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उत्तराखंड पुलिस का सेल्फ गोल! जिन मामलों ने बटोरी सुर्खियां, वो ही बने फजीहत की वजह

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Published : Oct 8, 2022, 8:47 PM IST

Updated : Oct 8, 2022, 10:28 PM IST

Questions arising on homework of Uttarakhand Police
उत्तराखंड पुलिस के होमवर्क पर उठ रहे सवाल

UKSSSC पेपर लीक मामले (UKSSSC paper leak case) में चार आरोपियों को सबूतों के अभाव में जमानत (Bail to four accused) मिल गई. उत्तराखंड पुलिस के लगातार एक्शन के बाद भी बॉबी कटारिया उसके हाथ नहीं आया. बॉबी कटारिया ने दून कोर्ट में सरेंडर भी किया और जमानत (Bobby Kataria also got bail from the court) भी ली. जिसके बाद उत्तराखंड पुलिस की कार्यप्रणाली (Uttarakhand Police Functions) के साथ ही केस के होमवर्क पर सवाल उठने लगे हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में इनदिनों पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई ने लोगों की वाहवाही तो लूटी है. लेकिन अब इन मामलों में उतनी ही फजीहत भी होने लगी है. कोर्ट में आरोपियों को जिस तरह जमानत मिल रही है, उससे पुलिस के होमवर्क पर सवाल खड़े होते दिख रहे हैं. इनमें पहला मामला UKSSSC पेपर लीक (UKSSSC paper leak case) से जुड़ा है. जिसके चार आरोपियों को सबूत न होने के वजह से जमानत (Bail to four accused in UKSSSC paper leak case) मिल गई. दूसरा मामला बॉबी कटारिया का है. जिसमें महज 25 हजार के मुचलके पर बॉबी को जमानत मिल गई. मजे की बात ये है कि अब पुलिस इस मामले में धाराएं सामान्य होने का राग भी अलाप रही है.

आपराधिक मामलों में पुलिस की भूमिका आरोपी की गिरफ्तारी को लेकर जितनी अहम होती है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण मामले की मजबूत विवेचना रहती है. दरअसल, पुलिस की विवेचना के आधार पर कोर्ट में आरोपी को सजा दिलवाई जा सकती है. लिहाजा भले ही पुलिस गिरफ्तारी को लेकर कितनी तेजी दिखा ले. लेकिन यदि मामले की जांच पर्याप्त सबूतों के अभाव में होती है तो कोर्ट में आरोपी आसानी से कानून के शिकंजे से बाहर निकल जाता है.

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मजे की बात यह रही कि एक तरफ यूट्यूबर बॉबी कटारिया कोर्ट से जमानत लेकर आसानी से निकल गया तो वहीं अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में पेपर लीक मामले को लेकर भी चार आरोपी भी जमानत पर छूट गए. इन दोनों मामलों की चर्चा इसलिए हो रही है. क्योंकि उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर में इन मामलों ने खूब सुर्खियां बटोरी. पुलिस ने भी इन मामलों मे कठोर कार्रवाई के बड़े-बड़े दावे किए थे.

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आपको जानकर हैरानी होगी कि बॉबी कटारिया के मामले में तो पुलिस हरियाणा तक पहुंच कर गिरफ्तारी समेत कुर्की के आदेशों को चस्पा करती हुई दिखाई दी. ऐसा लगा कि जैसे सड़क पर शराब पीते हुए इस वीडियो की बदौलत पुलिस बॉबी कटारिया को ऐसी सजा दिला देगी कि मानो इतिहास में ऐसा हुआ ही न हो. लेकिन खोदा पहाड़ निकली चुहिया, मामले में बॉबी कटारिया आसानी से देहरादून कोर्ट पहुंचा और जमानत लेकर वापस चला गया. इस मामले में पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार का कहना है कि बॉबी कटारिया के खिलाफ धाराएं इतनी सामान्य थी कि उसे जमानत मिलनी ही थी.

कानून के जानकार अधिवक्ता संजीव शर्मा कहते हैं कि बॉबी कटारिया पर जो धाराएं पुलिस ने लगाई थी वह बेलेवल थी, लिहाजा कोर्ट से उसे जमानत मिलनी ही थी. कानूनी रूप से देखा जाए तो यह सामान्य घटनाक्रम है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब इसमें धाराएं और अपराध सामान्य था तो फिर मामले का इतना हव्वा क्यों बनाया गया.

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प्रदेश में दूसरा मामला उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में पेपर लीक मामले से जुड़ा है. जिसे लंबे समय से प्रदेश और देश भर में सुर्खियां मिली है. इस मामले में भी एक दिन पहले ही चार आरोपियों को जमानत मिल गई. बताया गया कि जमानत का आधार पर्याप्त सुबूत ना होना था. जिसके कारण कोर्ट ने चारों आरोपियों को जमानत दे दी. बता दें कि इस मामले में अब तक 41 आरोपियों की गिरफ्तारी की जा चुकी है. जिसमें से 28 लोगों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है. जमानत पाने वाले आरोपियों पर पेपर लीक के एवज में लाखों की रकम लेने का आरोप है. इसी के आधार पर इनकी गिरफ्तारी की गई थी.

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कोर्ट में जब जमानत पर बचाव पक्ष ने अपनी बात रखी तो एसटीएफ इन आरोपों को साबित नहीं कर पाई. न ही पेपर लीक के एवज में ली गई लाखों रकम की रिकवरी दिखा पाई. जाहिर है कि सबूतों के अभाव में आरोपों को जमानत मिलनी ही थी. इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव शर्मा कहते हैं कि पेपर लीक मामले को लेकर जो गिरफ्तारियां हुई हैं. वह एक आरोपी द्वारा दूसरे आरोपी की पहचान के आधार पर की गई हैं.

ऐसी स्थिति में पुलिस को कोर्ट में सुबूत पेश करने होते हैं, क्योंकि किसी के कहने पर महज किसी व्यक्ति को जेल में नहीं रखा जा सकता. पुलिस ने या तो इस मामले की ठीक से विवेचना नहीं की और सुबूत इकट्ठे नहीं कर पाई. अधिवक्ता संजीव शर्मा कहते हैं कि अक्सर वह देखते हैं कि कोर्ट में पुलिस आरोपियों को पेश तो कर देती है. लेकिन पर्याप्त सुबूत और जांच नहीं करती. ऐसा ही इस मामले में भी संभावित लग रहा है.

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उधर दूसरी तरफ एसटीएफ के अधिकारी कहते हैं कि मामले में जितनी गहनता से जांच की जा सकती थी, उतनी गहनता से जांच की गई है. सुबूतों को इकट्ठा करने की भी कोशिश की गई है. कई बार तमाम प्रयासों के बाद भी सुबूत नहीं मिल पाते लेकिन कहीं भी प्रयास में कोई भी कमी नहीं की गई है. बाकी एसटीएफ की तरफ से लगातार आरोपियों को ज्यादा से ज्यादा सजा मिल सके, इसके लिए सही न्याय के तहत सबूतों के साथ कोर्ट में बात रखी जा रही है.

Last Updated :Oct 8, 2022, 10:28 PM IST
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