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खुद को मिलने वाले अधिकारों की महिलाओं को नहीं है जानकारी, जागरूकता बढ़ाने की जरूरत

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Published : Nov 25, 2019, 3:17 PM IST

ईटीवी भारत ने रेनू मिश्रा से बातचीत की.

25 नवंबर को यूनाइटेड नेशन्‍स द्वारा इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वूमेन दिवस मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए खास माना जाता है. इस बारे में आली की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा ने ईटीवी भारत से बातचीत की.

लखनऊ: हर साल 25 नवंबर को यूनाइटेड नेशन्‍स द्वारा एक दिवस मनाया जाता है. यह दिवस इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वूमेन के नाम से मनाया जाता है. इस दिन की महत्ता महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए चलाए जाने वाले अभियान के लिए खास मानी जाती है. इस बारे में एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स (आली) की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा ने ईटीवी भारत से बातचीत की.

ईटीवी भारत ने रेनू मिश्रा से बातचीत की.

ईटीवी भारत ने कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा से की बातचीत
आली की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा ने बताया कि आजादी के 70 वर्ष पूरे हो चुके हैं. संविधान हम महिलाओं को बराबरी और आजादी का हक देता है. हमारे लिए कई ऐसे नियम और कानून बनाए जा चुके हैं जो महिलाओं की सुरक्षा और हमारे खिलाफ होने वाले अन्याय के लिए बने हैं. इसके बावजूद यह सारे नियम धरातल पर नहीं हैं. महिलाएं इस बारे में जानती भी नहीं हैं. घरों में महिलाओं के साथ हिंसा होती है पर हम कुछ नहीं कर सकते. घर के बाहर भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.

महिलाओं के साथ लगातार हिंसा, अपहरण, दुष्कर्म जैसी घटनाएं हो रही हैं. यदि इन घटनाओं के खिलाफ एफआईआर लिखवाने जाएं, तो वह भी नहीं लिखी जाती. इसी के साथ अगर कोर्ट के अंदर के आंकड़ों की बात करें तो हमारा कनविक्शन रेट सिर्फ 18% है. तमाम नियम कानून के बावजूद भी अभी महिलाएं काफी पीछे हैं.

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रेडियो-टीवी के माध्यम से महिलाओं से संबंधित कानून का करें प्रसारण
रेनू कहती हैं कि सरकार को चाहिए कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गांव-गांव और घरों-घरों तक रेडियो और टीवी के माध्यम से महिलाओं के लिए बने तमाम नियम कानूनों का प्रसारण किया जाए. ताकि महिलाएं जागरूक हो सकें. देश का विकास बगैर महिलाओं के नहीं हो पाएगा. अगर महिलाएं नहीं होंगी तो देश का विकास वहीं रुक जाएगा. इसलिए जरूरी है कि वह सभी मौलिक अधिकार महिलाओं को भी मिले जो एक आम व्यक्ति को मिलते हैं.

Intro:नोट- शैलेंद्र सर के ध्यानार्थ।

स्पेशल- महिलाओं को मिले हैं हक, उनको ही खबर नहीं, बढ़नी चाहिए जागरूकता

लखनऊ। हर साल 25 नवंबर को यूनाइटेड नेशंस द्वारा एक दिवस मनाया जाता है यह दिवस इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन आफ वायलेंस अगेंस्ट विमेन के नाम से कहा जाता है इस दिन की महत्ता महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए चलाए जाने वाले अभियान के लिए खास मानी जाती है। इस बारे में एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव्स की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा ने भी अपनी बात रखी।


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आली की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा कहती हैं 21वीं सदी में जी रहे हैं। आजादी के 70 वर्ष पूरे हो चुके हैं संविधान में हमें बराबरी और आजादी का हक देता है हमारे लिए कई ऐसे नियम और कानून बनाए जा चुके हैं जो महिलाओं की सुरक्षा और हमारे खिलाफ होने वाले अन्याय के लिए बने हैं लेकिन इन सबके बावजूद यह सब धरती पर नहीं है क्योंकि महिलाएं इस बारे में जानते ही नहीं है। हमारे घरों में हमारे साथ हिंसा होती है पर हम कुछ नहीं कर सकते अगर एक लड़की कुछ पढ़ना चाहती है तो उसे मौका नहीं मिलता घर से बाहर निकलना चाहती है तो वह सुरक्षित नहीं रहती। एक समय के बाद एक महिला शादी नहीं करना चाहती तो घर और समाज वाले उस पर दबाव बनाते हैं और उसे बताते हैं कि उसे क्या करना चाहिए। हम घर के बाहर निकल आते हैं तो यहां भी हम सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं के साथ लगातार हिंसा, अपहरण, रेप जैसी घटनाएं होती हैं और यदि इन घटनाओं के खिलाफ हम एफआईआर लिखवाने जाए तो वह नहीं लिखी जाती। इसी के साथ अगर हम कोर्ट के अंदर के आंकड़ों की बात करें तो हमारा कनविक्शन रेट सिर्फ 18% है। यह हमें इस बात की याद दिलाती है कि तमाम नियम कायदे कानून के बावजूद हम अभी भी काफी पीछे हैं। इसके कई कारण सामने आ सकते हैं सबसे जरूरी कारण यह है कि सरकार की इच्छाशक्ति कम है हम 50% की आबादी हैं और हमें पूरा हक चाहिए क्योंकि यह हमारा अधिकार है सरकार ने कानून तो बनाए हैं लेकिन उसे लागू करने के सही कायदे अभी नहीं आए हैं।

रेनू कहती है कि सरकार को चाहिए कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के द्वारा गांव-गांव और घरों घरों तक रेडियो और टीवी के माध्यम से महिलाओं के लिए बने तमाम नियम कायदे कानूनों का प्रसारण किया जाए ताकि महिलाएं भी जागरूक हो सकें और जानें कि 1090, 181, 112 नंबर जैसी तमाम व्यवस्थाएं सरकार ने की है जो हमारी सहायता के लिए है। एक महिला को कम से कम यह तो पता ही होना चाहिए कि वह एफ आई आर करवा सकती है और अपने खिलाफ होने वाली हिंसा के प्रति आवाज उठा सकती है। यदि वह चाहे के बावजूद एक काबिल वकील भी ढूंढ सकती है।


Conclusion:रेनू कहती है कि देश का विकास बगैर महिलाओं के विकास के नहीं हो पाएगा। अगर महिलाएं ही नहीं होंगी तो देश का विकास भी वहीं रुका रहेगा। असल में जब महिलाओं की आजादी सुरक्षा और हिंसा के प्रति असल मायने लोगों को समझ में आने लगेंगे तभी देश का विकास भी अपनी पटरी पर तेजी से बढ़ेगा। इसलिए जरूरी है कि वह सभी मौलिक अधिकार हम महिलाओं को भी मिले जो एक आम व्यक्ति को मिलते हैं और जिसके बल पर वह जिंदगी बिताता है।

बाइट- रेनू मिश्रा, कार्यकारी निदेशक, आली

रामांशी मिश्रा
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