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Purnagiri Mela: माता पूर्णागिरि मेले की तैयारियां शुरू, जिलाधिकारी ने ली अधिकारियों के साथ बैठक

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Published : Feb 13, 2023, 7:57 PM IST

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108 शक्तिपीठों में से एक माता पूर्णागिरि मेले की तैयारियों को लेकर प्रशासन ने कमर कस ली है. होली के अगले दिन 9 मार्च से पूर्णागिरि मेले का शुभारंभ हो जाएगे. पूर्णागिरि मेले मंदिर में दर्शन करने के लिए दूर-दराज से भक्त यहां पहुंचते है.

चंपावत: उत्तराखंड के चंपावत जिले के टनकपुर में होली के अगले दिन 9 मार्च को लगने वाले माता पूर्णागिरि मेले की तैयारियां शुरू कर दी गई है. पूर्णागिरि मेले की तैयारियों को लेकर चंपावत के जिलाधिकारी नरेंद्र सिंह भंडारी ने विभाग के अधिकारियों और पूर्णागिरि मेला समिति के साथ की बैठक.

बैठक में जिलाधिकारी ने आवास, विद्युत, पेयजल, सफाई, सुरक्षा, परिवहन और चिकित्सा आदि व्यवस्थाओं को जल्द पूरा करने के दिए निर्देश. साथ ही मेले में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करने की कही बात. बैठक में चर्चा के दौरान जिलाधिकारी ने कहा कि इस साल मेले का पहले से ज्यादा भव्य आयोजन किया जाएगा. श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं बढ़ाई जाएगी. मेले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था का भी खासा इंतजाम किया जाएगा.
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इसके अलावा डीएम ने बताया कि बार भैरव मंदिर में स्थाई पुलिस चौकी बनाई जा रही है, इसके साथ ही मेले के दौरान 50 पीआरडी जवान अतिरिक्त तैनात किए जाएंगे. सभी वाहनों के लिए बेहतर पार्किंग व्यवस्था की जाएगी. पूरे यात्रा मार्ग में मंदिर तक सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे. विभिन्न कार्यों हेतु टेंडर की तैयारी भी अभी से पूरी कर ली जाएगी.

जिलाधिकारी ने जिला पर्यटन अधिकारी को भैरव मंदिर में पर्यटन विभाग की भूमि में वाहन खड़े करने हेतु पार्किंग व्यवस्था के टेंडर तत्काल जारी करने के निर्देश दिए. इसके अलावा मेले में स्वास्थ्य सुविधाएं व्यवस्थित रूप से संचालन हेतु मेला क्षेत्र में तीन स्थानों में मेडिकल टीम तैनात रहेगी. भैरव मंदिर में अस्थाई चिकित्सालय खोला जाएगा. विशेष रूप से हृदय रोगियों की सुविधा के विशेष प्रबंध किए जाएंगे.

माता पूर्णागिरि का इतिहास: माता पूर्णागिरि का धाम चंपावत जिले के टनकपुर में अन्नपूर्णा चोटी पर है. माता पूर्णागिरि धाम 108 शक्तिपीठों में से एक है. बताया जाता है कि 1632 में चंद तिवारी ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां पूर्णागिरि के दर पर पहुंचता है, मां उसकी हर मुराद पूरी करती है. इसके अलावा और मान्यता इस मंदिर से जुड़ी हुई है. बताया जाता है कि जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में खुद को जला डाला तो भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे, तो अन्नपूर्णा चोटी पर मां की नाभि गिरी थी, वो ही स्थल आज पूर्णागिरि के नाम से जाना जाता है.

मां के द्वारपाल हैं बाबा भैरवनाथ: बाबा भैरवनाथ को मां पूर्णागिरि का द्वारपाल कहा जाता है. माता पूर्णागिरि के धाम से पहले भैरव मंदिर है, जहां पर बाबा भैरवनाथ वास करते हैं. मां पूर्णागिरि के दर्शन करने से पहले बाबा भैरवनाथ के दर्शन करना जरूरी है, तभी ये यात्रा पूरी माना जाती है. भैरव मंदिर में पूरे साल धूनी जली रहती है.

कैसे पहुंचे माता पूर्णागिरि मंदिर: माता पूर्णागिरि का मंदिर चंपावत जिले के टनकपुर क्षेत्र में पड़ता है. टनकपुर से मंदिर की दूरी करीब 24 किलोमीटर है. टनकपुर तक आप रेल और बस से सीधे पहुंच सकते है. टनकपुर दिल्ली और देहरादून से सीधे बसें सुविधा उपलब्ध हैं.

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