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12वीं शताब्दी में लिखित राजतरंगिणी संस्कृत ग्रंथ में है अखंड भारत और कश्मीर की सच्चाई

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Published : Jul 24, 2023, 8:55 PM IST

कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी
कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में अखंड भारत की 488 साल पुरानी तस्वीर को बयां करता है. यहां 1835 में कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी एक संस्कृत ग्रन्थ मौजूद है. यह किताब 12वीं शताब्दी में महाकवि कल्हण द्वारा लिखी गई थी.

लाइब्रेरियन डॉक्टर राजनाथ ने बताया.


वाराणसीः बनारस शहर ने एक ऐसे इतिहास को संजोकर रखा है जो अखंड भारत की 488 साल पुरानी तस्वीर को बयां करता है. कल्हण द्वारा लिखे गए इस इतिहास का नाम राजतरंगिणी है. आज यह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में एक प्राचीन धरोहर के रूप में अखंड भारत के कश्मीर की सच्चाई बयां करता है. जिसमें पीओके समेत पूरे कश्मीर को दर्शाया गया है. इस किताब में कश्मीर के इतिहास का वर्णन महाभारत काल से आरंभ किया गया है. जिसमें उस दौर के राजाओं तक इसकी व्याख्या की गई है.


राजतरंगिणी संस्कृत विश्वविद्यालय में उपलब्धः कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी एक संस्कृत ग्रन्थ है. इसमें में कुल 8 अध्याय हैं, जो कश्मीर के राजाओं की सूची और उसके इतिहास का वर्णन करते हैं. इसे पढ़कर कोई भी अखंड भारत के हकीकत व सच्चाई को समझ सकता है. यही नहीं यह विश्व के उन देशों के लिए एक ऐसा लिखित प्रमाण भी है, जो कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के प्रोपोगेंडा में साथ देते हैं. संस्कृत विश्वविद्यालय में उपलब्ध यह किताब 12वीं शताब्दी में महाकवि कल्हण द्वारा लिखी गई थी. राजतरंगिणी आखिरी संस्कृत अनुवादित मूल प्रति है. यह सिर्फ संस्कृत विश्वविद्यालय के पास है. यह किताब मेन्यू स्क्रिप्ट मानी जाती है. इसके बाद अलग-अलग लेखकों ने हिंदी में इसका अनुवाद किया है.

कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी
कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी पुस्तक.
राजतरंगिणी में कश्मीर की जानकारीः संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के लाइब्रेरियन डॉक्टर राजनाथ ने बताया कि राजतरंगिणी को कश्मीर के ऊपर लिखा गया है. इसके लेखक कल्हण हैं. अगर कोई राजतरंगिणी का अध्ययन करें तो पूरी दुनिया ये जान सकती है कि कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग रहा है. इस किताब में प्राचीन राजाओं की कार्यशैली, उन राजाओं का नाम, वंशावली ये सब कुछ लिखा हुआ है. इसके आधार पर दुनिया के सारे देश यह समझ सकते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है. इस किताब से ही पाकिस्तान के दावे झूठे साबित हो जाएंगे. सबसे दुर्लभ किताब भी इस विश्वविद्यालय के पास है.


राजतरंगिणी प्राचीन ग्रंथः डॉक्टर राजनाथ ने कहा कि इस किताब का प्रचार-प्रसार पूरी दुनिया के सामने होना चाहिए. भारत के लोगों को भी जानना चाहिए कि कश्मीर का भारत से कितना पुराना संबंध रहा है. कश्मीर सदियों से भारत का अंग रहा है. जब भी लोग मंत्रों का भी वाचन करते हैं तो जम्मूद्वीपे भारतखंडे की बात करते हैं. कल्हण के द्वारा लिखा हुआ राजतरंगिणी प्राचीन काल का ग्रंथ है. जो ये बताता है कि कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है. इस किताब को 1835 में प्रिंट किया गया था. पहले राजाओं के समय में किताबें हस्तलिखित होती थीं. यह कश्मीर के राजाओं का मूल इतिहास था.

कश्मीर को जानने के लिए पढे़ं राजतरंगिणीः लाइब्रेरियन डॉक्टर राजनाथ ने बताया कि इस किताब को कलकत्ता से प्रकाशित किया गया था. इसकी 200 साल पुरानी मूल प्रति संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में रखी गई है. वहीं BHU के इतिहासकार ने इस बारे में बताया कि राजतरंगिणी कश्मीर के बारे में प्रामाणिक सोर्स है. इस किताब में वहां की व्यवस्था के बारे में, वहां के कल्चर के बारे में, वहां की जातियों के बारे में और वहां की राजव्यवस्था के बारे में भी जिक्र किया गया है. उन्होंने कहा कि कश्मीर को जानने के लिए कल्हण द्वारा लिखी गई किताब को पढ़ना होगा. किताब में राजाओं की नीतियों के बारे में भी बताया गया है.



ज्ञान प्राप्ति के लिए कश्मीर जाते थे लोगः बीएचयू के इतिहासकार डॉक्टर राजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि यह किताब अखंड भारत का वर्णन करती है. उस समय की संस्कृति का भी वर्णन करती है. लोग यह क्लेम करते हैं कि यहां पर पहले से ही मुगल थे, मुसलमान थे. जबकि राजतरंगिणी में बताया गया है कि वहां पर सभी लोग संस्कृत बोलते थे. संस्कृत बोलने का मुख्य केंद्र कश्मीर था. लोग सबसे ज्यादा शांति के लिए कश्मीर जाते थे. जो शहर शांति और स्वर्ग के लिए जाना जाता था. लेकिन आज कश्मीर में सबसे ज्यादा अशांति है. वहां के लोगों ने अपने संस्कार और संस्कृति को छोड़ दी है. कश्मीर में कई वेदों, विचारों और मंत्रों की रचना भी हुई है. ईशा मसीह भी काशी आने के बाद कश्मीर गए थे.


ब्रिटिश हुकूमत के दौर में छपी थी किताबः असिस्टेंट लाइब्रेरियन डाक्टर डीके तिवारी ने कहा कि राजतरंगिणी में 4 से 5 राजाओं का इतिहास है. जिस समय इसे लिखा गया था, उस समय हस्तलिखित इतिहास होते थे. ऐसे में जब भारत में अंग्रेजों की हुकूमत आई और प्रिंटिंग प्रेस आया. उस समय इस किताब को लिखा गया था. वर्ष 1835 में इस किताभ को प्रकाशित किया गया. उस समय की पाण्डुलिपि के आधार पर इस किताब की छपाई हुई थी. जबकि उस समय देश में ब्रिटिश हुकूमत था. इसलिए किताब के प्रकाशन में ब्रिटिश लोगों ने भी हस्तक्षेप किया होगा. उन्होंने कहा कि यह इस किताब को स्वतंत्र रूप से प्रकाशन भी नहीं किया गया होगा.



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