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पुण्यतिथिः जिस उमराव जान के आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों थे, वह 86 सालों से बनारस में हैं दफन

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 26, 2023, 10:22 PM IST

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वाराणसी में उमराव जान की 86वीं पुण्यतिथि (Umrao Jaan 86th death anniversary) पर उनके मकबरे पर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. लोगों ने राज्य और केंद्र सरकार से मांग की है कि उमराव जान के लिए एक लाइट और कब्रिस्तान के आसपास के रास्ते को बेहतर किया जाए.

डर्बीशायर क्लब के अध्यक्ष शकील अहमद जादूगर ईटीवी भारत को समस्या बताते हुए

वाराणसी: मशहूर अदाकारा उमराव जान की 86वीं पुण्यतिथि पर मंगलवार को फातमान रोड स्थित मस्जिद के पास बने मकबरे में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया. इस दौरान डर्बीशायर क्लब के अध्यक्ष शकील अहमद जादूगर के साथ कई लोगों ने पुष्प अर्पित कर अदाकारा उमराव जान को श्रद्धांजलि दी. शकील अहमद ने बताया कि उमराव जान फैजाबाद की थीं. उनके बचपन का नाम आमरीन था. नित्य गायन की बारीकियां उन्होंने लखनऊ में सीखी. जिसके बाद उन्होंने नवाबों को अपना दीवाना बना लिया.

उन्होंने बताया कि फैजाबाद में पली-बढ़ी उमराव जान किसी पहचान की मोहताज नहीं है. आमरीन को नवाबों के शौक ने उमराव जान बना दिया. उमराव जान की प्रतिभा के कारण इज्जत और शोहरत उनके कदम छू रही थी. उमराव जान की नृत्य और गायन प्रतिभा से उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली. बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं की नजर जब उमराव जान पर पड़ी तो उन्होंने उन पर फिल्म बना दी. बॉलीवुड की दो अभिनेत्रियों ने उनका रोल निभाया है. मशहूर निर्देशक मुजफ्फर अली की फिल्म में रेखा ने उमराव जान का रोल निभाया, तो कमाल अमरोही की फिल्म पाकीजा में ऐश्वर्या राय ने उमराव जान का किरदार बखूबी पेश किया. उनके नाम से बनी दोनों फिल्मों से लोगों ने करोड़ों रुपये कमाए.

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शकील अहमद ने बताया कि 26 दिसंबर 1937 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. सन 1930 से वो बनारस में आकर अपने समाज के साथ रहने लगी थीं. बनारस संगीत घराना है. उमराव जान एक ऐसी कलाकार थी, जिन्होंने अपनी अदाकारी से अंग्रेजों का बहिष्कार किया था. राज्य और केंद्र सरकार की मांग है कि उनके लिए एक लाइट और कब्रिस्तान के आसपास के रास्ते को बेहतर किया जाए, ताकि लोग यहां तक पहुंच सके. उमराव जान की कब्र वाराणसी में है. यह बहुत कम लोगों को पता है कि समाजवादी पार्टी सरकार में इस जगह का रिनोवेशन का कार्य किया गया था और मिट्टी के तिल में तब्दील होती उमराव जान की कब्र को यहां लगे एक पत्थर के जरिए खोज निकाला गया था. इसके बाद उसे कब्र पर लिखा उर्दू के शब्दों के जरिए यह पता चला था कि उमराव जान को वाराणसी के इसी कब्रिस्तान में दफनाया गया था. सरकार ने उनके इस कब्र के स्थान को मकबरे का रूप देकर लाल पत्थरों से इसे सजाया है.

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