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आज है महालया, पितृ विसर्जन पर पितरों को खुश करने के लिए करें ये उपाय

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Published : Sep 28, 2019, 1:10 PM IST

कॉन्सेप्ट इमेज.

पितृ पक्ष 28 सितंबर को खत्म हो रहा है. इस दिन सभी लोग श्राद्ध करते हैं. इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी तिथि याद नहीं होती. इसके अलावा इस दिन ऐसे पितरों का भी श्राद्ध किया जाता है, जिनके मरने की तिथि अज्ञात है या वह सालों से लापता हैं.

वाराणसी: अश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू हुई पितरों की सेवा यानी पितृपक्ष अब समाप्त होने को है. 15 दिनों तक पितरों को श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान कर प्रसन्न करने के लिए लोग पूरे श्रद्धा भाव से इस पर्व को मनाते हैं. लोग नदी, सरोवर के तट पर रोज सुबह जलांजलि और पिंडदान कर ब्राह्मण भोजन कराते हुए पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने में जुटे रहते हैं. लगातार 15 दिनों तक इस पूजा-पाठ को करने के बाद अब समय है पितृ विसर्जन का. पितृ विसर्जन यानी पितरों को विदाई देना. 28 सितंबर को पितृ विसर्जन यानी महालया संपन्न होगा.

पितृ विसर्जन पर श्राद्ध कर पितरों को करें खुश.


पितृ विसर्जन जिसे महालया के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन पितरों को 15 दिनों के श्रद्धा भाव के साथ की गई पूजा के बाद विदाई दी जाती है. इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि इंसान हर तरह के दिन से तो मुक्त हो जाता है, लेकिन पितृ ऋण से मुक्त होना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि पितरों का आशीर्वाद जीवन में होना इंसान को आगे बढ़ाता है. यही वजह है कि 15 दिनों तक इस पक्ष में लोग जी-जान से पितरों की सेवा करते हैं. उन्हें जलांजलि देकर पिंडदान और ब्राह्मण भोजन कराकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.


जानिए कब करें पितृ विसर्जन-
वहीं बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जिनको अपने पूर्वजों की तिथियां याद नहीं होती हैं. ऐसी स्थिति में वह लोग इन 15 दिनों तक मोह तर्पण इत्यादि नहीं कर पाते. इसलिए पितृपक्ष के अंतिम दिन यानी अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पितृ विसर्जन के दिन मध्यान्ह यानी 12:00 से 2:00 बजे के बीच श्राद्ध कर्म और तर्पण इत्यादि करना चाहिए.

पढ़ें:- आज है पितृ अमावस्या, जानिए क्या है श्राद्ध करने का सही तरीका

जानिए पितृ विसर्जन की विधि-
इसके लिए किसी नदी सरोवर या गंगा के तट पर यदि यह संभव न हो तो घर में ही एक थाली या किसी पात्र में जल भरकर तिल और कुशा को हाथ में लेकर संकल्प करें. संकल्प इत्यादि कर पितरों का नाम लेते हुए उन्हें जल अर्पित करते हुए तिल देना चाहिए. यदि कोई शास्त्रीय ब्राह्मण हो तो पिंडदान भी पूरा करना चाहिए. इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराकर शाम के वक्त पितरों को विदाई देने का विधान बताया गया है.


ज्योतिषाचार्य ने दी ये जानकारी-
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि पितरों को विदाई देने का भी एक तरीका होता है. इसके लिए शाम के वक्त जब सूर्यास्त की बेला हो उस वक्त घर के बाहर एक मुख का दीपक दक्षिण दिशा की तरफ करके नीचे चावल रखकर तिल के तेल में इसे जलाना चाहिए. दीया जलाते वक्त अपने पितरों का ध्यान करते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह बोलना चाहिए कि 15 दिनों तक आपकी हमने सेवा की, आपका आशीर्वाद सदैव हम सभी पर बना रहे, पूरा घर परिवार सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहे, यह आशीष प्रदान करें और पितृ लोक में वापस लौटिए. शाम के वक्त पितरों की विदाई के इस तरीके से पित्र संतुष्ट होते हैं और खुश होकर आशीर्वाद प्रदान कर पितृ लोक में वापस चले जाते हैं.

Intro:स्पेशल: पितृ विसर्जन

वाराणसी: अश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू हुई पितरों की सेवा यानी पितृपक्ष अब समाप्त होने को है 15 दिनों तक पितरों को श्राद्ध तर्पण व पिंडदान कर प्रसन्न करने के लिए लोग पूरे श्रद्धा भाव से इस पर्व को मनाते हैं. नदी सरोवर के तट पर रोज सुबह जला अंजलि और पिंडदान कर ब्राह्मण भोजन कराते हुए पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करें में जुटे रहते हैं. लगातार 15 दिनों तक इस पूजा-पाठ को करने के बाद अब समय है पित्र विसर्जन का पितृ विसर्जन यानी पितरों को विदाई देना 28 सितंबर को पुत्र विसर्जन यानी महालया संपन्न होगा. जिसमें पितृ विसर्जन कैसे करें क्या होना चाहिए सही समय इस बारे में काशी के विद्वानों ने बताया विस्तार से.


Body:वीओ-01 पितृ विसर्जन जिसे महालया के नाम से भी जाना जाता है इस दिन पितरों को 15 दिनों के श्रद्धा भाव के साथ की गई पूजा के बाद विदाई दी जाती है इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि इंसान हर तरह के दिन से तो मुक्त हो जाता है लेकिन पितृ ऋण से मुक्त होना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि पितरों का आशीर्वाद जीवन में होना, इंसान को आगे बढ़ाता है. यही वजह है कि 15 दिनों तक इस पक्ष में लोग जी जान से पितरों की सेवा करते हैं. उन्हें जलांजलि देकर पिंडदान व ब्राह्मण भोजन कराकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन बहुत से लोग ऐसे होते हैं. जिनको अपने पूर्वजों की तिथियां याद नहीं होती हैं ऐसी स्थिति में वह लोग इन 15 दिनों तक साथ देकर मोह तर्पण इत्यादि नहीं कर पाते, इसलिए पितृपक्ष के अंतिम दिन यानी अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पितृ विसर्जन के दिन मध्यान्ह यानी 12:00 से 2:00 के बीच श्राद्ध कर्म तर्पण इत्यादि करना चाहिए. इसके लिए किसी नदी सरोवर या गंगा के तट पर यदि यह संभव ना हो तो घर में ही एक थाली या किसी पात्र में जल भरकर तिल और कुशा को हाथ में लेकर संकल्प इत्यादि कर पितरों का नाम लेते हुए उन्हें जल अर्पित करते हुए तिल देना चाहिए और यदि कोई शास्त्रीय ब्राह्मण हो तो पिंडदान भी पूरा करना चाहिए इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराकर शाम के वक्त पितरों को विदाई देने का विधान बताया गया है.


Conclusion:वीओ-02 पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि पितरों को विदाई देने का भी एक तरीका होता है. इसके लिए शाम के वक्त जब सूर्य अस्त की बेला हो उस वक्त घर के बाहर एक मुख्य का दीपक दक्षिण दिशा की तरफ करके नीचे चावल रखकर तिल के तेल में इसे जलाना चाहिए दीया जलाते वक्त अपने पितरों का ध्यान करते हुए उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह बोलना चाहिए कि 15 दिनों तक आपकी हमने सेवा कि आपका आशीर्वाद सदैव हम सभी पर बना रहे पूरा घर परिवार सुख समृद्धि से परिपूर्ण रहे यह आशीष प्रदान करें और अपने पितृ लोक में वापस लौटिए. शाम के वक्त पितरों की विदाई के इस तरीके से पित्र संतुष्ट होते हैं और खुश होकर आशीर्वाद प्रदान कर पितृ लोक में वापस जाते हैं.

बाईट- पंडित पवन त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य व कर्मकांडी


गोपाल मिश्र

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