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बची सिंह रावत के नाम के पीछे है रोचक कहानी, जानें

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Published : Apr 19, 2021, 8:56 PM IST

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बची सिंह रावत के नाम के पीछे है रोचक कहानी

बीजेपी के वरिष्ठ नेता बची सिंह रावत का असली नाम आनंद सिंह रावत था. उनके नाम बदलने के पीछे क्या कुछ कारण रहा आइये आपको बताते हैं.

अल्मोड़ा: बीजेपी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री बची सिंह रावत दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. आज उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया है. उनके निधन से प्रदेश के साथ उनके गृह जनपद अल्मोड़ा में भी शोक की लहर है. 'बचदा' के निधन के बाद उनके राजनीतिक जीवन व उनको लेकर तमाम बातें सामने आ रही हैं. उन्ही में से एक रोचक किस्सा उनके नाम से जुड़ा हुआ है. दरअसल, उनका असली नाम आनंद सिंह रावत था, जो कि बाद में बदलकर बची सिंह रावत हो गया, इसके पीछे क्या कहानी है आइये आपको बताते हैं.

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बची सिंह रावत के बारे में जानें

बची सिंह रावत के करीबी लोग बताते हैं कि उनका नाम बची सिंह रावत बाद में रखा गया था. उनका असली नाम आनंद सिंह रावत था. वर्तमान में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष और बची सिंह रावत के करीबी रहे अजय वर्मा बताते हैं कि जब वह पैदा हुए तो बहुत बीमार हो गए थे. उनके बचने की उम्मीद काफी कम थी. किसी ज्योतिषी के कहने पर उनके पिता ने उनका नाम बची सिंह रावत रखा. बची सिंह रावत नाम रखने बाद एकाएक चमत्कार हुआ. उनकी खराब तबीयत ठीक हो गयी. तब से ही वह परिवार में बची सिंह रावत के नाम से ही जाने जाने लगे.

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बची सिंह रावत के बारे में जानें

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बची सिंह का जन्म 1 अगस्त 1949 को रानीखेत के पास के पली गांव अल्मोड़ा में हुआ था. इनकी स्कूली शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई. इनका मूल गृहस्थान हल्द्वानी था. अपनी परास्नातक की पढ़ाई उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से की, जहां से उन्होंने विधि की उपाधि हासिल की. जिसेक बाद एमए अर्थशास्त्र आगरा विश्वविद्यालय से पूरा किया.

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1992 में पहली बार वह उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए. 1993 में दोबारा विधायक का चुनाव लड़ा और जीत गये. अगस्त 1992 में 4 महीने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बनाये गए. 1996 में लोक सभा चुनाव जीतकर सांसद बने. जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा. 1996-1997 तक संसद की कई कमेटी के सदस्य भी रहे. 1998 में दोबारा लोक सभा में चुनकर आये. 1998-99 तक फिर महत्वपूर्ण कमेटियों जैसे सूचना-प्रसारण मंत्रालय के सलाहाकर रहे. 1999 में दोबारा लोक सभा चुनाव हुए, वे तीसरी बार रिकॉर्ड मार्जिन से सांसद चुनकर आये.

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1999 में ही पहली बार केंद्र सरकार में रक्षा राज्य मंत्री का पद संभाला. फिर 1999-2004 तक निरंतर विज्ञान और तकनीकी केंद्रीय राज्यमंत्री रहे. 2004-2006 में फिर से लोक सभा सांसद बने लेकिन इस बार विपक्ष में बैठना पड़ा. 2007 चुनाव में पार्टी अध्यक्ष बने. पार्टी को विधान सभा चुनावों में बहुमत दिलवाया और 2009 तक इस पद पर बने रहे. वह अल्मोड़ा लोकसभा सीट से लगातार 4 बार सांसद रहे.

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