जो चीड़ की लकड़ियों से बनी मशाल को घूमाते हुए नृत्य करते हैं. उन्होंने कहा कि त्योहारों के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने की दिशा में क्षेत्र में बग्वाल कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिससे स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों को अपनी संस्कृति से रूबरू करवाया जा सके और पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सके.

उन्होंने बताया कि सभी लोग हर्षोउल्लास से बग्वाल का त्योहार मना रहे हैं. साथ ही बताया कि डिबसा (होलियात) जलाने के बाद रासौ, तांदी और सराई नृत्यों का आयोजन भी किया गया. वहीं, मंच की बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि काफी प्रवासी बग्वाल त्योहार में अपने गांव नहीं जा पाते हैं, इसलिए क्यों न मसूरी में ही बग्वाल का आयोजन किया जाए. जिससे आने वाली पीढ़ी भी अपनी बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू हो सके और उनका जुड़ाव अपनी संस्कृति से बना रहे.

Last Updated : Dec 2, 2021, 9:51 PM IST
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