चारधाम यात्रा का आखिरी पड़ाव है बदरी विशाल का धाम, कहताला है धरती का बैकुंठ

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Published : May 10, 2019, 6:21 AM IST

Updated : May 10, 2019, 12:46 PM IST

अलकनंदा नदी के किनारे बदरीनाथ धाम स्थित है. कुछ प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि यह मंदिर शुरू में एक बौद्ध मठ था और आदी गुरू शंकराचार्य ने जब 8वीं शताब्दी के आसपास जगह का दौरा किया तो ये एक हिंदू मंदिर में बदल गया था.

देहरादून: उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे बदरीनाथ धाम स्थित है. हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में ये एक यह धाम भगवान विष्णु का श्रद्धेय धार्मिक स्थल है. समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये मंदिर छोटा चार धाम भी कहलाता है. यह मंदिर वैष्णव के 108 दिव्य देसम में प्रमुख है. इसे धरती का बैकुंठ भी कहा जाता है.

मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां है, इनमें सब से प्रमुख है भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है. यहां भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित हैं. प्रतिमा के दाहिने ओर कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां है. बदरीधाम में श्री बदरीनारायण भगवान के पांच स्वरूपों की पूजा अर्चना होती है. विष्णु के इन पांच रूपों को ‘पंच बद्री’ के नाम से जाना जाता है.

पढ़ें- चारधाम यात्रा में उमड़ा श्रद्धालुओं का हुजूम, बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे यात्री

बदरीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार बद्रियों के मंदिर भी यहां स्थापित हैं. बदरीनाथ पांचों मंदिरों में मुख्य है. इसके अलावा योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्घ बद्री, आदि बद्री इन सभी रूपों में भगवान बदरीनाथ यहां निवास करते हैं.

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य ने चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया था. यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप. शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार, बदरीनाथ मंदिर का मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है. बदरीनाथ की यात्रा का मौसम हर साल छह महीने लंबा होता है, जो अप्रैल से शुरू होता है और नवंबर के महीने में समाप्त होता है.

पढ़ें- केदारनाथ मंदिर के खुले कपाट, भक्तों का लगा तांता

कुछ प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि यह मंदिर शुरू में एक बौद्ध मठ था और आदी गुरू शंकराचार्य ने जब 8वीं शताब्दी के आसपास जगह का दौरा किया तो ये एक हिंदू मंदिर में बदल गया था. मंदिर वास्तुकला और उज्ज्वल रंग सामने से देखने पर एक बौद्ध मठ के समान है.

जलवायु परिवर्तन और वक्त बीतने के साथ ये मंदिर कई बार क्षतिग्रस्त हुआ, लेकिन मंदिर को कई बार पुनर्निर्मित किया गया. 17वीं शताब्दी में गृहवाल के राजाओं द्वारा मंदिर का विस्तार किया गया. 1803 में जब हिमालयी भूकंप आया और मंदिर को बड़ा नुकसान हुआ, तब जयपुर के राजा ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया था.

Photo of Badri nath place
यह मंदिर वैष्णव के 108 दिव्य देसम में प्रमुख है. इसे धरती का बैकुंठ भी कहा जाता है

कैसे पहुंचें बदरीनाथ

रेल मार्ग

  • बदरीनाथ के सबसे समीपस्थ रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो यहां से मात्र 297 किमी. की दूरी पर स्थित है. ऋषिकेश भारत के प्रमुख शहरों से सीधे तौर पर रेलवे से जुड़ा है.

वायु मार्ग

  • बदरीनाथ के लिए सबसे नजदीक स्थित देहरादून का जॉलीग्रांट एयरपोर्ट है, जो यहां से मात्र 314 किमी. की दूरी पर स्थित है.

सड़क मार्ग

  • बस, टैक्सी और अन्य साधनों के जरिये ऋषिकेश से बदरीनाथ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.
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जानिए क्यों ‘पंच बद्री’ के नाम से भी जाना जाता है बदरीधाम



देहरादून: उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे बदरीनाथ धाम स्थित है. हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में ये एक यह धाम भगवान विष्णु का श्रद्धेय धार्मिक स्थल है. समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये मंदिर छोटा चार धाम भी कहलाता है. यह मंदिर वैष्णव के 108 दिव्य देसम में प्रमुख है. इसे धरती का बैकुंठ भी कहा जाता है.



मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां है, इनमें सब से प्रमुख है भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है. यहां भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित हैं. प्रतिमा के दाहिने ओर कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां है. बदरीधाम में श्री बदरीनारायण भगवान के पांच स्वरूपों की पूजा अर्चना होती है. विष्णु के इन पांच रूपों को ‘पंच बद्री’ के नाम से जाना जाता है.



बदरीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार बद्रियों के मंदिर भी यहां स्थापित हैं. बदरीनाथ पांचों मंदिरों में मुख्य है. इसके अलावा योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्घ बद्री, आदि बद्री इन सभी रूपों में भगवान बदरीनाथ यहां निवास करते हैं.



भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य ने चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया था. यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप. शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार, बदरीनाथ मंदिर का मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है. बदरीनाथ की यात्रा का मौसम हर साल छह महीने लंबा होता है, जो अप्रैल से शुरू होता है और नवंबर के महीने में समाप्त होता है.



कुछ प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि यह मंदिर शुरू में एक बौद्ध मठ था और आदी गुरू शंकराचार्य ने जब 8वीं शताब्दी के आसपास जगह का दौरा किया तो ये एक हिंदू मंदिर में बदल गया था. मंदिर वास्तुकला और उज्ज्वल रंग सामने से देखने पर एक बौद्ध मठ के समान है.



जलवायु परिवर्तन और वक्त बीतने के साथ ये मंदिर कई बार क्षतिग्रस्त हुआ, लेकिन मंदिर को कई बार पुनर्निर्मित किया गया. 17वीं शताब्दी में गृहवाल के राजाओं द्वारा मंदिर का विस्तार किया गया. 1803 में जब हिमालयी भूकंप आया और मंदिर को बड़ा नुकसान हुआ, तब जयपुर के राजा ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया था.



कैसे पहुंचें बदरीनाथ



रेल मार्ग

बदरीनाथ के सबसे समीपस्थ रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो यहां से मात्र 297 किमी. की दूरी पर स्थित है. ऋषिकेश भारत के प्रमुख शहरों से सीधे तौर पर रेलवे से जुड़ा है.



वायु मार्ग

बदरीनाथ के लिए सबसे नजदीक स्थित देहरादून का जॉलीग्रांट एयरपोर्ट है, जो यहां से मात्र 314 किमी. की दूरी पर स्थित है.



सड़क मार्ग

बस, टैक्सी और अन्य साधनों के जरिये ऋषिकेश से बदरीनाथ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.

 


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Last Updated :May 10, 2019, 12:46 PM IST
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