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युवाओं की किस्मत बदल सकती है उत्तराखंड की केसर

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Published : Sep 8, 2020, 9:50 PM IST

Updated : Sep 8, 2020, 10:14 PM IST

उत्तराखंड के अल्मोड़ा में उगाई गई केसर जांच में 'ए' ग्रेड श्रेणी की मिली है. संस्थान का कहना है कि कश्मीर में उगने वाली केसर से भी कहीं अधिक इस केसर में गुणवत्ता पाई गई है.

saffron-cultivation in uttrakhand
उत्तराखंड का केसर

अल्मोड़ा : केसर को उत्तराखंड के पहाड़ की आबोहवा रास आ रही है. कश्मीर की केसर अब युवाओं की तकदीर बदल सकती है. अल्मोड़ा के जीबी पंत पर्यावरण व सतत विकास संस्थान ने अल्मोड़ा में कश्मीर की केसर का परीक्षण किया है. जिसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. जीबी पंत संस्थान द्वारा तैयार किए गए केसर की गुणवत्ता कश्मीर के केसर से भी अच्छी है. वहीं, अगर सरकार प्रवासी युवाओं को इस खेती के लिए प्रोत्साहित करती है तो पलायन पर ब्रेक लग सकता है.

कश्मीरी केसर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. यहां के केसर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ क्वालिटी के माने जाते हैं. जिसके बाद अफगानिस्तान और ईरान की केसर का नाम आता है. वहीं, अल्मोड़ा के कोसी में स्थित जीबी पंत पर्यावरण संस्थान के अन्तर्गत संचालित राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन ने परियोजना के तहत साल 2018 में कश्मीर के केसर के दो किलो बल्ब मंगवाकर इस पर प्रयोग करना शुरू किया. जिसके बाद हर सीजन में इसके बल्ब में बढ़ोतरी होती रही. इस साल संस्थान ने उगाए गए केसर को जांच के लिए जम्मू-कश्मीर के शेरे यूनिवर्सिटी के अंतर्गत संचालित केसर शोध संस्थान जम्मू को भेजा. जिसके आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं.

पहाड़ की आबोहवा केसर के लिए उपयुक्त

परिणाम से वैज्ञानिक भी गदगद
अल्मोड़ा में उगाया गया केसर जांच में 'ए' ग्रेड का मिला है. संस्थान का कहना है कि कश्मीर में उगने वाले केसर से भी कहीं अधिक इस केसर में गुणवत्ता पाई गई है. यहां पैदा केसर में सेफरानॉल का प्रतिशत काफी अधिक पाया गया है. इससे अब संस्थान के वैज्ञानिक भी गदगद हैं. उनका कहना है कि केसर की खेती पहाड़ में सफल पाई गई. इसकी खेती से पहाड़ के युवाओं का जीवन बदल सकता है. खासकर बाहर से प्रवासियों के लिए यह आजीविका का अच्छा साधन बन सकता है.

सफल रहा केसर का परीक्षण
जीबी पंत के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन परियोजना के नोडल अधिकारी व वरिष्ठ वैज्ञानिक किरीट कुमार का कहना है कि केसर की खेती से जहां पहाड़ के युवाओं की आर्थिकी सुदृढ़ हो सकती है. वहीं, इससे पहाड़ों से पलायन भी रोका जा सकता है. उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा के कोसी में केसर के सफल उत्पादन को देखते हुए संस्थान के सुझाव के बाद अब अल्मोड़ा जिला प्रशासन ने भी इसके परीक्षण के लिए जिले के तीन अन्य स्थानों को इसके परीक्षण के लिए चयनित किया गया है. इसके लिए अल्मोड़ा जिला प्रशासन द्वारा उन्हें 3 कुंतल केसर के बल्ब की मांग की है. उनका कहना है कि उनके इस मिशन में जम्मू की शेरे कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित केसर शोध संस्थान सहयोग कर रहा है, जहां से वह केसर के बल्ब मंगवा रहे हैं.

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काफी महंगा होता है बल्ब
किरीट कुमार ने आगे बताया कि केसर के बीज यानि बल्ब की कीमत काफी महंगी होती है. केसर के बल्ब की कीमत 2 से 2.5 लाख प्रति कुंतल होती है. हालांकि एक बार उत्पादन के बाद अगले बार इसके बल्ब दोगुने हो जाते हैं. इसकी खेती 5 से 6 महीने में पूरी हो जाती है. लेकिन उसके बाद केसर में भारी मुनाफा होता है. एक किलो केसर की कीमत बाजार में 8 लाख के करीब है. उनका कहना है कि इसकी खेती ठंडी जलवायु में होती है. खासकर उत्तराखंड में यह खेती जाड़ों के सीजन में की जा सकती है. उन्होंने बताया कि इसकी खेती को काफी संरक्षण की जरूरत पड़ती है. खासकर जंगली सुअर व अन्य जंगली जानवर इसको नुकसान पहुंचाते हैं.

जांच में मिली 'ए' ग्रेड क्वालिटी
वहीं, इसकी गुणवत्ता को लेकर वैज्ञानिक किरीट कुमार का कहना है कि केसर में काफी पौष्टिक गुण होते हैं. न्यूट्रियंस, माइक्रो न्यूट्रियंस की भरमार होती है. खासकर यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए काफी कारगर साबित होता है. वहीं, जीबी पंत पर्यावरण संस्थान के निदेशक आरएस रावल का कहना है कि विगत दो सालों से यहां कश्मीर की खेती का ट्रायल चल रहा था, जो सफल हुआ है. जिसकी गुणवत्ता ए ग्रेड पाई गई है. इससे पहाड़ों में केसर की खेती की संभावनाएं बढ़ी हैं, जो पहाड़ के युवाओं को रोजगार से जोड़ने का एक अच्छा साधन बन सकता है.

Last Updated :Sep 8, 2020, 10:14 PM IST
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