मदरसों के सर्वे से अल्पसंख्यकों में असंतोषजनक की स्थिति पैदा होगी: मौलाना कल्बे जवाद

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Published : Sep 7, 2022, 6:53 AM IST

मौलाना कल्बे जवाद

शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद (maulana kalbe jawad) ने सरकार के गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराने के निर्णय पर असंतोष व्यक्त किया है. कल्बे जवाद के संगठन ने कहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान चलाने और उनका प्रबंधन करने की पूरी आजादी है.

लखनऊ: शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद (maulana kalbe jawad) के संगठन मजलिसे उलेमा ए हिंद ने गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सरकारी सर्वे करने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय पर असंतोष व्यक्त किया है. मंगलवार को संगठन की ओर से जारी किए हुए बयान में सरकार से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग की गई. मजलिस उलेमा ए हिंद ने कहा कि अनुच्छेद 30(1) के अनुसार भारत में अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान चलाने और उनका प्रबंधन करने की पूरी आजादी हासिल है.

संगठन के महासचिव और इमाम ए जुमा मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने मंगलवार को अपने लिखित बयान में कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां विभिन्न धर्म और पंत के लोग रहते हैं. हर धर्म और पंत के लोगों को अपनी धार्मिक शिक्षा के लिए आजादी हासिल है. आजाद हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के सर्वे की कभी मांग नहीं की गई. इसलिए हम सरकार से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सरकारी सर्वे कराने के आदेश पर पुनर्विचार की मांग करते हैं. उलेमा ने कहा है कि मदरसों का अपना निजाम मौजूद है जिस पर संदेह करना अल्पसंख्यक समूहों को संदेह की दृष्टि से देखने जैसा है. सरकार के पास मान्यता प्राप्त मदरसों के संबंध में फरमान जारी करने का अधिकार सुरक्षित है, लेकिन गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराने का आदेश अल्पसंख्यकों के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसकी समीक्षा की जानी चाहिए.

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मजलिसे उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नकवी ने अपने बयान में कहा कि सरकार के इस फैसले से अल्पसंख्यकों में सरकार के प्रति असंतोष पैदा होगा. अगर गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराना है तो केवल अल्पसंख्यक मदरसों के सर्वे की बात न की जाए. हिंदुस्तान में मौजूद सभी धर्मों और समुदायों के शिक्षण संस्थानों का सर्वे कराया जाए, ताकि असमानता का मसला पैदा न हो. इससे अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थानों की वर्तमान स्थिति का भी पता चलेगा और यह भी स्पष्ट होगा कि मुसलमानों के मदरसे अन्य वर्गों के शिक्षण संस्थानों की तुलना में कितने पिछड़े हुए हैं.

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