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राजधानी में छात्र की आत्महत्या के बाद उठा सवाल, आखिर क्यों नहीं टूट रही रैगिंग की बेहूदा परंपरा

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Published : Dec 24, 2022, 6:33 PM IST

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शैक्षणिक संस्थानों और हॉस्टलों में रैगिंग का चलन काफी पुराना है. कभी आपसी मेल मिलाप बढ़ाने की धारणा से शुरू की गई रैगिंग अब बेहूदा और जानलेवा हो गई है. रैगिंग के काऱण कई छात्र-छात्राओं की जान जा चुकी है और कई ने परेशान होकर अपनी पढ़ाई छोड़ दी. बीते दिनों में हुई रैगिंग की घटनाओं ने एक बार फिर अभिभावकों के मन को झकझोर दिया है.

लखनऊ : राजधानी में एक छात्र ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके सीनियर्स उसे परेशान करते थे. नोएडा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र के सीनियर्स ने उसकी कंधे की हड्डियां इसलिए तोड़ दीं, क्योकि उसने रैगिंग का विरोध किया था. ये दोनों घटनाएं महज बानगी भर हैं. यूपी समेत पूरे देश के कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में हर रोज कोई न कोई जूनियर छात्र अपने सीनियर्स से प्रताड़ित हो रहा है. यह तब हो रहा है जब रैगिंग के खिलाफ यूजीसी व कानून सख्ती कर रखी है.

राजधानी के इंदिरानगर के रहने वाले जयदीप ने बीते मंगलवार को आत्महत्या कर ली. वह जवाहरलाल नेहरू युवा कौशल केंद्र (Jawaharlal Nehru Youth Skill Center) का छात्र था. जयदीप ने मौत को गले लगाने से पहले तीन पन्नों का सुसाइड नोट लिखा था. सुसाइड नोट में जयदीन ने लिखा था कि उसके सीनियर्स उसे रोजाना परेशान करते थे. उसे चिढ़ाते थे, उल्टे सीधे काम करवाते और विरोध करने पर पिटाई करते थे. इसी तरह नोएडा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल में बीटेक के लास्ट ईयर के चार छात्रों ने फर्स्ट ईयर के छात्र के साथ रैगिंग करने की कोशिश की. जूनियर छात्र ने विरोध किया तो सीनियर्स ने पिटाई कर दी. इससे छात्र के कंधे और हाथ की कई हड्डियां टूट गईं. घटना के बाद से चारों छात्र फरार हैं. बीते बुधवार को झांसी के बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (Bundelkhand University of Jhansi) में बीटेक कंप्यूटर साइंस के प्रथम वर्ष के छात्रों से रैगिंग को लेकर बवाल हो गया था. सीनियर और जूनियर छात्रों के गुटों में पहले बीयू कैंपस में टकराव हुआ और फिर यह लोग विश्वविद्यालय के बाहर आ गए. यहां दोनों गुटों ने एक-दूसरे पर हॉकी, डंडों से हमला कर दिया. घटना में एक दर्जन जूनियर्स छात्र गंभीर रूप से घायल हुए.

ये तीनों घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि 90 के दशक से शुरू हुई रैगिंग बदस्तूर आज भी जारी है. जिन पर न ही कानून का डर काम आ रहा और न ही यूजीसी के नियम लगाम लगाने में कारगर हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission) ने रैगिंग के खिलाफ कड़े नियम बनाए हैं. इसके बावजूद काॅलेजों, संस्थानों में होने वाली ऐसी घटनाएं बिचलित करने वाली हैं. ऐसे में दूर दराज के काॅलेजों और संस्थानों में पढ़ाई के लिए भेजने वाले अभिभावक अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित रहते हैं. छात्राओं के साथ ऐसी घटनाएं सामने आने के बाद अभिभावकों का मन हमेशा बिचलित रहता है.

रैगिंग रोकने के लिए यूजीसी द्वारा बनाए गए नियम : अगर किसी शैक्षणिक संस्थान या हॉस्टल में किसी छात्र- छात्रा पर उसके पहनावे, रंग रूप या फिर मानसिक स्थिति के आधार पर सीनियर्स टिप्पणी करते हैं व उसकी क्षेत्रीयता, भाषा या जाति के आधार पर अपमानजनक नाम लेकर पुकारते और प्रचलित करते हैं तो इसे रैगिंग माना जाएगा. स्टूडेंट की नस्ल या पारिवारिक अतीत या आर्थिक पृष्ठभूमि को लेकर उसे लज्जित करना और अपमान करना रैगिंग माना जाएगा. संस्थान में जूनियर्स छात्राओं को अजीबोगरीब नियमों के तहत परेशान करना या अपमानजनक टास्क देना भी रैगिंग माना जाएगा. यूजीसी स्पष्ट कर चुका है कि अगर कॉलेज या संस्थान रैगिंग की शिकायत करने वाले छात्रों की मदद नहीं करेगा तो पीड़ित निसंकोच यूजीसी से मदद ले सकते हैं. दोषियों पर रैगिंग रेग्यूलेशन एक्ट (ragging regulation act) के तहत कार्रवाई की जाएगी. रैगिंग के खिलाफ सबसे कड़ी सजा दोषी को तीन साल तक सश्रम कैद है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिंस लेनिन (Prince Lenin, Senior Advocate, Allahabad High Court) बताते हैं कि भारत में रैगिंग के खिलाफ कानून बनाने में अमन काचरू के केस का अहम योगदान रहा. वर्ष 2009 में धर्मशाला के राजेन्द्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज में रैगिंग और प्रताड़ना के शिकार हुए छात्र की मौत के बाद उच्चतम न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए रैगिंग के खिलाफ कानून बनाने के लिए उपसमिति गठित की थी. समिति द्वारा दायर की गई रिपोर्ट में रैगिंग को शिक्षा व्यवस्था में सबसे बड़ा घाव बताते हुए इसके खिलाफ कड़े नियम बनाने के निर्देश जारी किए गए. यदि कोई सीनियर रैगिंग करता है तो उस पर कई तरह की धाराएं लग सकती हैं. हालांकि रैगिंग किस रूप में की गई है यह उस पर आधारित होता है. जैसे अश्लील हरकतें और गाने के लिए, स्वेच्छापूर्वक चोट पहुंचाने के लिए, स्वेच्छापूर्वक खतरनाक हथियार या साधनों से चोट पहुंचाने की सजा, स्वेच्छापूर्वक गंभीर आघात पहुंचाने की सजा, खतरनाक हथियार द्वारा स्वेच्छापूर्वक से चोट पहुंचाने की सजा, अनुचित क्रूरता, अनुचित कैद, अनुचित क्रूरता के लिए सजा, अनुचित कैद के लिए सजा, दोषपूर्ण हत्या के लिए सजा शामिल है.


क्या है यूजीसी की गाइडलाइंस : लखनऊ यूनिवर्सिटी के चीफ प्रॉक्टर राकेश द्विवेदी (Lucknow University Chief Proctor Rakesh Dwivedi) बताते हैं कि रैगिंग के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं. जिसका पालन सभी कॉलेज, विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थानों के लिए अनिवार्य है. लखनऊ यूनिवर्सिटी व इससे संबद्ध सभी कॉलेज इन दिशा निर्देशों को सख्ती से पालन करवाती है. उनके अनुसार कॉलेज व होस्टल में एंटी रैगिंग कमेटी, एंटी रैगिंग स्क्वॉड व रैगिंग मॉनिटरिंग सेल का गठन किया गया है. नए छात्र-छात्राओं को रैगिंग से जुड़े नियमों की जानकारी दी जाती है. छात्र-छात्राओं से रैगिंग को लेकर शपथ पत्र जमा करवाया जाता है. रैगिंग के नियमों का व्यापक तौर पर प्रचार प्रसार किया जाता है. सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के साथ आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर भी मुहैया कराए जाते हैं. यूपी के एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार (ADG law and order Prashant Kumar) के मुताबिक शैक्षिणक संस्थानो में रैंगिग व बुलिंग पूरी तरह प्रतिबंधित है. किसी भी संस्थान में रैंगिग बर्दाश्त नहीं होगी और यदि होती भी है तो दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

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