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विकृत मानसिकता के लोग ही करते हैं हैवानियत

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Published : Oct 22, 2022, 6:56 PM IST

Updated : Oct 22, 2022, 11:15 PM IST

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प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विगत दिनों एक के बाद एक बलात्कार की कई घटनाएं (many incidents of rape) हुईं. जिसके बाद सोशल मीडिया पर कई लोगों ने लखनऊ को 'रेप कैपिटल' कहना शुरू कर दिया. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

लखनऊ : प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विगत दिनों एक के बाद एक बलात्कार की कई घटनाएं (many incidents of rape) हुईं. स्वाभाविक है कि पुलिस और प्रशासन को इससे असहज होना पड़ा. यह बात और है कि उपरोक्त सभी घटनाओं में पुलिस ने तत्परता से कार्रवाई की और आरोपियों को सलाखों के पीछे भेजा. इस सबके बावजूद सोशल मीडिया पर कई लोगों ने लखनऊ को 'रेप कैपिटल' कहना आरंभ कर दिया. निश्चितरूप से इस तरह की घटनाओं से सभ्य समाज असहज होता है, लेकिन एक, दो या तीन घटनाओं को लेकर शहर को 'रेप कैपिटल' कहना ज्यादती है.



राजधानी की अनुमानित आबादी लगभग 56 लाख मानी जाती है. इतनी बड़ी आबादी में कुछ अराजकतत्व तो हो ही सकते हैं. यदि सभी लोग सभ्य शहरी बन जाएं, तो रामराज्य न आ जाएगा! यह सही है कि पुलिस प्रशासन को अराजकतत्वों पर नजर रखने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए. बावजूद इसके घटनाएं पूरी तरह से रुक जाएंगी इस बात का दावा नहीं किया जा सकता है. यह भी सही है कि पिछले छह साल में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति देश में नजीर बनकर उभरी है. कई राज्य उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और सरकार के अपराधियों के प्रति नजरिये को रोल मॉडल की तरह देखते हैं. योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अपराधियों के साथ बेहद सख्त रुख रखा है, बावजूद इसके यदि घटनाएं हो रही हैं, तो इसे विकृत मानसिकता वाले लोगों का कृत्य ही माना जाना चाहिए.




एक बात और....! माता-पिता को अपने बच्चों पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए. लड़कों और लड़कियों को अलग-अलग दृष्टि से देखना अक्सर उन्हें बिगाड़ देता है. आप खुद सोचिए कि यदि आपका पुत्र गलत आदतों का वशोभूत होकर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होता है, तो क्या आप सुकून से जी सकेंगे? शायद नहीं. इसलिए लड़कों को भी लड़कियों के जितना ही अनुशासन सिखाए जाने की जरूरत है, बल्कि उससे ज्यादा. पढ़ाई-लिखाई या अन्य कार्यों से बाहर निकलने वाली बेटियों और महिलाओं को भी आत्मरक्षा के प्रति थोड़ा सजग रहना चाहिए. उन्हें अपनी सुरक्षा के उपाय के प्रति जागरूक करना भी हमारा दायित्व है. दिल्ली में बहुचर्चित निर्भया कांड के आरोपियों को फांसी की सजा हो जाने के बावजूद ऐसी घटनाओं का ना रुकना वाकई चिंता का विषय है.


इस संबंध में मनोचिकित्साक डॉ. पीके खत्री कहते हैं कि यह एक तरीके की साइकिक सिचुवेशन है. जिसे कहा जा सकता है कि किसी व्यक्ति की मनोविक्षिप्तता की स्थिति है. यह एक बीमारी का रूप है. यह बीमारी लोगों को समझ में नहीं आती है. जैसे कोई व्यक्ति यदि सड़क पर घूम रहा है और कुछ बुदबुदा रहा है, तो लोग उसे पागल की संज्ञा दे देते हैं. हालांकि इस तरह की घटनाओं के बाद उसको मानसिक बीमार समझकर ट्रीट ही नहीं करते हैं. उसे एक अपराधी मान लेते हैं. इस तरह का कृत्य हो भी व्यक्ति कर रहा है, वह बीमारी की स्थिति में है. इसलिए ऐसे लोगों का एक अलग सेल बनाकर उनका मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराया जाना चाहिए. उनकी काउंसिलिंग कराई जाए, तभी यह चीजें अच्छी तरह काबू की जा सकती हैं. यह कृत्य सामान्य नहीं है.

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मनोचिकित्सक डॉ. पीके खत्री कहते हैं कि इसके लिए यदि बच्चा बहुत उत्साह में रह रहा है, तो भी माता-पिता को इस पर ध्यान देना चाहिए. इसे उत्साह विषाद कहते हैं. यह एक उत्साहित अवस्था होती है. कोई उत्साह में बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल करना चाहता है, तो कोई सेक्सुअल एक्टीविटीज की ओर बढ़ना चाहता है. बच्चों पर नजर रखनी चाहिए कि वह मोबाइल में क्या देखते हैं. यदि इन सब चीजों पर माता-पिता कंट्रोल करें, तो यह सब चिह्नित हो सकता है. अपराध की दृष्टि से पुलिस इन्हें ले जाती है. जेल में ऐसे कैदियों को मनोचिकित्सक का परामर्श भी जरूर मिलना चाहिए.

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Last Updated :Oct 22, 2022, 11:15 PM IST
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