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यूपी में बुलडोजर कार्रवाई पर उठे सवालः न कोई अपील न कोई दलील, फैसला ऑन द स्पॉट

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Published : Jun 14, 2022, 8:56 PM IST

उत्तर प्रदेश में दंगाइयों के घरों पर बुलडोजर वाले एक्शन को लेकर कानूनी जानकार से लेकर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं. हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और अधिवक्ता का कहना है कि प्रदेश संविधान से चलेगा या फिर फिर सरकार की मनमर्जी से.

यूपी में बुलडोजर कार्रवाई
यूपी में बुलडोजर कार्रवाई

लखनऊः कानपुर फिर 9 शहरों में हुई हिंसा के बाद बुलडोजर कार्रवाई ने सूबे में हलचल मचा दी है. प्रयागराज हिंसा के मास्टरमाइंड जावेद मोहम्मद ने बुलडोजर कार्रवाई को को लेकर सवाल उठाए हैं. जावेद मोहम्मद के वकील ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. यही नहीं जेएनयू में बुलडोजर राज के खिलाफ प्रदर्शन हुआ. ऐसे में अब सियासी दल के नेताओं से लेकर कानूनी जानकार तक बुलडोजर राज पर सवाल उठा रहे हैं.

प्रयागराज में जिस घर पर जावेद पंप का बताकर बुलडोजर चला व जावेद की पत्नी को उनके पिता ने दिया था. यही नहीं मकान भी जावेद की पत्नी का था. ऐसे में जावेद के नाम की नोटिस देकर बिना वक्त दिए उनकी पत्नी के मकान पर बुलडोजर क्यों चला? ये सवाल किसी नेता या एक्टिविस्ट ने उठाये होते तो बात अलग थी. सवाल करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविंद माथुर हैं. पूर्व जस्टिस का कहना है कि 'जावेद के मकान पर बुलडोजर चलाकर जमीदोंज करना पूरी तरह गैर-कानूनी है. उन्होंने कहा कि यदि मान भी लिया जाए कि घर को गैरकानूनी तरीके से बनाया गया था, जैसा कि करोड़ों भारतीय इसी तरह रहते हैं. फिर भी यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार उस घर को तोड़ दे, जबकि आरोपी हिरासत में है. प्रशासन को इतना तो वक्त देना चाहिए था कि वो कोर्ट जा सके.'

हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिंस लेनिन.
पहले फांसी फिर ट्रायल नहीं चलेगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील राकेश मिश्रा का कहना है कि 'यह समझना होगा कि हम लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं. हमें ये पता है कि हम संविधान से चलते हैं. यही वजह है कि बिना ट्रायल के बुलडोजर राज नहीं चल सकता है. अब ऐसा थोड़ी न होगा कि पहले फांसी दे दो ट्रायल चलता रहेगा.'

अदालत तय करेगी कौन सही और कौन गलत:
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रिंस लेनिन का कहना है कि 'यूपी रेगुलेशन ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशन एक्ट 1958 के तहत कोई भी गैरकानूनी तरीके या बिना परमिशन के अवैध निर्माण किया जाता है तो उसका ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है. इसमें उस आदेश को अमल में लाने के लिए जिसके खिलाफ आदेश पारित किया था उसको 20 दिन का मौका दिया जाता है कि वह खुद बिल्डिंग को ध्वस्त करा ले या फिर प्राधिकरण ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करेगा. प्रिंस लेनिन कहते है कि 'हाल ही में प्रयागराज व कानपुर में जिस तरह से मामले सामने आए हैं, उसमें प्राधिकरण द्वारा कहना है कि इन मामलों में पूर्व में ही कार्रवाई हो रखी थी. लेकिन इसको अब अमल में अब लाया गया है. इसमें विपक्ष कह रहा है कि एकतरफा कार्रवाई हुई है. ऐसे में कोर्ट में वाद दाखिल है. इसमें दोनों पक्ष अपना-अपना पक्ष कहेंगे. इसमें यह देखने वाली बात है कि अगर कानून के तहत कार्रवाई की गई है तो प्राधिकरण के लोग दोषी नहीं पाए जाएंगे. लेकिन अगर यह बिना किसी नोटिस के या फिर बिना प्रक्रिया की एकतरफा कार्रवाई की गई है तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट कार्रवाई कर सकता है.

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नियम से ही चलता है बुलडोजर: वहीं, एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार का कहना है कि किसी भी निर्माण पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करने के लिए विधिक प्रक्रिया अपनाई जाती है. हम ऐसे ही कोई इमारत नही ध्वस्त करते हैं. उन्होंने कहा कि पुलिस नियमों के मुताबिक ही कार्रवाई करती है. प्रशांत कुमार ने बताया कि बुलडोजर दो स्थिति में किसी इमारत में चलाया जाता है. पहले तब जब किसी सरकारी जमीन को मुक्त कराना होता है. जिसके लिए स्थानीय पुलिस सहयोग देती है और तहसील प्रशासन की बाकायदा रिपोर्ट तैयार होती है. वहीं दूसरी वह स्थिति होती है जब अपराधी लगातार फरार चल रहा हो. वारंट के बावजूद सरेंडर नहीं कर रहा हो, उस स्थिति में प्रशासन अपराधी की अपराध जगत से बनाई गई सम्पति पर कुर्की का आदेश लेने के बाद बुलडोजर चलाता है. ये जरूरी होता है कि जिस सम्पति पर बुलडोजर चल रहा हो, वो अपराध की कमाई से बनाई गई हो.

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