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कोरोना ने तोड़ी कमर...अब डेंगू-मलेरिया का कहर

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Published : Aug 11, 2020, 8:18 AM IST

यूपी के गोरखपुर में कोरोना के साथ मलेरिया और डेंगू के मरीज भी लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे जिला प्रशासन बेखबर है. कोरोना के आगे अन्य बीमारियों के लिए कोई उचित प्रबंध नहीं हो रहे हैं. आइए देखते हैं यह खास रिपोर्ट.

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कोरोना के साथ बढ़ रहा मलेरिया और डेंगू का खतरा.

गोरखपुर: जिले में कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ता ही जा रहा है. कोरोना के साथ अब जिले में मलेरिया के मामले भी सामने बढ़ने लगे हैं. इन सब बीमारियों से सावधानी और सुरक्षा अपनाकर बचा जा सकता है, लेकिन गोरखपुर में इससे बचाव के तरीकों पर जोर नहीं दिया जा रहा है. हालांकि आधिकारिक आंकड़ों में तो सब कुछ ठीक-ठाक नजर आता है, लेकिन क्षेत्र में इंसेफ्लाइटिस जैसी महामारी के साथ चिकनगुनिया और डेंगू जैसी बीमारियों के मरीज लगातार बढ़ते जा रहे हैं.

कोरोना के साथ बढ़ रहा मलेरिया और डेंगू का खतरा.
पानी में पैदा हो रहा लार्वा जिले में मच्छर रोधी अभियान बस नाम मात्र के लिए ही चलाया गया है. जिला प्रशासन की व्यवस्थाएं फेल साबित होती दिखाई दे रही हैं. शहर हो या गांव, हर जगह मच्छर रोधी अभियान चलाने की जिम्मेदारी नगर निगम के साथ मलेरिया डिपार्टमेंट की भी है, लेकिन मौजूदा समय में शहर में चारों तरफ हुए जलजमाव और गंदगी से पटी नालियों को देखने के बाद यही लगता है कि विभागीय अभियान धरातल पर नहीं उतर रहे हैं, जिससे ऐसे पानी में लार्वा पैदा हो रहे हैं.कहां निकलते हैं मच्छरकोरोना काल में नई आफत डेंगू और मलेरिया की है, जो जलजमाव से पैदा हो रहा है. 30 जुलाई 2020 में डेंगू के 2 मरीज बीआरडी में भर्ती हुए थे, तो इंसेफ्लाइटिस के 4 मरीजों में डेंगू के लक्षण पाए गए थे. इसकी जांच रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर में हुई थी. यह दोनों बीमारी मच्छर के कारण फैलती है. डेंगू का मच्छर तो साफ पानी में मिलता है, लेकिन मलेरिया का मच्छर गंदे पानी में पनपता है.शहर के लोग परेशान

जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. एके पांडेय की मानें तो आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 सालों में गोरखपुर में मलेरिया के मरीज न के बराबर ही मिले हैं. साल 2014 से 16 के बीच में सिर्फ तीन मलेरिया रोगी मिले थे. एक तरफ इंसेफ्लाइटिस और अन्य मच्छर जनित बीमारियां जिले में फैलती हैं, तो दूसरी तरफ मलेरिया की जांच के लिए जो स्लाइड बनाए जाते हैं. माना जाता है कि लैब टेक्नीशियन इसकी पुष्टि कर पाने में सक्षम नहीं हैं. यही वजह है कि उनकी समय-समय पर ट्रेनिंग हुआ करती है. फिलहाल जलजमाव और मच्छर के पैदा होने से शहरी आबादी के लोग परेशान हैं और सरकारी प्रयासों पर उंगली उठा रहे हैं.

बढ़ रही जिले में लापरवाही

यही वजह है कि जल निकासी और जलभराव वाले क्षेत्र की निगरानी करने के लिए कमिश्नर निकल पड़ते हैं. प्रदेश की योगी सरकार साल 2018 से दस्तक अभियान शुरू कर ऐसे संक्रामक और संचारी रोगों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही है. फॉगिंग के साथ एंटी लार्वा के छिड़काव का निर्देश शासन स्तर से हो चुका है. फिर भी जिले में लापरवाही बढ़ती जा रही है, जबकि छिड़काव के लिए 45 छोटी मशीनें और तीन बड़ी मशीनें नगर निगम के पास उपलब्ध हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

पूर्व पार्षद मोतीलाल चौरसिया की पिछले साल लखनऊ में मलेरिया से ही मौत हुई थी. साल 2019 में डेंगू के 59 मरीज यहां पाए गए थे. अभियान की बात करें तो 5302 घरों में डेंगू के लार्वा की जांच विभाग ने की थी. सबसे अधिक लार्वा कूलर में पाए गए थे. जगह-जगह वॉल राइटिंग और अन्य माध्यमों से लोगों को इस बीमारी से जागरूक किया जाता है. साल 2016-17 में 168 , 2018 में 25 मरीज डेंगू के पाए गए थे. मलेरिया के मरीजों की बात करें तो साल 2016 में 53275 जांच में सिर्फ 7 मरीज, 2017 में 70688 जांच में 25 मरीज, 2018 में 68723 जांच में 15 मरीज, 2019 में 72833 जांच में 11 मरीज पाए गए थे, लेकिन 2020 में अभी आंकड़े कोरोना की वजह से दब गए हैं. कोरोना की जांच में महकमा उलझा हुआ है, लिहाजा इस ओर मलेरिया, चिकनगुनिया और डेंगू की बीमारियों पर किसी का ध्यान नहीं है.

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