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उपचुनाव नतीजाः भाजपा को एक सीट का नुकसान, सपा ने हासिल की तीन सीटें

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Published : Oct 24, 2019, 9:46 PM IST

Updated : Oct 25, 2019, 10:59 AM IST

उपचुनाव में 8 सीटों पर भाजपा और 3 सीटों पर सपा की जीत.

उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आ गए हैं. इन 11 सीटों में 9 सीटों पर भाजपा का कब्जा था, लेकिन चुनावी नतीजे आने के बाद भाजपा ने अपनी एक सीट गंवा दी है. वहीं सपा ने बढ़त बनाते हुए तीन सीटों पर अपना कब्जा जमाया.

लखनऊः उत्तर प्रदेश के 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को एक सीट का नुकसान हुआ है. वहीं सपा को तीन सीटों पर जीत हासिल हुई है, जिसमें एक सीट पर उसका पहले से ही कब्जा था यानी उसे दो सीटों का फायदा हुआ है, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने अपनी जलालपुर की सीट भी गंवा दी है. इस प्रकार से बसपा और कांग्रेस के खाते में 11 सीटों में से एक भी नहीं गई. चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि अगर भारतीय जनता पार्टी की तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी चुनावी सूझ-बूझ से लड़ती तो निश्चित तौर पर चुनावी नतीजों की तस्वीर कुछ और ही होती.

रामपुर सीट बचाने के लिए सपा ने झोंकी थी पूरी ताकत
रामपुर सीट पर पहले से ही समाजवादी पार्टी की जीत पक्की मानी जा रही थी. भारतीय जनता पार्टी ने आजम खां की पत्नी तंजीन फातिमा को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. अपने समर्थकों को बांधे रखने के लिए आजम खान को चुनाव प्रचार के दौरान मंच तक से रोना तक पड़ा था. वहीं खास बात यह भी रही कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव केवल रामपुर विधानसभा सीट पर ही चुनाव प्रचार करने गए.

उपचुनाव की मतगणना पूरी.

पढ़ें- दिल्ली से रामपुर पहुंची जयाप्रदा ने किया मतदान

जैदपुर विधानसभा सीट पर सपा ने मारी बाजी
बाराबंकी की जैदपुर सीट 2017 में भाजपा के खाते में थी और उपेंद्र सिंह रावत विधायक हुए थे, जिनके संसद पहुंचने के बाद यह सीट खाली थी. इस उपचुनाव में भाजपा ने अंबरीष रावत को टिकट दिया. वहीं भाजपा के इस निर्णय से स्थानीय सांसद सहमत नहीं बताए जा रहे थे. इस सीट पर बाराबंकी की पूर्व सांसद प्रियंका रावत भी पार्टी से टिकट मांग रही थीं. भाजपा नेतृत्व ने 2019 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सांसद प्रियंका का टिकट काट कर उपेंद्र रावत को दिया था. जानकारों का मानना है कि यदि प्रियंका को टिकट मिला होता तो ही भाजपा के खाते में यह सीट बची रह जाती, लेकिन आपसी खींचतान और प्रत्याशी का ठीक चयन नहीं होने से उसे नुकसान हुआ. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया भी अपने बेटे को चुनाव नहीं जिता सके.

ऐसे ही सहारनपुर की गंगोह विधानसभा सीट 2017 में भाजपा के खाते में थी. शुरुआत से लेकर कई चक्र की मतगणना तक कांग्रेस जीतती दिख रही थी, लेकिन आखिरी में भाजपा ने बाजी मार ली.

क्या कहते हैं विश्लेषक
चुनावी विश्लेषक मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी से कहीं न कहीं चूक हुई है. भारतीय जनता पार्टी के खाते में सात सीटें हैं. एक सीट सहयोगी अपना दल को मिली है. 11 में से नौ सीटें भाजपा के पास थीं. वह अपनी सभी सीटें बचा पाने में असफल रही है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि भाजपा के रणनीतिकारों से कहीं न कहीं चूक हुई है.

वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि 11 में से 8 सीटें जीतना बहुत खराब स्थिति नहीं कही जा सकती, लेकिन इसे बहुत अच्छा भी नहीं कहा जा सकता. इतनी ताकत लगाने के बाद भी भाजपा को सीटें गवानी पड़ी. इसके लिए भाजपा को मंथन करना होगा.

पढ़ें- बाराबंकी: जैदपुर सीट से सपा प्रत्याशी की जीत, 4165 मतों से हारे भाजपा के अंबरीश रावत

भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र सिंह राणा का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी को आठ सीटें मिली हैं. जनता को इसके लिए बधाई है. भाजपा की पहले नौ सीटें थीं. एक सीट कम हुई है. इसको लेकर मंथन करेंगे कि आखिर हमारी पार्टी सभी सीटों पर जीत क्यों नहीं दर्ज कर पाई.

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लखनऊ: भाजपा को एक सीट का नुकसान, दो सीट के फायदे में सपा

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी उपचुनाव में एक सीट गवां कर नुकसान में रही है। समाजवादी पार्टी को दो सीट की बढ़त मिली है। जबकि बहुजन समाज पार्टी जलालपुर की अपनी सीट भी हर गयी। इस प्रकार से बसपा और कांग्रेस के खाते में 11 में से एक भी सीट नहीं गयी। इनमें से रामपुर और अम्बेडकरनगर की जलालपुर विधानसभा सीट को छोड़कर नौ सीटें भारतीय जनता पार्टी के पास थी। रामपुर सीट सपा के पास थी। यह सीट आजम खां के सांसद बनने के बाद रिक्त हुई। जलालपुर से बसपा के विधायक रहे रितेश पांडेय के संसद पहुंचने से रिक्त हुई थी। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि अगर भारतीय जनता पार्टी की तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पूरी शिद्दत से चुनाव लड़े होती तो निश्चित तौर पर इसकी तस्वीर कुछ और होती।


Body:रामपुर सीट पर पहले से ही समाजवादी पार्टी की जीत पक्की मानी जा रही थी। भारतीय जनता पार्टी ने आजम खां की पत्नी तंजीन फातिमा को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। आजम चुनाव परिणाम को बेहद डरे हुए थे। अपने समर्थकों को बांधे रखने के लिए आजम खान को चुनाव प्रचार के दौरान मंच से रोए रोना तक पड़ा। खास बात यह भी रही। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव केवल रामपुर सीट पर चुनाव प्रचार करने के लिए गए।

बाराबंकी की जैदपुर सीट 2017 में भाजपा के खाते में थी। उपेंद्र सिंह रावत विधायक हुए थे। उनके संसद पहुंचने के बाद यह सीट रिक्त हुई। भाजपा ने अम्बरीष रावत को टिकट दिया। भाजपा के इस निर्णय से स्थानीय सांसद सहमत नहीं बताए जा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी का स्थानीय स्तर पर भी विरोध था। इस सीट पर बाराबंकी की पूर्व सांसद प्रियंका रावत भी पार्टी से टिकट मांग रही थीं। भाजपा नेतृत्व ने 2019 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सांसद प्रियंका का टिकट काट कर उपेंद्र रावत को दिया दिया था। जानकारों का मानना है कि यदि प्रियंका को टिकट मिला होता तो भी भाजपा के खाते में यह सीट बची रह जाती। लेकिन आपसी खींचतान और प्रत्याशी का ठीक चयन नहीं होने की वजह से उसे नुकसान हुआ। सपा प्रत्याशी गौरव रावत को जीत मिली है। यह सपा के लिए शुभ समाचार है। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया अपने बेटे को भी चुनाव नहीं जिता सके।

ऐसे ही सहारनपुर की गंगोह विधानसभा सीट 2017 में भाजपा के खाते में थी। शुरुआत से लेकर कई चक्र की मतगणना तक कांग्रेस जीतती दिख रही थी लेकिन आखिरी में भजपा ने बाजी मार ली। काँग्रेस के लिए 11 में से एक सीट जीत बेहद सुखद क्षण होता।

चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि अगर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी यूपी के इस उपचुनाव को मेहनत से लड़े होते तो इसका परिदृश्य कुछ और होता। पूरे विपक्ष ने इस चुनाव को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। जनता भ्रम की स्थिति में थी। अखिलेश यादव केवल आजम खान की पत्नी तंजीन फातिमा की रामपुर विधानसभा सीट पर ही चुनाव प्रचार करने के लिए गए। बताया जा रहा है कि वह भी आजम खान के बेहद दबाव में। दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी की बात की जाए तो पार्टी के बड़े नेता बड़े नेता चुनाव प्रचार में दिखे ही नहीं। अगर मायावती खुद चुनावी सभाओं में गयीं होतीं तो उन्हें और भी फायदा मिला होता।

बाईट- चुनावी विश्लेषक मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी कि कहीं ना कहीं चूक हुई है। भारतीय जनता पार्टी के खाते में आठ सीटें गयीं हैं। 11 में से नौ सीटें भाजपा के पास थी। वह अपनी सभी सीटें बचा पाने में असफल रही है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भाजपा के रणनीतिकार चूके हैं। या फिर टिकट देने में गड़बड़ी हुई है। इसका आकलन पार्टी नेतृत्व को करना होगा।

बाईट-वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि 11 में से नौ सीटें जीतना बहुत खराब स्थिति नहीं कही जा सकती। लेकिन इसे बहुत अच्छा भी नहीं कहा जा सकता। इतनी ताकत लगाने के बाद भी भाजपा को एक सीट गवानी पड़ी। इसके लिए भाजपा को मंथन करना होगा।

बाईट- भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र सिंह राणा का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी को आठ सीटें मिली हैं जनता को इसके लिए बधाई है। हमारी पहले नौ सीटें थी। एक सीट कम हुई है। इसको लेकर हम मंथन करेंगे कि आखिर हमारी पार्टी सभी सीटों पर जीत क्यों नहीं दर्ज की। एक बात और है कि भारतीय जनता पार्टी पूरब से पश्चिम तक जीत दर्ज की है।


Conclusion:
Last Updated :Oct 25, 2019, 10:59 AM IST
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