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विश्व मजदूर दिवस : बाजार में बिकने को तैयार, फिर भी नहीं मिलता रोजगार

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Published : May 1, 2021, 2:35 PM IST

विश्व मजदूर दिवस हर साल बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. लेकिन इस कोरोना महामारी ने मजदूरों के रोजी-रोटी पर बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. विश्व मजदूर दिवस के मौके पर क्या कह रहे मजदूर, आइए सुनते हैं...

विश्व मजदूर दिवस
विश्व मजदूर दिवस

गोरखपुर : 1 मई को पूरी दुनिया विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाती है. हालांकि इसके बावजूद तस्वीर में ज्यादा फर्क नहीं होता. मजदूरों को समर्थ और समृद्ध बनाने की सरकार की सारी योजनाएं तब धरी की धरी नजर आती हैं, जब मजदूर खुद को बेचने के लिए मजदूर मंडी में आकर खड़ा होता है लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी उसे रोजगार नहीं मिलता. वह खाली हाथ घर लौटने को मजबूर होता है.

विश्व मजदूर दिवस

वैसे तो सामान्य दिनों में मजदूरों का यह हाल होता है, लेकिन पिछले 2 वर्षों से तो यह दिहाड़ी मजदूर और भी कठिन जिंदगी जी रहे हैं. वर्ष 2020 में शुरू हुआ कोरोना के संक्रमण ने जहां कई महीनों तक लॉकडाउन की स्थिति पैदा की, तो वहीं एक बार फिर 2021 में इस महामारी ने दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी को काफी तबाह किया है. ईटीवी भारत ने मजदूरों पर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार किया है, जो दर्शाता है कि मजदूर बेहद ही परेशान हैं.

मजदूरी के लिए कोरोना काल में भी घर से बाहर निकलते हैं.
मजदूरी के लिए कोरोना काल में भी घर से बाहर निकलने की मजबूरी
कोरोना में तबाह हुई दिहाड़ी मजदूरों की जिदंगी

गोरखपुर शहर के विभिन्न चौराहों पर मजदूरों की मंडी लगती है. रानीडीहा, गोरखनाथ मंदिर, असुरन बाजार, धर्मशाला बाजार, ट्रांसपोर्ट नगर है. यहां प्रतिदिन सुबह 7 बजे तक मजदूर अपने घरों से साइकिल से निकलकर पहुंचता है. कुछ तो ऑटो रिक्शा साधन से भी यहां पहुंचते हैं, लेकिन जब इन्हें इनका खरीदार नहीं मिलता तो यह और भी मायूस होते हैं. यह मजदूरी मिलने के इंतजार में बाजार में 11 से 12 बजे तक खड़े रह जाते हैं और आखिरकार निराश हो घर लौट जाते हैं. ईटीवी भारत ने जब ऐसे मजदूरों से बात की तो उन्होंने कहा, 'बड़ी मुश्किल हो गई है मजदूरी मिलनी. कोरोना में जिंदगी तबाह हो गई है. पहले बहुत कम लोग घर खाली हाथ लौटते थे, लेकिन अब तो लौटना ही मजबूरी हो गई है. एक कप चाय का पैसा कमाना मुश्किल है. ऐसे में अगर घर का कोई बीमार पड़ गया, तो उसकी दवा कैसे होगी...भगवान ही मालिक है. मजदूरी की आस में रोज बाजार आने में घर का भी पैसा खर्च हो रहा है.'

ग्राहक की आस में घंटों सड़क पर खड़े रहते हैं.
काम की आस में घंटों सड़क पर खड़े रहते हैं.

मुफ्त सरकारी अनाज पाने से भी रह जाते हैं वंचित

इन मजदूरों का कहना है कि वह मजदूरी न करें तो परिवार को खाने को नहीं मिलेगा. सरकार भले ही कहती है कि वह मजदूरों को, गरीबों को सस्ता और मुफ्त अनाज उपलब्ध करा रही है. लेकिन, यह भी सभी को नहीं मिलता. जिनका जुगाड़ से कार्ड बना हुआ है, उन्हें शायद मिल जाता होगा. लेकिन पिछले साल का अनुभव है कि कुछ लोग नाम तो उनका नोट करके ले जाते हैं, लेकिन उनको मुफ्त में गेहूं-चावल नहीं मिलता. श्रम विभाग इनके पंजीकरण पर अभियान के तहत कभी-कभी जोर देता है. लेकिन ऐसी मंडी में अगर पहुंचता तो तमाम मजदूरों का पंजीकरण अपने आप हो जाता. इससे शायद इन्हें कुछ लाभ मिलता.

कोरोना वायरस ने मजदूरों के आमदनी पर लगा ब्रेक
कोरोना वायरस ने मजदूरों की आमदनी पर लगाया ब्रेक

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अशिक्षा और बेरोजगारी से जूझने वाले यह मजदूर सिर्फ मजदूरी तक ही सोच समझ पाते हैं. इसके लिए वह हर दिन जद्दोजहद करते हैं. यही वजह है कि जब वह खाली हाथ मायूस होकर घर लौटते हैं, तो उनके परिजन भी उनके चेहरे को बड़ी आसानी से पढ़ लेते हैं. उनकी भी दो वक्त पेट भरने की उम्मीद टूट जाती है.

कोरोना महामारी के दौरा में भी करते हैं मजदूरी
कोरोना महामारी के दौर में भी करते हैं मजदूरी
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