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Controversy Over Ramcharitmanas : रामचरितमानस के बहाने बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है सपा, यह है रणनीति

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Published : Feb 6, 2023, 3:38 PM IST

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उत्तर प्रदेश में हर चुनावी सीजन में धर्म और जाति (Controversy Over Ramcharitmanas) के मुद्दे हावी होने स्वाभाविक हैं. हर दल किसी न किसी बहाने यूपी के चुनावों में ऐसी ही रणनीति अपनाते हैं. सत्ताधारी भाजपा का एजेंडा ही धर्म आधारित (हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र) रहा है. बसपा और सपा भी इस मसले पर चुनाव लड़ने में गुरेज नहीं करते हैं. हालांकि कांग्रेस ऐसे मुद्दों से किनारा करती है.

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लखनऊ : रामचरितमानस की चौपाई में शूद्र शब्द पर विवाद इन दिनों चर्चा में है. सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार शूद्र शब्द को हटाने के साथ ही रामचरितमानस पर वैन लगाने की मांग कर रहे हैं. स्वामी के समर्थक उनके विवादित बयान का समर्थन कर रहे हैं. रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य के लगातार हमले को राजनीतिक विश्लेषक सपा की रणनीति मान रहे हैं. उनका कहना है दलित जातियों को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी अपनी तरफ एकजुट करने के प्रयास कर रही है. मुस्लिम पहले से ही सपा के पक्ष में रहते हैं. ऐसे में पिछड़े और दलित समाज के जुड़ने से सपा को लग रहा है कि उसे फायदा मिल सकता है. इसलिए स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे किया हो, ऐसा हो सकता है.

वैसे तो बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाना मुश्किल होता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने दलितों के घर में खाना खाकर कहीं न कहीं इस पर चोट की है. अब समाजवादी पार्टी भी स्वामी प्रसाद मौर्य के बहाने विवादित बयान दिलवाकर बहुजन समाज पार्टी के बचे हुए वोट बैंक में पूरी तरह से सेंध लगा देना चाहती है. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी स्वामी को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल कर रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी का जो वोट बैंक है उसे रामचरितमानस की चौपाइयों पर प्रहार करने के सहारे समाजवादी पार्टी अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती है. यही वजह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को विवादित बयान को लेकर भी समाजवादी पार्टी किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर रही है और न ही स्वामी प्रसाद मौर्य झुकने को तैयार हैं. शूद्र शब्द के जरिए दलित तो सपा की तरफ झुक ही सकते हैं. पिछड़े वर्ग के लोग भी मजबूती के साथ सपा से जुड़ सकते हैं. इसका नुकसान सबसे ज्यादा बसपा को ही उठाना पड़ सकता है. पहले से ही बसपा काफी कमजोर है. ऐसे में उसके अपने वोट बैंक में सेंध लगती है तो निश्चित ही नुकसान होगा.

बता दें, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. इससे बसपा सुप्रीमों को बड़ा झटका लगा तो मोदी लहर में समाजवादी पार्टी पांच और कांग्रेस सिर्फ दो सीटें जीतने में सफल हुई थी. वर्ष 2017 के विधानसभा परिणाम भी बहुजन समाज पार्टी के लिए दर्द देने वाले साबित हुए. बसपा सिर्फ 19 सीट ही जीत पाई. बसपा की हालत से सवाल खड़े होने लगे कि क्या उत्तर प्रदेश में दलित समाज ने किसी अन्य दल की तरफ रुख कर लिया है. वर्ष 2014 के चुनाव में बीएसपी सुप्रीमो का सूपड़ा साफ होना और भाजपा के साथ सहयोगी दलों के 73 सीटें जीत लेने से अंदाजा लगाया जाने लगा कि दलित समाज के वोट का एक हिस्सा बीएसपी से बीजेपी में खिसक गया है. वर्ष 2017 के चुनाव में बसपा 19 सीटों पर सिमट गई. इसके बाद ये माना जाने लगा कि बीजेपी दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हुई. हालांकि मायवती ये कहती रहीं कि उनका वोट बैंक कहीं नहीं गया. मत प्रतिशत में कमी नहीं आई है. वर्ष 2017 के चुनाव को लेकर भी वे यही कहती रहीं कि दलित उनके साथ ही है बाकी जातियों के वोट नहीं मिल रहे हैं. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का और भी बुरा हाल हो गया. उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीतने में सफल हो पाई. कहा ये भी का रहा है कि उमाशंकर पांडेय अपने दम पर जीते हैं ना कि बसपा के वोट बैंक के आधार पर. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव ने यह तय कर दिया कि बीजेपी के अलावा अन्य दल भी बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक में सफल हुए हैं.

यूपी में लगभग 21 फीसद दलित : उत्तर प्रदेश की बात करें तो दलितों का मत प्रतिशत लगभग 21 फीसद है. ऐसे में सभी दल दलितों को लुभाने के लिए प्लानिंग करते हैं. दलित के अलावा अगर ओबीसी की बात करें तो लगभग 54% मतदाता इस वर्ग से आते हैं. यही वजह मानी जा रही है कि पिछड़ों, अति पिछड़ों के साथ ही दलितों को साधने के लिए समाजवादी पार्टी ने स्वामी प्रसाद मौर्य का ट्रंप कार्ड के रूप में इस्तेमाल किया है. स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज पार्टी में लंबे समय तक रहे हैं इसलिए वे पार्टी की कार्यशैली से भी परिचित हैं. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य के सहारे बसपा के वोट बैंक को अपनी तरफ लाने में सफल भी हो सकती है.

राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन का मानना है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां तैयारी कर रही हैं. ऐसे में सभी कुछ न कुछ प्लान कर रही हैं. जहां तक बात रामचरितमानस की चौपाइयों को लेकर टिप्पणी करने की है तो स्वामी प्रसाद मौर्य के सहारे हो सकता है. समाजवादी पार्टी ने कोई रणनीति बनाई हो. जहां तक सपा रामचरितमानस और शूद्र के बहाने दलित वोट बैंक मैं सेंध लगाने की कोशिश कर रही हो, तो संभव है क्योंकि स्वामी प्रसाद और बहुजन समाज पार्टी में लंबे समय तक रहे हैं. वे पार्टी के कॉडर को जानते हैं. उनके नेताओं और कार्यकर्ताओं से ताल्लुक हैं. वैसे भी पहले से ही बहुजन समाज पार्टी के बड़े दलित नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं और इसका फायदा वर्ष 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिला, वहीं बहुजन समाज पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था. रामचरितमानस के बहाने कई वर्गों और जातियों को लुभाने की कोशिश है. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक बाजपेई का कहना है कि समाजवादी पार्टी समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलती है. जाति और वर्ग की राजनीति समाजवादी पार्टी करती ही नहीं है. यह काम अन्य राजनीतिक दलों का है. बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक में जहां तक सेंध लगाने की बात है तो बसपा के पास अब कुछ बचा ही कहां है.

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