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कॉर्बेट नेशनल पार्क में सिमट रही टाइगर की 'सल्तनत', अब पहाड़ों पर पलायन कर रहा 'जंगल का राजा'

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 9, 2023, 10:13 PM IST

Updated : Oct 10, 2023, 2:48 PM IST

Tigers in Uttarakhand देश में बाघों के लिए सबसे मुफीद माने जाने वाला कॉर्बेट टाइगर रिजर्व अब 'हाउसफुल' हो गया है. यहां जंगल के राजा टाइगर की सल्तनत सिकुड़ती जा रही है. ऐसे में Corbett Tiger Reserve समेत इसके आस पास के बाघ बेहद सीमित क्षेत्र में ही विचरण करने को मजबूर हो गए हैं. ऐसा वैज्ञानिकों के उस अध्ययन में सामने आया है, जिसमें कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की धारण क्षमता को देखा जा रहा है. बड़ी बात ये है कि कभी कॉर्बेट पर राज करने वाले इस खूंखार शिकारी वन्यजीव को जिंदा रहने के लिए पहाड़ों तक पर पलायन करना पड़ रहा है. ईटीवी भारत पर विस्तार से पढ़िए बाघों के 'पलायन' की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट...

Tigers in Uttarakhand
उत्तराखंड में बाघ

कॉर्बेट नेशनल पार्क में सिमट रही टाइगर की 'सल्तनत'

देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड में ऐसे कई पहाड़ी क्षेत्र भी बाघों के आतंक से खौफजदा हैं, जहां कभी बाघों की मौजूदगी लोगों ने महसूस ही नहीं की. खासकर पौड़ी जिले के कई दूरस्थ क्षेत्रों तक भी बाघों की पहुंच दिखाई दे रही है. इनता ही नहीं आस पास के दूसरे जिलों में भी इसी तरह ग्रामीणों को बाघ दिखाई दे रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि आखिरकार इन क्षेत्रों में बाघ कहां से आए? इसका जवाब वैज्ञानिकों की उन बातों में है, जो कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में धारण क्षमता से ज्यादा बाघ होने की ओर इशारा कर रही है.

Tigers in Uttarakhand
कॉर्बेट में विचरण करता बाघ

दरअसल, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व देश में घनत्व के लिहाज से सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाला संरक्षित क्षेत्र है. यहां बाघों के आंकड़ों ने वो सारे रिकॉर्ड तोड़े हैं, जो दुनिया में किसी भी टाइगर रिजर्व के हो सकते हैं. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या अपने उच्चतम सीमा पर पहुंच गई है. यानी अब बाघों के लिहाज से कॉर्बेट 'हाउसफुल' हो चुका है और ये क्षेत्र बाघों का और दबाव झेलने की स्थिति में नहीं है.

Corbett Tiger Reserve
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व
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जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क देश का सबसे पुराना नेशनल पार्क है. साल 1936 में बंगाल टाइगर के संरक्षण के लिए ही इसकी स्थापना की गई थी. कमाल की बात ये है कि बाघों के ही मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट के नाम पर इसका नाम रखा गया. जिम कॉर्बेट पार्क पौड़ी और नैनीताल जिले में फैला हुआ है. इसका कुल क्षेत्रफल 1288.34 वर्ग किलोमीटर है. इसका मुख्य या कोर जोन 520.8 वर्ग किलोमीटर में है. जबकि बफर जोन 797.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हैं.

Tigers in Uttarakhand
बाघों का पलायन

यानी जंगल का एक बड़ा क्षेत्र कॉर्बेट पार्क में मौजूद है. इसके बावजूद भी यदि बाघों की संख्या के लिहाज से इस पार्क को भारी दबाव में कहा जा रहा है तो फिर बाघों की यहां मौजूद संख्या को समझा जा सकता है. साल 2022 में ही देश में बाघों की गणना के आंकड़े जारी किए गए थे. जिसमें उत्तराखंड क्षेत्र में 560 बाघ होना रिकॉर्ड किया गया. अब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को लेकर रोचक तथ्य भी जानिए.

Tigers in Uttarakhand
बाघों की मौत

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को लेकर रोचक तथ्यः उत्तराखंड में 560 में से करीब 260 बाघ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मौजूद हैं. यहां तकरीबन 40 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रहने वाले बाघ 8 वर्ग किलोमीटर में सिमटे हुए हैं. देश में सबसे कम सल्तनत वाले बाघ कॉर्बेट में ही मौजूद हैं. कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों का पलायन भी तेज हुआ है. पसंद न होने के बावजूद भी बाघ मैदानों की जगह पहाड़ों पर पलायन कर रहे है. उत्तर प्रदेश तक भी बाघों की संख्या के लिए कॉर्बेट नेशनल पार्क का अहम योगदान माना जा रहा है.

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर कमर कुरैशी की मानें तो बाघों की सत्ता का दायरा कम हो रहा है. हैरानी की बात ये है कि बड़े क्षेत्र पर अपना दबदबा रखने वाले टाइगर अब छोटे क्षेत्र के लिए आपसी समझौता कर रहे हैं. माना जाता है कि मादा टाइगर 30 से 40 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में शिकार के लिए विचरण करती है. जबकि, नर टाइगर की सल्तनत 50 से 60 किलोमीटर हो सकती है, लेकिन कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में संकुचित सल्तनत का आंकड़ा 8 वर्ग किलोमीटर तक ही सीमित हो गया है.

बड़ी बात ये है कि बाघ पहाड़ी क्षेत्रों में जाना पसंद नहीं करते बावजूद इसके कॉर्बेट में बढ़ती संख्या के कारण उन्हें पहाड़ों की ओर ही पलायन करना पड़ रहा है. इसकी बड़ी वजह मैदानी क्षेत्रों में इंसानों की दखलंदाजी और बाघों की अत्यधिक संख्या होना माना जा रहा है. लिहाजा, बिना रोक-टोक के ये बाघ जंगलों के रास्ते पहाड़ों तक आसानी से पहुंच जाते हैं.
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वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर कमर कुरैशी कहते हैं कि निचले इलाकों में जगह न होने के कारण टाइगर पहाड़ों की ओर बढ़ रहे हैं. उन्हें बिना अवरोध के पहाड़ पर जाने का रास्ता मिलने के कारण ऐसा मुफीद लग रहा है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में लगातार बाघों की संख्या बढ़ रही है और इसके साथ यहां दबाव भी बढ़ता जा रहा है. शायद यही कारण है कि मानव वन्यजीव संघर्ष के मामले भी बढ़ रहे हैं और इसमें इंसानों के साथ बाघों की मौत का आंकड़ा भी बढ़ा है.

बाघों की मौतः खास बात ये है कि बाघों के मौतों के मामले कॉर्बेट और उसके आस पास के क्षेत्र में सबसे ज्यादा रिकॉर्ड किए जा रहे हैं. साल 2000 से लेकर अब तक करीब 181 बाघों की मौत हो चुकी है. इसी साल यानी 2023 में 9 महीने के भीतर ही 18 बाघ मरे हैं. इन 18 में से 16 बाघ अकेले कॉर्बेट और उसके आस पास के क्षेत्र में मृत मिले. इस साल कुमाऊं क्षेत्र में बाघों के अंगों की तस्करी मामले में कई तस्कर पकड़े गए.

देश में घनत्व के लिए हाथी से सबसे ज्यादा बाघ कॉर्बेट और काजीरंगा टाइगर रिजर्व में हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बाघ उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड के तमाम क्षेत्रों में विचरण करते हैं. देश में उत्तराखंड को बाघों की संख्या के लिहाज से तीसरा नंबर दिलाने का श्रेय कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के नाम है.

वहीं, उत्तराखंड में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की चिंताजनक स्थिति से वन विभाग भी वाकिफ है. शायद इसलिए काफी पहले ही कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान को जिम्मेदारी दी गई. इसको लेकर भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अध्ययन का काम शुरू भी कर दिया है, लेकिन अपने स्टडी के पहले ही चरण में वैज्ञानिकों को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों के भारी दबाव की स्थिति महसूस होने लगी है. इस बात को खुद बाघों पर अध्ययन करने वाले डॉक्टर कमर कुरैशी बताते हैं.
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Last Updated :Oct 10, 2023, 2:48 PM IST
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