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जानें, टीका विकसित करने की प्रक्रिया और कैसे मिलती है मंजूरी

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Published : Nov 27, 2020, 12:48 PM IST

Updated : Nov 28, 2020, 2:02 PM IST

वैश्विक कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ टीका बनाने के लिए दुनियाभर में शोध चल रहा है. कुछ कंपनियां कोविड टीका विकसित करने के आखिरी चरण में हैं, जबकि कुछ टीकों का परीक्षण चल रहा है. टीका विकसित करने के लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. आज हम आपको बता रहे हैं कि वैक्सीन विकसित करने और इसकी मंजूरी की प्रक्रिया...

vaccine development
टीके का विकास

हैदराबाद : दशकों से टीकों का इस्तेमाल होता आ रहा है और हर साल लाखों लोगों को सुरक्षित रूप से टीका लगाया जा रहा है. सभी दवाओं की तरह, वैक्सीन को व्यापक और सघन परीक्षण से गुजरना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि टीकाकरण के लिए यह सुरक्षित है.

रोग के खिलाफ इसकी सुरक्षा और क्षमता की परख करने के लिए प्रायोगिक वैक्सीन का पहली बार पशुओं में परीक्षण किया जाता है. पशुओं पर सफल होने के बाद मानव नैदानिक ​​परीक्षणों में तीन चरणों में इसका परीक्षण किया जाता है:

प्रथम चरण में, वैक्सीन को उसकी सुरक्षा का आकलन करने के लिए कम संख्या में स्वयंसेवकों को दिया जाता है. इसमें जांच की जाती है कि टीका प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है और सही खुराक निर्धारित की जाती है.

द्वितीय चरण में, वैक्सीन को आमतौर पर सैकड़ों स्वयंसेवकों को दिया जाता है और किसी भी दुष्प्रभाव की बारीकी से निगरानी की जाती है, ताकि आगे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करने की क्षमता का आकलन किया जा सके.

इस चरण में बीमारी के परिणामों पर डेटा भी एकत्र किया जाता है. हालांकि यह बड़ी संख्या में नहीं होता है, जिससे रोग पर वैक्सीन के प्रभाव की स्पष्ट तस्वीर मिल सके. इस चरण में प्रतिभागियों की विशेषताओं (जैसे- आयु और लिंग) पर ध्यान किया जाता है.

इस चरण में कुछ स्वयंसेवक को टीका लगाया जाता है, जबकि अन्य को नहीं. इससे टीका की प्रभावकारिता की आसानी से तुलना की जा सकती है और टीका के बारे में निष्कर्ष निकाला जाता है.

तृतीय चरण में, हजारों स्वयंसेवकों को टीका लगाया जाता है- जिनमें से कुछ को जांच टीके लगाए जाते हैं और कुछ को नहीं (द्वितीय चरण की तरह). दोनों समूहों के डेटा की तुलना सावधानीपूर्वक की जाती है और यह देखा जाता है कि क्या यह वैक्सीन उस बीमारी के लिए सुरक्षित और प्रभावी है, जिससे बचाव के लिए इसे तैयार किया गया है.

नैदानिक ​​परीक्षणों के परिणाम उपलब्ध होने के बाद टीका कई चरणों से गुजरता है, जिसमें प्रभावकारिता व सुरक्षा की समीक्षा, निर्माण के लिए नियामकीय मंजूरी और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति अनुमोदन शामिल हैं. इसके बाद एक वैक्सीन को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के लिए पेश किया जा सकता है.

वैक्सीन को पेश किए जाने के बाद, किसी भी अप्रत्याशित प्रतिकूल दुष्प्रभावों का पता लगाने के लिए करीबी निगरानी जारी रहती है. साथ ही लोगों की बड़ी संख्या के बीच नियमित उपयोग में प्रभावशीलता का आकलन किया जाता है. टीके के बढ़िया और प्रभावी उपयोग के लिए आकलन जारी रहता है.

वैक्सीन का परीक्षण
भरोसेमंद टीके की पहचान हो जाने के बाद, अब यह सबसे पहले प्रयोगशाला परीक्षण से गुजरेगा. इसमें वैक्सीन और उसके अवयवों की सावधानीपूर्वक जांच और परीक्षण किया जाता है. ये परीक्षण वैक्सीन की सुरक्षा का मूल्यांकन करते हैं और यह कितनी अच्छी तरह से बीमारी को रोकता है.

अगर प्रयोगशाला में सकारात्मक परिणाम मिलते हैं, तो इसे बनाने वाली कंपनी नैदानिक ​​परीक्षण करने के लिए आवेदन कर सकती है. इन परीक्षणों में आम तौर पर खुद से कई हजार स्वस्थ स्वयंसेवक भाग लेते हैं, जिनकी सुरक्षा राष्ट्रीय नियामक अधिकारियों द्वारा सुनिश्चित की जाती है और कई वर्षों तक चलती है.

यह परीक्षण सख्त नियमों से बंधे होते हैं और तीन मुख्य चरणों में किए जाते हैं:

  • प्रथम चरण के दौरान, छोटे समूह (लगभग 20-50 लोग) को टीका लगाया जाता है. इस चरण में वैक्सीन की सुरक्षा, दुष्प्रभाव, उचित खुराक, विधि और संयोजन का आकलन किया जाता है.
  • अगर यह सफल होता है तो द्वितीय चरण का परीक्षा किया जाता है. इस स्तर पर टीका आमतौर पर सैकड़ों लोगों को दिया जाता है और उनकी लोगों की उम्र, लिंग जैसी- विशेषताएं ध्यान में रखी जाती हैं, जिन्हें टीका लगाया जाता है.
  • तीसरे चरण में आमतौर पर हजारों लोगों को टीका लगाया जाता है ताकि सुनिश्चित हो सके कि यह व्यापक उपयोग के लिए सुरक्षित और प्रभावी है.
  • नियामक द्वारा टीके को मंजूरी दिए जाने से पहले इन सभी परीक्षणों के परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है.
  • टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने के बाद भी अध्ययन हो सकता है. वे वैज्ञानिकों को लंबे समय तक बड़ी संख्या में लोगों के बीच टीके की प्रभावकारिता और सुरक्षा की निगरानी करने में सक्षम बनाते हैं.

वैक्सीन की मंजूरी
जिन देशों में टीके निर्मित होते हैं, राष्ट्रीय या क्षेत्रीय नियामक टीके के विकास की देख-रेख करते हैं. इसमें नैदानिक ​​परीक्षणों को मंजूरी देना, उनके परिणामों का मूल्यांकन करना और लाइसेंसिंग के फैसले लेना शामिल है.

निर्णय लेने में नियामकों को स्वीकार्य नैतिक नैदानिक ​​अभ्यास पर बहुत सख्त अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लेख करना चाहिए.

वैक्सीन विकसित हो जाने के बाद राष्ट्रीय नियामक तय करते हैं कि उनके देशों में वैक्सीन लगाना है या नहीं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) उपलब्ध साक्ष्यों के व्यापक मूल्यांकन और वैक्सीन पर ताजा शोध पत्रों से इस प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए जानकारी प्रदान करता है.

Last Updated : Nov 28, 2020, 2:02 PM IST
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