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बाबरी विध्वंस मामले में सबूतों को किया गया नजरअंदाज: AIMPLB

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Published : Oct 1, 2020, 3:48 AM IST

बाबरी विध्वंस मामले में सीबीआई अदालत के फैसले को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बेबुनियाद फैसला बताया है. बोर्ड ने कहा कि अदालत के फैसले में सबूतों को नजर अंदाज किया गया है. साथ ही कानून का भी लिहाज नहीं रखा गया है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड.

लखनऊ: बाबरी विध्वंस मामले में सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए तमाम आरोपियों को बरी कर दिया. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अदालत के फैसले को नाइंसाफी की तारीख में एक मिसाल बताते हुए कहा कि यह एक बेबुनियाद फैसला है, जिसमें सबूतों को नजरअंदाज किया गया और कानून का भी लिहाज नहीं रखा गया.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने कहा कि यह फैसला उस मानसिकता को उजागर करता है जो मानसिकता हुकूमत की है और जिस का इजहार बाबरी मस्जिद केस में सुप्रीम कोर्ट के जजों ने किया था. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तो अपने फैसले में कई बातों को मानने के बाद जो फैसला दिया वह इंसाफ के चेहरे पर बड़ा सा धब्बा है. मौलाना वली रहमानी ने कहा कि सीबीआई की अदालत ने सारे आरोपियों को बरी कर दिया है, जब कि पूरे देश में वीडियो और तस्वीरें मौजूद हैं, जो साफ बताती हैं कि मुजरिम कौन है और बाबरी मस्जिद की शहादत की साजिश और कार्रवाई में कौन शामिल हैं.

मौलाना वली रहमानी ने लिखित बयान जारी करते हुए कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने स्पष्ट किया था कि बाबरी मस्जिद की शहादत एक राष्ट्रीय शर्मिंदगी है और कानून की हुक्मरानी और संवैधानिक कार्य के लिए बड़ा धक्का है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने ये भी कहा था कि 500 साल पुराना ढांचा तोड़ दिया गया. इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार के हाथों में थी. बोर्ड के महासचिव ने कहा कि लोगों को याद होगा की बाबरी मस्जिद की शहादत के हादसे के बाद मुल्क में सांप्रदायिकता की लहर चल पड़ी और बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों के जानमाल का नुकसान हुआ. उन्होंने कहा कि सीबीआई अदालत का यह फैसला मस्जिद की शहादत की जिम्मेदारी किसी पर नहीं डालता तो क्या वो सारी भीड़ और वह लोग जो बीजेपी में बड़ी हैसियत के मालिक रहे हैं मस्जिद को शहीद नहीं किया?

मौलाना वली रहमानी ने ये भी सवाल किया है कि क्या किसी गैबी ताकत ने मस्जिद की इमारत को ढहा दिया? यह सारे आरोपी जो मस्जिद शहीद करने में शामिल थे और जिन्होंने मस्जिद गिराने की साजिश की वह सब सिर्फ तमाशा देख रहे थे? उन्होंने कहा कि यह फैसला नाइंसाफी की तारीख में एक मिसाल की हैसियत से पेश किया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस मामले में सीबीआई को ईमानदारी दिखानी चाहिए थी. उन्होंने इस फैसले की अपील ऊपर की अदालत में करने की वकालत की.

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