चोराबाड़ी झील को लेकर वाडिया के वैज्ञानिकों ने किया बड़ा खुलासा, बताई हकीकत

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Published : Jun 29, 2019, 11:27 PM IST

चोराबाड़ी झील के दोबारा पुर्नजीवित होने के दावे को वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने खतरे से बाहर बताया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर झील 6 महीने या एक साल के बाद टूट भी जाती है तो कोई खतरे वाली बात नहीं है.

देहरादून: केदारनाथ में आपदा की मुख्य वजह मानी जाने वाली चोराबाड़ी झील के दोबारा पुर्नजीवित होने के दावे को वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने खतरे से बाहर बताया है. ग्लेशियर के बीच बने झील का निरीक्षण कर वापस पहुंचे वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह झील केदार घाटी से 5 किलोमीटर ऊपर बनी है. साथ ही कहा कि अगर झील 6 महीने या एक साल के बाद टूट भी जाती है तो कोई खतरे वाली बात नहीं है.

चोराबाड़ी झील को लेकर वैज्ञानिकों ने किया खुलासा.

बता दें कि 16 जून को डॉक्टरों की टीम ने राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था. इस दौरान डॉक्टरों ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर ग्लेशियर में बने एक झील को चोराबाड़ी झील होने का दावा किया था. जिसको 250 मीटर लंबा और 150 मीटर चौड़ा बताया गया. जिसके बाद वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने झील का निरीक्षण किया.

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वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कहा कि ग्लेशियर के बीच में छोटे-छोटे झील बन गए हैं. लेकिन इससे खतरे वाली कोई बात नहीं है. जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो वहां का पानी इकट्ठा हो जाता है और वह छोटे-छोटे झील के रूप में तब्दील हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि चोराबाड़ी झील 2013 में आई आपदा के बाद नष्ट हो गई थी.

डीपी डोभाल ने बताया कि यह झील केदार घाटी से 5 किलोमीटर ऊपर बनी है. जोकि 30 फीट लंबा, 15 फीट चौड़ा और करीब 5 से 7 फीट गहरा है. साथ ही कहा कि अगर यह झील 6 महीने या एक साल के बाद टूट भी जाती है तो इससे कोई खतरा नहीं है.

Intro:साल 2013 में केदारनाथ धाम में आयी त्रासदी के बाद तहस-नहस हो गई केदारघाटी को यू तो फिर से खड़ा कर दिया गया है। लेकिन एक बार फिर केदारनाथ में आयी आपदा के मुख्य वजह वाले चोराबाड़ी झील को बीते दिनों दोबारा पुर्नजीवित होने के दावे पर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिको ने खतरे से बाहर बताया है। ग्लेशियर के बीच बने झील का निरीक्षण पर वापिस पहुची वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने झील के खतरे की बात पर विराम लगा दिया है। 


Body:आपको बता दे कि डॉक्टरों की टीम ने 16 जून को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था, और डॉक्टरों ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर ग्लेशियर में बने एक झील को चोराबाड़ी झील होने का दावा किया गया था। जिसके बाद इस झील की जानकारी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को दी गयी थी। और उस दौरान वह झील लगभग 250 मीटर लंबी और 150 मीटर चौड़ी बताई जा रही थी।

वैज्ञानिक डी पी डोभाल ने बताया कि चोराबारी झील से कोई खतरे वाली बात नहीं है क्योंकि चोराबारी झील 2013 में आयी आपदा के बाद नष्ट हो गया था। और जो चोराबारी झील के नाम पर लोगों को पैनिक करने कोशिश की जा रही है लेकिन यह जरूर है कि ग्लेशियर के बीच में छोटे-छोटे झील बन गए हैं। लेकिन इससे खतरे वाली कोई बात नहीं है। साथ बताया कि ग्लेशियर के ऊपर जो छोटे-छोटे झील बने हैं यह टेम्परेरी झील है क्योंकि जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो वहां का पानी इकट्ठा हो जाता है और वह छोटे-छोटे झील के रूप में तब्दील हो जाता है।

साथ ही बताया कि यह झील केदार घाटी से 5 किलोमीटर ऊपर बनी हुई हैं और अगर यह झील 6 महीने या 1 साल के बाद टूट जाती है तो इसके टूटने से कोई खतरे वाली बात नहीं है क्योंकि वह बहुत जगह है जहाँ पानी अपने आप जम जाएगा। साथ ही बताया कि यह झील 30 फिट लंबा, 15 फिट चौरा और करीब 5 से 7 फिट गहरा है। लेकिन इससे कोई दिक्कत वाली बात नही है। 


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