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मायावती ने अपने भाई को ही क्यों बनाया पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, कहीं यह वजह तो नहीं!

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Published : Jun 23, 2019, 11:45 PM IST

मायावती ने अपने ही भाई को सौंपी अहम जिम्मेदारी

कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी को एक मिशन के तहत स्थापित किया था. उन्होंने ख्याल रखा कि मिशन के लिये समर्पित लोगों को ही पार्टी में आगे बढ़ने का मौका मिले. लेकिन अब लगता है कि वक्त बदल चुका है. बीएसपी में भी परिवारवाद नजर आने लगा है. लेकिन मायावती के इस कदम से कुछ सवाल भी खड़े होते हैं.

लखनऊ: राजधानी में बीएसपी की हुई अहम बैठक में पार्टी प्रमुख मायावती ने बड़ा फैसला लिया. मायावती ने अपने सगे भाई आनंद कुमार को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने का ऐलान किया है. भाई आनंद के बेटे आकाश को पार्टी का नेशनल को ऑर्डिनेटर बनाया गया है. अब बहुजन समाज पार्टी के तीनों अहम पदों पर मायावती का परिवार काबिज हो चुका है.

मायावती ने अपने ही भाई को क्यों सौंपी अहम जिम्मेदारी?

कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी को एक मिशन के तहत स्थापित किया था. उन्होंने ख्याल रखा कि मिशन के लिये समर्पित लोगों को ही पार्टी में आगे बढ़ने का मौका मिले. लेकिन अब लगता है कि वक्त बदल चुका है. बीएसपी में भी परिवारवाद नजर आने लगा है. लेकिन मायावती के इस कदम से कुछ सवाल भी खड़े होते हैं.

बीएसपी में परिवारवाद?

  • अपनी पार्टी में ही क्या मायावती की पकड़ कमजोर हो रही थी?
  • क्या बीएसपी में अब मायावती का भरोसेमंद कोई नहीं रह गया था?
  • विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद मायावती खुद को कमजोर महसूस कर रही थीं?
  • बीएसपी का उत्तराधिकारी अपने ही परिवार से चाहती थीं?


दरअसल एक जमाने में मायावती के बेहद करीबी माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, ब्रजेश पाठक और नंद गोपाल नंदी बीएसपी का साथ छोड़ चुके हैं. वहीं मायावती 63 साल की उम्र पार कर चुकी हैं. ऐसे में पार्टी के उत्तराधिकारी को लेकर यह एक संकेत हो सकता है. क्योंकि मायावती यह पहले ही साफ कर चुकी हैं कि बीएसपी में उनका उत्तराधिकारी कोई दलित या मुस्लिम ही हो सकता है. साफ है कि ऐसे में सतीश मिश्रा का नाम भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. तो फिर पार्टी में अपने भाई और भतीजे को अहम जिम्मेदारी देकर उन्होंने भविष्य के ही संकेत दिये हैं. इन सबके बीच परिवारवाद को लेकर मायावती पर निशाना भी साधा जाने लगा है. यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने मायावती पर इस बहाने हमला भी बोला है.

मायावती ने बैठक में आये पार्टी कार्यकर्ताओं को साफ निर्देश दिया है कि सर्वजन की पार्टी के तौर पर वह काम करें. साथ ही सभी जाति, वर्ग और समाज को जोड़कर चलें. अब यह देखने वाली बात होगी कि मायावती का यह फैसला राजनीति की बिसात पर कितना असर दिखाता है.

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लखनऊ में बीएसपी की हुई अहम बैठक में पार्टी प्रमुख मायावती ने बड़ा फैसला लिया. मायावती ने अपने सगे भाई आनंद कुमार को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने का ऐलान किया है. भाई आनंद के बेटे आकाश को पार्टी का नेशनल को ऑर्डिनेटर बनाया गया है.  अब बहुजन समाज पार्टी के तीनों अहम पदों पर मायावती का परिवार काबिज हो चुका है.



कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी को एक मिशन के तहत स्थापित किया था. उन्होंने ख्याल रखा कि मिशन के लिये समर्पित लोगों को ही पार्टी में आगे बढ़ने का मौका मिले. लेकिन अब लगता है कि वक्त बदल चुका है. बीएसपी में भी परिवारवाद नजर आने लगा है. लेकिन मायावती के इस कदम से कुछ सवाल भी खड़े होते हैं.



बीएसपी में परिवारवाद?

अपनी पार्टी में ही क्या मायावती की पकड़ कमजोर हो रही थी?

क्या बीएसपी में अब मायावती का भरोसेमंद कोई नहीं रह गया था?

विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद मायावती खुद को कमजोर महसूस कर रही थीं?

बीएसपी का उत्तराधिकारी अपने ही परिवार से चाहती थीं?

दरअसल एक जमाने में मायावती के बेहद करीबी माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, ब्रजेश पाठक और नंद गोपाल नंदी बीएसपी का साथ छोड़ चुके हैं. वहीं मायावती 63 साल की उम्र पार कर चुकी हैं. ऐसे में पार्टी के उत्तराधिकारी को लेकर यह एक संकेत हो सकता है. क्योंकि मायावती यह पहले ही साफ कर चुकी हैं कि बीएसपी में उनका उत्तराधिकारी कोई दलित या मुस्लिम ही हो सकता है. साफ है कि ऐसे में सतीश मिश्रा का नाम भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. तो फिर पार्टी में अपने भाई और भतीजे को अहम जिम्मेदारी देकर उन्होंने भविष्य के ही संकेत दिये हैं. इन सबके बीच परिवारवाद को लेकर मायावती पर निशाना भी साधा जाने लगा है. यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने मायावती पर इस बहाने हमला भी बोला है.

मायावती ने बैठक में आये पार्टी कार्यकर्ताओं को साफ निर्देश दिया है कि सर्वजन की पार्टी के तौर पर वह काम करें. साथ ही सभी जाति, वर्ग और समाज को जोड़कर चलें. अब यह देखने वाली बात होगी कि मायावती का यह फैसला राजनीति की बिसात पर कितना असर दिखाता है.




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