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यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं 'सरकार', जानिए क्या हैं प्रदेश में राजनीति की नर्सरी के हाल

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Published : Nov 9, 2021, 9:36 AM IST

यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं सरकार
यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं सरकार

1975 का वो दौर. देश कभी नहीं भूल सकता. आपातकाल लागू हो चुका था. बड़े-बड़े नेता जेलों में थे. तब छात्रों ने सरकारी विरोध आंदोलन की कमान संभाली थी. मुलायम सिंह, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी सरीखे कई बड़े नाम इसी छात्र राजनीति से निकले. खैर, वर्तमान में उत्तर प्रदेश में राजनीति की इस नर्सरी पर रोक लगी है. यानी यहां के ज्यादातर राज्य विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगा दी गई है.

लखनऊः 1975 का वो दौर. देश कभी नहीं भूल सकता. आपातकाल लागू हो चुका था. बड़े बड़े नेता जेलों में थे. तब छात्रों ने सरकारी विरोध आंदोलन की कमान संभाली. मूलायम सिंह, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी जैसी कई बड़े नाम इसी छात्र राजनीति से निकले. खैर, वर्तमान में उत्तर प्रदेश में राजनीति की इस नर्सरी पर रोक लगी है. यानी यहां के ज्यादातर राज्य विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगा दी गई है.

वहीं, ETV Bharat की पड़ताल में सामने आया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर शासन और सत्ता में बैठे लोग ही छात्रसंघ बहाली का विरोध कर रहे हैं. चर्चा तो यह भी हैं कि राजनेता खुद नहीं चाहते कि नई पीढ़ी उनको टक्कर देने के लिए तैयार हो. जानकारों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणासी के सम्पूर्णानंद विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में बीते फरवरी और अप्रैल में चुनाव कराए गए थे. यहां एबीवीपी को एक भी सीट नहीं मिली थी.

यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं 'सरकार'
यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं 'सरकार'

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बता दें कि 2012 में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद ही अखिलेश यादव ने छात्रसंघ बहाली के आदेश जारी किए थे, लेकिन राज्य विश्वविद्यालय से लेकर सत्ता में बैठे हुक्मरानों की बेरुखी के चलते यह प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाए. नतीजा, कहीं कोर्ट केस की आड़ लेकर तो कहीं कोई और कारण बताकर छात्रसंत्र चुनाव नहीं कराए गए.

एलयूः भूलने लगे छात्र, क्या होता है छात्रसंघ

लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव को करीब डेढ़ दशक गुजर चुका है. आखिरी छात्रसंघ चुनाव 2005 में हुआ था. 2012 में दोबारा चुनाव की प्रक्रिया शुरू की गई. तब एक छात्र हेमंत सिंह के कोर्ट जाने के चलते प्रक्रिया फंस गई. छात्र हेमंत सिंह ने याचिका दायर कर चुनाव लड़ने की अनुमति मांगी थी. इसी प्रकरण में कोर्ट ने 2012 में अंतरिम आदेश जारी करते हुए 15 अक्तूबर 2012 से होने वाले चुनावों पर रोक लगा दी थी. यह रोक लगी रही.

यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं सरकार
यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं सरकार

इसी को आधार बनाकर विश्वविद्यालय प्रशासन चुनाव से बचता रहा. दिसम्बर 2019 में इस याचिका को वापस लेने के बाद यह रोक स्वतः ही समाप्त हो गई लेकिन, अभी तक विश्वविद्यालय ने छात्रसंघ बहाली पर विचार नहीं किया है. छात्रों का आरोप है कि अगर छात्रसंघ लागू हुआ तो विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी खत्म हो जाएगी. इसलिए वह बच रहे हैं.

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इविविः छात्रसंघ भंग कर बना रहे छात्र परिषद

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीते दो वर्षों से छात्र लगातार छात्रसंघ बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यहां 2005 से 2012 तक छात्र संघ चुनाव पर रोक लगी रही. इसके बाद 2012 से 2018 तक छात्र संघ चुनाव लगातार हुए. 2019 में छात्र संघ को भंग कर छात्र परिषद बनाया गया ,लेकिन परिषद के गठन के लिए उम्मीदवार नहीं मिले लिहाजा छात्र परिषद शून्य हो गया.

आगरा विविः 2017-18 में हुए थे आखिरी चुनाव

डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में समाजवादी पार्टी की सरकार में चुनाव कराए गए. भाजपा सरकार के आने के बाद पिछली बार सत्र 2017-18 में चुनाव हुए थे. इसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अभिषेक मिश्रा अध्यक्ष और चंद्रजीत यादव महामंत्री चुने गए थे. इसके बाद सत्र 2018-19, 2019-20 और सत्र 2020-21 में चुनाव नहीं कराया गया.

यूपी में छात्रसंघ से क्यों घबराते हैं 'सरकार'
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रुहेलखंड विविः 2012 में हुए अन्तिम चुनाव

महात्मा ज्योतिबा फूले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली में 2012 से ही छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगी है. यहां के कुछ महाविद्यालयों ने 2018 तक चुनाव कराने का प्रयास किया तो तत्कालीन कुलपति प्रो. अनिल कुमार शुक्ला ने यह कहकर रोक लगा दिया था कि छात्रसंघ चुनाव कराकर वे पढ़ाई का माहौल नहीं खराब करेंगे. खैर, बहाली के लिए लगातार आंदोलन चल रहे हैं.

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गोरखपुर विविः 2017 से लगी है रोक

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव अंतिम बार 2016 में हुआ था. अरविंद कुमार यादव उर्फ अमन अध्यक्ष, अखिलदेव त्रिपाठी उपाध्यक्ष और ऋचा चौधरी महामंत्री चुनी गई थीं. तब से प्रक्रिया आगे ही नहीं बढ़ी है. इसके बाद वर्ष 2018 में चुनाव की प्रक्रिया शुरू की गई. 13 सितंबर को मतदान होना था लेकिन इसी बीच छात्रों के दो गुटों में बवाल हो गया. प्रशासन ने इसी को आधार बनाकर चुनाव पर रोक लगा दी. तभी से प्रक्रिया फंसी हुई है.

यहां कराए चुनाव तो यह रहे नतीजे

1. सम्पूर्णानंद विविः एबीवीपी का सूपड़ा साफ

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में बीते अप्रैल में हुए छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी अपना खाता तक नहीं खोल सकी. एनएसयूआई ने सभी पदों पर जीत दर्ज की. अध्यक्ष पद पर कृष्ण मोहन शुक्ला, उपाध्यक्ष पद पर अजीत कुमार चौबे, महामंत्री पद पर शिवम चौबे और पुस्तकालय मंत्री आशुतोष कुमार मिश्र चुने गए.

2. महात्माी गांधी काशी विद्यापीठः यहां भी नहीं गली दाल

महात्माल गांधी काशी विद्यापीठ में छात्रसंघ बीती फरवरी में कराए गए थे. इसमें विमलेश पाल अध्यक्ष (सपा), संदीप पाल उपाध्यक्ष (एनएसयूआई), प्रफुल्ल पटेल महामंत्री (एनएसयूआई) और आशीष गोस्वामी पुस्तकालय मंत्री (निर्दल) पद पर निर्वाचित हुए. एबीवीपी का कोई भी प्रत्याशी प्रमुख पद पाने में सफल नहीं हो सका.

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