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चंदौली हिनौत विस्फोट कांड में 17 साल बाद आया कोर्ट का फैसला, जानें क्या रही न्यायिक प्रक्रिया..

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Published : Nov 17, 2021, 6:26 PM IST

चंदौली
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चंदौली (Chandauli) में नक्सल प्रभावित (naxal affected) नौगढ़ में हुए बहुचर्चित हिनौत कांड (hinaut scandal) में 17 साल बाद कोर्ट का फैसला आया. अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम जगदीश प्रसाद की अदालत ने सुनवाई के बाद फैसला (Decision) सुनाया. उन्होंने साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया और उनकी रिहाई का आदेश दिया.

चंदौली: जिले के नक्सल प्रभावित नौगढ़ में हुए बहुचर्चित हिनौत कांड में 17 साल बाद कोर्ट का फैसला आ गया है. इसमें सभी आरोपी दोषमुक्त साबित हुए हैं. 2004 में नक्सलियों की लैंड माइंस के चलते 15 जवान शहीद हुए थे.

इस संबंध में 50 से अधिक आरोपियों को पकड़ा गया था जिनमें से 17 आरोपियों को कोर्ट ने दोषमुक्त करार देते हुए बरी करने का फरमान जारी किया है. हालांकि इन निर्दोषों को न्याय मिलने में एक लंबा वक्त बीत गया. इससे न्यायपलिका की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

राकेश रतन तिवारी

दरअसल, 18 नवंबर 2004 को नक्सलियों ने मझगांई वन चौकी पर हमला कर दो वनकर्मियों और एक दारोगा को मौत के घाट उतार दिया था. यूपी में नक्सलियों की इस बड़ी घटना को कुचलने के लिए सरकार ने पीएसी के जवानों को भेजा.

20 नवंबर 2004 को जब पीएसी के जवानों को लेकर ट्रक हिनौत घाट गांव की पुलिया से गुजर रही था, तभी नक्सलियों ने लैंडमाइंस के सहारे विस्फोट कर उसे उड़ा दिया. इस हमले में 15 जवान शहिद हुए थे जबकि कई अन्य घायल हो गए.

इसे भी पढ़ेः हिनौत विस्फोट कांड: जेल में बंद 17 आरोपियों को चंदौली कोर्ट ने किया बरी

अधिवक्ता राकेश रतन तिवारी ने बताया कि नक्सली वारदात के बाद मामले में पुलिस ने 50 आरोपियों को पकड़ा था जिसमें अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम जगदीश प्रसाद की अदालत ने दायर सत्र परीक्षण वादों की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया. इस दौरान उन्होंने साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया और उनकी रिहाई का आदेश जारी किया.

मामले में कुल 45 अभियुक्तों पर ट्रायल हुआ जिसमें कुछ की जेल में ही मौत हो गई. वहीं, कुछ जमानत पर बाहर थे. सुनवाई के दौरान जेल में बंद 17 आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए कोर्ट ने रिहाई का आदेश दिया है.

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इस दौरान साक्ष्य व गवाहों के परीक्षण व अवलोकन के उपरांत कोर्ट ने यह पाया कि जो साक्ष्य व गवाह अभियोजन पक्ष की ओर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए हैं. पुलिस द्वारा उस नक्सली वारदात को अंजाम देने के मामले में आरोपी बनाए गए. लोगों को दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है. अभियोजन की ओर से कुल 19 गवाह प्रस्तुत किए गए जिनके परीक्षण के उपरांत कोर्ट ने आरोपियों को बेगुनाह पाते हुए सभी को दोषमुक्त करार दिया.

न्यायालय की ओर से अपराध अंतर्गत धारा-307, 396, 412 आईपीसी के अतिरिक्त 3/4 लोक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम के साथ-साथ धारा-3 व 5 विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के आरोप से मुक्त करार दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में जेल के अंदर निरुद्ध चल रहे 17 आरोपियों को तत्काल रिहा किए जाने के आदेश सुनाया. साथ ही जो लोग जमानत पर रिहा चल रहे थे. उनके बंध-पत्र को निरस्त करते हुए जमानतदारों को उन्मोचित करने का हुक्म फरमाया है.

अपर जिला जज प्रथम की कोर्ट ने अभियुक्त परमेश्वर कोल, अनूप कुमार, बहादुर, गुलाब, लालचंद, राम निहोर, मकसूदन, सुरेंद्र यादव, मुन्ना, छोटू, श्याम सुंदर, मूसा और अजीत उर्फ सलीम, विजयमल, राजेंद्र, रमई पाल, कलियर, मोहम्मद ईसा, भोला पाल, करीमन उर्फ बिहारी, मनोहर, राजू गौड़, नंदू, राधेश्याम, मुन्ना विश्वकर्मा, राम सजीवन कुशवाहा, सूरजमल, नंदलाल, राजकुमार, अशोक कुमार, मुन्नू पाल, बाबूलाल, हरिशंकर, लालब्रत, छोटेलाल, सनी उर्फ सुदामा, आनंदी सिंह सहित अन्य लोग शामिल हैं.

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