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वाराणसी: ज्ञानवापी परिसर में मां श्रृंगार गौरी विवाद? क्या कहता है इतिहास?

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Published : May 7, 2022, 2:38 PM IST

Updated : May 7, 2022, 5:09 PM IST

श्री काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर का विवाद कोई नया नहीं है. यह लगभग 350 साल पुराना है. यह विवाद 1991 से अदालत में चल रहा है. वहीं, इन सबके बीच मां श्रृंगार गौरी के प्रकरण ने तूल पकड़ लिया है. मां के नियमित दर्शन की मांग को लेकर वाराणसी के सिविल कोर्ट सीनियर डिवीजन में 5 महिलाओं ने याचिका दायर की है.

मां श्रृंगार गौरी प्रकरण
मां श्रृंगार गौरी प्रकरण

वाराणसी: श्री काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर का विवाद कोई नया नहीं है. लगभग 350 साल पहले औरंगजेब ने सनातन धर्म की आस्था के सबसे बड़े केंद्र को ध्वस्त करने का आदेश दिया. उसके बाद 1991 से लगातार श्री काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी परिसर का विवाद अदालत में चल रहा है. इन सबके बीच अगस्त 2021 में इस विवाद में एक नया मोड़ आ गया, जब ज्ञानवापी परिसर की बाउंड्रीवॉल के पश्चिमी छोर पर बाहरी दीवार से लगभग 6 फीट की दूरी पर चबूतरे पर स्थापित मां श्रृंगार गौरी की प्रतिमा के नियमित दर्शन की मांग को लेकर वाराणसी के सिविल कोर्ट सीनियर डिवीजन में 5 महिलाओं ने याचिका दायर की.

इस याचिका में श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन की मांग रखी गई और फिर शुरू हो गया एक नया विवाद. 8 अप्रैल 2022 के आदेश के बाद विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी परिसर में स्थित मां श्रृंगार गौरी मंदिर प्रकरण में कोर्ट के आदेश पर 6 मई 2022 से सर्वे और वीडियोग्राफी का काम शुरू हुआ. आइए आज हम आपको इस पूरे विवाद से जुड़े हर पहलू के बारे में बताते हैं.

ज्ञानवापी परिसर में मां शृंगार गौरी मंदिर का यह है इतिहास.

जानिए क्या है पूरा विवाद

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मुख्य श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस वर्ष 1991 से वाराणसी की स्थानीय अदालत में चल रहा है. अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में जारी है. हालांकि, मां श्रृंगार गौरी का केस महज साढ़े 7 महीने ही पुराना है. 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं जिनमें राखी सिंह, सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक और लक्ष्मी देवी ने बतौर वादी वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना दर्शन-पूजन की मांग सहित अन्य मांगों के साथ एक वाद दर्ज कराया था. इस मांग में इन सभी ने कोर्ट से यह गुहार लगाई है कि मां श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूर्व की तरह दर्शन पूजन शुरू हों. गणेश, हनुमान, नंदी जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष देवता परिक्षेत्र में विद्यमान हैं, उनकी स्थिति जानने के लिए एक कमीशन बनाया जाए.

कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए जमीनी हकीकत जानने के लिए वकीलों का एक कमीशन गठित करने के लिए अधिवक्ता कमिश्नर के रूप में अजय कुमार मिश्रा को नियुक्त किया. कोर्ट ने कमीशन और वीडियोग्राफी की कार्यवाही करके 10 मई से पहले रिपोर्ट मांगी है और सुनवाई की तारीख भी 10 मई नियत की है. इसके बाद कोर्ट के आदेश पर 6 मई को पहली बार अंदर वीडियोग्राफी की कार्यवाही शुरू हुई और भारी विरोध के बीच कमीशन के लिए नियुक्त किए गए वकील और अन्य लोग अंदर दाखिल हुए.

हालांकि, यह कार्यवाही आज और सोमवार को भी जारी रहने की उम्मीद है. इसका विरोध भी एक पक्ष कर रहा है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि कार्यवाही सिर्फ हिंदू पक्ष के समर्थन में अधिवक्ता कमिश्नर द्वारा पूरी की जा रही है, जबकि हिंदू पक्ष कोर्ट के आदेश के बाद भी मुस्लिम पक्षकारों पर आरोप लगाते हुए अंदर दाखिल न होने की बात कह रहा है.
विश्वनाथ मंदिर प्रांगण के इसी ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में श्रृंगार गौरी की प्रतिमा है. इसको लेकर हर साल विवाद होता है.

साल में एक दिन चैत्र नवरात्रि की चतुर्थी तिथि को दर्शन-पूजन के लिए खुलता है, लेकिन अब 5 महिलाओं ने प्रतिदिन इसके दर्शन-पूजन के लिए याचिका दायर की है. याचिका दायर करने वाली 5 महिलाओं में से सीता साहू का कहना है कि याचिका हम लोगों ने इसलिए दायर की है कि मां श्रृंगार गौरी की हम लोग प्रतिदिन पूजा-पाठ करना चाहते हैं. साथ में जो कॉरिडोर का हिस्सा है उसमें स्थित मंदिरों में हम लोग जाना चाहते हैं. उसमें हमारी मूर्तियां हैं. वहां जो मूर्तियां हैं उसकी फोटोग्राफी चाहते हैं. उन्होंने कहा कि वह देखना चाहती हैं कि वहां मंदिरों की क्या स्थिति है.

इस याचिका की सुनवाई करते हुए वाराणसी की अदालत ने 6 और 7 मई को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में वीडियोग्राफी का आदेश दिया था. साथ ही कोर्ट ने कहा कि इसमें दोनों पक्ष से लोग शामिल रहेंगे. शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन पूरी सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराएगा, लेकिन मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी की बात पर मस्जिद कमेटी के लोग विरोध कर रहे हैं. उनके वकील कह रहे हैं कि कोर्ट ने मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी का आदेश नहीं दिया. इस पूरे मामले में अंजुमन इंतजा मियां मसाजिद कमेटी के सेक्रेटरी यासीन का कहना है कि अदालत ने कमीशन की मांग स्वीकार कर ली है. लेकिन, इस आदेश में कहीं नहीं लिखा है कि मस्जिद के अंदर या बैरीकेडिंग के अंदर जाएंगे.

उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि संविधान के दायरे में रहकर विरोध करेंगे. क्योंकि आप मस्जिद के अंदर और बैरिकेडिंग के अंदर नहीं जा सकते. मस्जिद के अंदर केवल सुरक्षाकर्मी और मुसलमान ही जा सकते हैं. वहीं, मुस्लिम पक्षकारों के वकील अभय नाथ यादव का कहना है कि कोर्ट ने आदेश किया है कि इस कार्यवाही में एक पक्षीय काम किया जा रहा है जो कहीं से सही नहीं है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, अंदर कोई तोड़फोड़ या नुकसान नहीं पहुंचाना है. लेकिन, हिंदू पक्ष के सहयोग में नियुक्त किए गए अधिवक्ता कमिश्नर काम कर रहे हैं, जिसके लिए हम सभी कोर्ट में जाएंगे.

हालांकि, वादी वकील सुधीर त्रिपाठी कहते हैं कि दायर याचिका में बैरिकेडिंग के अंदर मस्जिद के तहखाने में स्थित श्रृंगार गौरी के साथ दूसरे विग्रहों के दैनिक पूजन के लिए याचिका दायर की गई थी. इसकी वीडियोग्राफी के लिए कोर्ट ने कहा है कि अगर इसे कोई रोकेगा तो यह कोर्ट की अवमानना होगी. न्यायालय के आदेश के अनुसार, यदि अंदर जाने से रोका जाता है तो यह कोर्ट की अवमानना होगी.

जिस स्थान का विवाद, आखिर वह क्या है?

इस बारे में श्रृंगार गोरी प्रकरण में संघर्ष कर रहे गुलशन कपूर और जानकार सोहन लाल आर्या से बातचीत की गई. गुलशन कपूर का कहना है कि विश्वनाथ मंदिर से 5 मकान छोड़कर ही उनका पुश्तैनी मकान है और उस मकान की वजह से उनका पूरा बचपन ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर परिसर में ही बीता. उनका कहना है कि श्रृंगार गौरी मंदिर में नियमित दर्शन करने वालों में उनका परिवार शामिल रहा. लेकिन, 1996-97 में एक साथ एक ही दिन हिंदू-मुस्लिम का एक त्यौहार पड़ने की वजह से यहां पर एक सीआरपीएफ कैंप रिजर्व पुलिस के तौर पर बसाया गया. बाद में अधिकारियों का ट्रांसफर हुआ और यह कैंप यहीं पर आ गया.

इस रास्ते को बंद कर दिया गया, जिसके लिए 10 सालों तक उन्होंने एक हिंदूवादी संगठन के साथ मिलकर संघर्ष किया. बाकायदा 2010 के बाद उन्हें यहां पर नियमित तो नहीं लेकिन नवरात्रि चैत्र चतुर्थी पर श्रृंगार गौरी के दर्शन वाले दिन पूजा और दर्शन करने का लिखित आदेश मिला. इसके बाद से वह हर साल यहां पर जाते हैं और पूजा-पाठ करने के साथ ही माता श्रृंगार गौरी की आराधना भी करते हैं.

गुलशन कपूर का कहना है कि यह कोई मंदिर का विग्रह नहीं, बल्कि ज्ञानवापी मस्जिद के बाउंड्रीवॉल से 6 फीट की दूरी पर चबूतरे में मौजूद एक छोटा सा विग्रह है, जो सिंदूर से रंगा हुआ है. 1991 में जब विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी विवाद की शुरुआत हुई और 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस हुआ. उसके बाद 1993 से बैरिकेडिंग शुरू होने के बाद यहां पर दर्शन की रोक-टोक शुरू कर दी गई थी और 10 सालों तक तो यहां दर्शन पूरी तरह से बंद था. इस छोटे से विग्रह पर सुहागिन महिलाओं के सिंदूर चढ़ाने की परंपरा आज की नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है. इसी छोटे से लगभग 5 से 10 मीटर के हिस्से का ही विवाद है.

इस याचिका के अलावा 1991 में भी एक मुकदमा दायर हुआ था. इसमें मांग की गई थी कि मस्ज़िद में स्वयम्भू विश्वेश्वर नाथ शिवलिंग आज भी स्थापित है. इसके पूजा-पाठ और मरम्मत का अधिकार मांगा गया था. कोर्ट ने उसमें पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था. यह मामला अभी लंबित है. इस बीच श्रृंगार गौरी का नया मामला आ गया. वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है. इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि इसे मंदिर तोड़कर बनाया गया था.

हिंदू पक्ष का दावा है कि इस ढांचे के नीचे 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है. पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है. कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2,050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था. लेकिन, मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन् 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था. दावा किया गया कि इसके अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने के लिए किया था, जिसे मंदिर भूमि पर निर्मित ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है. सन् 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वे अकबर के नौ रत्नों में से एक थे. लेकिन, 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई.

बाद में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में नया मंदिर बनवाया. इसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के रूप में जानते हैं. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है. यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित हैं. हालांकि, कुछ इतिहाकारों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 14वीं सदी में हुआ था और इसे जौनपुर के शर्की सुल्‍तानों ने बनवाया था. लेकिन, इस पर भी विवाद है. कई इतिहासकार इसका खंडन करते हैं. उनके मुताबिक, शर्की सुल्‍तानों द्वारा कराए गए निर्माण के कोई साक्ष्‍य नहीं मिलते हैं और न ही उनके समय में मंदिर के तोड़े जाने के साक्ष्‍य मिलते हैं.

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काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस का 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया गया था. इस याचिका के जरिए ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी. प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं. मुकदमा दाखिल होने के कुछ दिनों बाद ही मस्जिद कमिटी ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला देकर हाईकोर्ट में चुनौती दी.

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Last Updated :May 7, 2022, 5:09 PM IST
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