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UP Election 2022: बसपा 60 से 70 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण चेहरों पर लगाएगी दांव!

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Published : Dec 30, 2021, 3:32 PM IST

यूपी में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में फिर से सत्ता हासिल करने के लिए बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने 60 से 70 सीटों पर ब्राह्मण चेहरों की उम्मीदवार बनाने के मूड़ में है. आइए जानते हैं कि आगामी चुनाव को लेकर बसपा की रणनीति...

बसपा.
बसपा.

लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) का बिगुल बज चुका है. राजनीतिक पार्टियां अब अपनी अंतिम रणनीति को अंजाम देने में जुटी हैं. खासकर बसपा सामाजिक समीकरणों के जरिये वर्ष 2007 का इतिहास दोहराने की जुगत में है. इसके लिए 'भाईचारा फार्मूला' के जरिये दलित, ओबीसी, मुस्लिम के साथ-साथ अपर कास्ट में ब्रह्मणों को पाले में खींचने की पुरजोर कोशिश की जा रही है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बसपा इस बार 60 से 70 सीटों पर ब्राह्मण चेहरों पर दांव लगाने की मूड में है.

हालांकि बसपा प्रमुख मायावती ने प्रत्याशियों की आधिकारिक घोषणा नहीं की है लेकिन पार्टी के कॉर्डिनेटर, जिलाध्यक्ष अब तक करीब 200 प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं. इसमें 30 के करीब ब्राह्मण चेहरे नीले झंडे के साथ क्षेत्र में चुनाव प्रचार में जुट गए हैं. पार्टी सूत्रों के मुताबिक 403 विधानसभा सीट पर 60 से 70 सीटों पर बसपा ब्राह्मणों को मैदान में उतारेगी. इसके अलावा मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मुस्लिम उमीदवारों को टिकट देगी. बसपा प्रमुख मायावती (BSP Supreemo Mayawati) ने यूपी की 403 सीटों पर एक-एक हजार ब्राह्मण कार्यकर्ता तैयार करने का लक्ष्य दिया है. ब्राह्मणों को जोड़ने का जिम्मा पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को सौंपा गया. ऐसे में 4 लाख तीन हजार ब्राह्मण कार्यकर्ता जोड़ने का सितम्बर से सदस्यता अभियान चलाया गया है.


पार्टी के महासचिव सतीशचंद्र मिश्र ने हाल में भी पदाधिकारियों संग लखनऊ में बैठक की. इसमें सुरक्षित सीटों पर जीत के लिए ब्राह्मणों को जोड़ने पर विशेष जोर दिया, क्योंकि सुरक्षित सीट पर दलित वोटों का बंटवारा हो जाता है. ऐसे में ब्राह्मण वोट पार्टी के पक्ष में आने पर जीत आसान की जा सकती है. यही नहीं इन 86 सीटें हर हाल में जीतने के लिए 'भाईचारा' वाला फार्मूला तय किया गया है. लिहाजा, इन विधान सभाओं में सम्मेलन करके परंपरागत दलित वोट के अलावा पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समाज का समर्थन जुटाना भी है. इसकी जिम्मेदारी मंडल संयोजकों को दी गई है.

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गौरतलब है कि बसपा ने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए राज्य में बहुमत की सरकार बनाई थी. इस दरम्यान सुरक्षित सीटों पर दलित मतदाताओं के अलावा दूसरे समाज के वोटरों का भी बड़ा समर्थन मिला था. इसमें ब्राह्मणों का बसपा के पाले में आना प्रमुख रहा. वहीं, पिछले तीन विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो सुरक्षित सीटों (84 एससी-2 एसटी) पर बसपा का प्रदर्शन मन मुताबिक नहीं रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव में 86 सुरक्षित सीटों में से बसपा सीतापुर की सिधौली और आजमगढ़ की लालगंज सीट ही फतह कर सकी, इसमें से 70 सीटों पर अकेले बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. इससे पहले 2012 के चुनाव में केवल 85 सीटें आरक्षित रहीं। यह केवल एसटी के लिए थीं. इनमें से बसपा केवल 15 सीटें ही जीत सकी थी.

यह सीटें रामपुर, मनिहारान, पुरकाजी , नागौर, हाथरस, आगरा कैंट, आगरा ग्रामीण, टूंडला हरगांव, मोहान, महरौनी,नारायणी, मंझनपुर, कोराओं, बांसगांव और अजगरा सीट जीती थी. वहीं मायावती ने वर्ष 2007 में सुरक्षित सीटों में से 62 सीटों पर कब्जा जमाया था. यह सीटें बसपा को सत्ता में लाने के लिए मददगार साबित हुईं.

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