ETV Bharat / state

कोरोना से भी खतरनाक है टीबी रोग, हर 3 मिनट में होती है 2 मरीजों की मौत

author img

By

Published : Mar 24, 2022, 1:12 PM IST

24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर पूर्वांचल के ख्यातिप्राप्त चिकित्सक डॉ. नदीम ने लोगों को जागरूक किया. इस दौरान उन्होंने टीबी के लक्षण बचाव और उपचार के बारे में लोगों को सुझाव दिया. उन्होंने लापहवाही छोड़कर इलाज करवाने की लोगों से अपील की. इसके साथ ही बताया कि टीबी रोग कोरोना से कहीं ज्यादा खतरनाक है.

etv bharat
कोरोना से खतरनाक भी खतरनाक है टीबी रोग

गोरखपुर: टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) रोग कोरोना से भी खतरनाक है. साल भर में टीबी से मौत का आंकड़ा, कोरोना के मौत से कई गुना ज्यादा है. इसके बाद भी लोग टीबी को लेकर सावधानी और इलाज कराने में गंभीरता नहीं अपना रहे. इसका परिणाम है कि भारत में हर 3 मिनट में 2 मरीजों की मौत हो रही है. यही नहीं दुनिया के सर्वाधिक टीबी पेशेंट वाला देश भारत है और यहां मौत का आंकड़ा भी सबसे अधिक है. गोरखपुर के मशहूर चेस्ट फिजीशियन डॉ. नदीम अरशद ने यह जानकारी दी.

बता दें कि डॉ. नदीम टीबी यानी कि ट्यूबरक्लोसिस के इलाज में पूर्वांचल के ख्यातिप्राप्त चिकित्सक हैं, और ऑल इंडिया चेस्ट फिजिशियन एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य हैं. उन्होने 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर लोगों को जागरूक करने, इसके बचाव के उपाय और पीएम मोदी के साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने वाले लक्ष्य को हासिल करने के लिए मीडिया के जरिए लोगों से अपील की. इस दौरान उन्होंने कहा कि समय से जागरूकता और इलाज इस बीमारी को नियंत्रित कर देता है. लापरवाही मौत की ओर ले जाती है. लोग इसके प्रति लापरवाह बने हुए हैं, जबकि पूरी दुनिया मे हर साल करीब 15 लाख और भारत मे 4 लाख 35 हजार लोगों की टीबी मौत होती है.

जानकारी देते हुए डॉ. नदीम


ऐसे करें पहचान: डॉ. नदीम ने बताया कि यह संक्रामक रोग है, जो बैक्टीरिया की वजह से होता है. बैक्टीरिया शरीर के सभी अंगों में प्रवेश कर जाता है. हालांकि यह ज्यादातर फेफड़ों में ही पाया जाता है. इसके अलावा आंतों, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ो, गुर्दे, त्वचा और हृदय भी टीबी से ग्रसित हो सकते हैं. साधारण तरीके से लोग इसकी पहचान कर सकते हैं. अगर दो हफ्ते से ज्यादा खांसी आ रही हो, बुखार जो अक्सर शाम को बढ़ता हो, छाती में तेज दर्द इसके लक्षण हैं. इसके साथ ही अचानक वजन घटना, भूख में कमी, बलगम के साथ खून आना, फेफड़ों में बहुत ज्यादा इन्फेक्शन होना, सांस लेने में तकलीफ होना भी इसके लक्षण हैं.

तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों पर जाकर इसकी जांच कराई जा सकती है, जो पूरी तरह निशुल्क है. सरकार इसका पूरा खर्च उठाती और 500 रुपये महीने सहयोग भी करती है. इसलिए इन सुविधाओं के होते हुए भी लोगों को इस बीमारी के प्रति लापरवाह नहीं होना चाहिए. खुद को और समाज को बचाने के लिए आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि अब जांच में भी समय कम लग रहा है. कई तरह की नई तकनीकी भी विकसित हो गई हैं.

ऐसे होती है जांच: डॉ. नदीम ने बताया कि टीबी की जांच के लिए छाती का एक्सरे, बलगम की जांच, स्किन टेस्ट होता है. इसके अलावा आधुनिक तकनीक के माध्यम से मॉलिक्यूलर टेस्ट, जेनेक्सपर्ट और एलपीए से भी टीबी का पता लगाया जा सकता है. इसके तहत देशभर में डॉट्स केंद्र बने हैं. इन केंद्रों की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां मरीज को केंद्र पर ही दवाई खिलाई जाती है, जिससे इलाज में किसी तरह की कोताही न हो.

यह भी पढ़ें- भारत में कोरोना से ज्यादा जानलेवा टीबी, एक साल में चार लाख मरीज गवां रहे जान

पढ़िए टीबी चैंपियंस कहानी, जो बचा रहे अब दूसरों की जिंदगानी- विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर गोरखपुर में चिकित्सक से बातचीत करने के साथ ईटीवी भारत की टीम ने वाराणसी में टीबी को हरा चुके कुछ योद्धाओं से बातचीत की, जो अब दूसरों को इस रोग के बारे में जागरुक कर रहे हैं और उन्हें नई जिंदगी देने का काम कर रहे हैं. वाराणसी जनपद में ऐसे कई लोग मिले जिन्होंने टीबी के साथ जिए अपने अतीत और वर्तमान की कहानी साझा की.

केस-1) वाराणसी के राजा तालाब निवासी धनंजय पेशे से किसान हैं. साल 2012 में टीबी रोग ने उन्हें अपनी गिरफ्त में लिया. शुरू में वह आस-पास के चिकित्सकों से उपचार कराते रहे पर रोग ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था. तभी एक रिश्तेदार की सलाह पर उन्होंने मण्डलीय चिकित्सालय-कबीरचौरा स्थित क्षय रोग केंद्र में जांच कराकर उपचार शुरू किया. नियमित दवा के सेवन व परहेज का नतीजा रहा कि अब वह पूरी तरह स्वस्थ तो है हीं. इसके साथ ही टीबी चैम्पियन बनकर इस रोग को खत्म करने की मुहिम का हिस्सा भी बन चुके हैं.

केस-2) अर्दली बाजार के विष्णु मौर्य को भी चार साल पहले टीबी हो गई थी. अब सरकारी अस्पताल में जांच व उपचार के बाद अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं. रोजमर्रा के काम-काज के साथ ही विष्णु भी अब टीबी चैम्पियन बनकर टीबी रोग को पूरी तरह खत्म करने की मुहिम चला रहे हैं.

केस-3) धनंजय और विष्णु ही नहीं मो. अहमद, संदीप, ओमप्रकाश, अजीत, दीपक और अतुल जैसे 13 ऐसे नाम हैं, जो कभी टीबी रोग से ग्रसित थे. सरकारी अस्पताल में हुए निःशुल्क उपचार, चिकित्सकों की सलाह, दवाओं के नियमित सेवन व परहेज का नतीजा है कि वह आज पूरी तरह स्वस्थ हैं. टीबी को मात देने के बाद चैम्पियन बनकर अब टीबी रोग के समूल नाश की मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं.

टीबी मुक्त मुहिम में चैंपियन बन रहे संजीवनी: वाराणसी के जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. राहुल सिंह बताते हैं कि साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने ठान रखा है. इसके लिए चलायी जा रही मुहिम में टीबी चैम्पियन भी मददगार साबित हो रहे हैं. टीबी चैंपियन उन लोगों को चुना गया है जो पहले टीबी ग्रसित थे. जांच में टीबी की पुष्टि होने पर उन्होंने चिकित्सक के सुझाव के मुताबिक दवा का नियमित सेवन कर बीमारी को मात दिया. अब वो पूरी तरह से स्वस्थ हैं और सामान्य जिंदगी जी रहे है. इसके साथ ही अपने अनुभवों को समुदाय तक पहुंचाकर टीबी रोग के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं. इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया है.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.