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नवरात्र के पांचवें दिन स्कन्द माता के दर्शन पूजन करने से वात्सल्य एवं प्रेम की होती है प्राप्ति

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Published : Apr 6, 2022, 7:10 PM IST

स्कन्द माता
स्कन्द माता

वाराणसी में नवरात्र में दुर्गा के नौ स्वरूप का मंदिर स्थापित है. यहां लोग दर्शन करने जाते हैं. स्कंदमाता एवं वागेश्वरी माता का दर्शन करने वालों के मन की मुरादे पूरी होती है.

वाराणसी: जिले में नवरात्रि पर दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है. इसके लिए लोग देवी के नौ प्रमुख मंदिरों में दर्शन पूजन करते हैं. इस बार चैत्र नवरात्र 2 अप्रैल से शुरू होकर 11 अप्रैल तक रहेगी. नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता का दर्शन किया जाता है. काशी में देवी स्‍कंदमाता का मंदिर जैतपुरा क्षेत्र स्थित वागेश्वरी देवी मंदिर परिसर में माना गया है. मान्यता है कि इस मंदिर में स्कंदमाता एवं वागेश्वरी माता का दर्शन करने वालों के मन की सारी अभिलाषा पूरी होती है. इस लिए नवरात्र के दिनों में यहां दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाओं के साथ दर्शन पूजन के लिए आते हैं.

दुर्गा के नौ स्वरूप का मंदिर

स्कंद यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण ही देवी के इस स्वरूप को स्कंदमाता का नाम मिला है. काशी खंड और देवी पुराण के क्रम में स्कंद पुराण में देवी का भव्य रूप से वर्णन किया गया है. स्कंदमाता के दर्शन करने आई सरिता ने बताया कि पिछले 2 सालों से वह यहां दर्शन करने आ रहीं हैं. नवरात्र के पांचवें दिन माता के दर्शन करने की मान्यता है. यहां आने से सबकी मुरादें पूरी होती हैं.

स्कंद माता मंदिर के पुजारी ने बताया कि नवरात्र के पंचम दिन आदिशक्ति के नौ रूपों में एक रूप मां स्कंदमाता का भी है. इनकी यहां विधि-विधान से पूजा होती है. जो भी यहां दर्शन करने आता है, मां उसकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी करतीं हैं. आज चैत्र नवरात्र के पांचवें दिन देर रात से भक्तों की लाइन मां के दर्शन के लिए लगी हुई है.

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स्कंद माता की मान्यता वागेश्वरी देवी के रूप में भी है. भगवती की शक्ति से उत्पन्न सनत कुमार यानी स्कंद की माता होने से भगवती स्कंदमाता कहलाती है. सिंह पर सवार स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. स्कंदमाता में मातृत्व है. वह सभी तत्वों की मूल बिंदु स्वरूप हैं. वह वात्सल्य स्‍वरूपा हैं. अतः उनकी साधना, आराधना से वात्सल्य और प्रेम की प्राप्ति होती है.

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